1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें
समाजभारत

सीवर में सफाई के दौरान मौत के 925 मामले में ही मुआवजा

आमिर अंसारी
२६ दिसम्बर २०२३

सन 1993 से इस साल 31 मार्च के बीच देश के विभिन्न राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में सीवर में होने वाली मौतों की 1,081 घटनाओं में से 925 मामलों में ही मुआवजा दिया गया है.

https://p.dw.com/p/4aa3s
गटर साफ करता एक कर्मचारी
गटर साफ करता एक कर्मचारीतस्वीर: CHANDAN KHANNA/AFP/Getty Images

यह आंकड़ा राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग (एनसीएसके) द्वारा साझा किया गया है. हालांकि, 115 मामलों में अभी भी मुआवजा दिया जाना बाकी है. जबकि 41 मामलों को राज्यों द्वारा बंद कर दिया गया है, क्योंकि वे मृतकों के कानूनी वारिस का पता लगाने में असमर्थ थे.

अंग्रेजी अखबार टाइम्स इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग ने संसद की स्थायी समिति की टिप्पणियों और सिफारिशों पर सरकार द्वारा की गई कार्रवाई पर अपनी रिपोर्ट में यह जानकारी दी है. समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को सीवर या सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान किसी मजदूर की मौत के मामले में पीड़ित परिवार को 2014 के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक 10 लाख रुपये के मुआवजे का भुगतान सुनिश्चित करना चाहिए.

एनसीएसके ने 1,081 मामलों पर डाटा साझा करते हुए इस बात पर भी जोर दिया कि यह डाटा सिर्फ राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों, प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया रिपोर्टों से आयोग द्वारा प्राप्त जानकारी पर आधारित है और इसलिए असल आंकड़ा अलग हो सकता है.

एनसीएसके के मुताबिक पिछले साल सीवर में हुई कुल 159 मौतों के मामले में मृतकों के कानूनी वारिस को मुआवजे के रूप में 10 लाख रुपये का भुगतान किया गया है. एनसीएसके ने पाया कि 2014 के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत अधिकांश राज्यों के पास मुआवजे के भुगतान के लिए कोई अलग बजट मद नहीं है और न ही धन का आवंटन है.

क्या भारत में अब लोगों को गटर में नहीं उतरना पड़ेगा?

मौत का कारण बनते सीवर और सेप्टिक टैंक

संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान एक सवाल के जवाब में सामाजिक न्याय और अधिकारिता राज्य मंत्री रामदास अठावले ने संसद को बताया कि इस साल 20 नवंबर तक सीवर और सेप्टिक टैंकों की सफाई के दौरान 49 मौतें दर्ज की गईं. उन्होंने कहा सबसे ज्यादा मौतें राजस्थान में हुईं, उसके बाद दूसरे नंबर पर गुजरात रहा.

उन्होंने कहा कि 2018 से देश में सीवर और सेप्टिक टैंकों की सफाई के दौरान 400 से अधिक लोगों की मौत हो गई है. मंत्री ने टीएमसी सांसद के सवाल पर बताया कि 2018 में जहां 76 मौतें हुईं, वहीं 2019 में 133, 2020 में 35, 2021 में 66, 2022 में 84 और इस साल 20 नवंबर तक 49 मौतें दर्ज की गईं.

केंद्र सरकार का कहना है कि इस साल सबसे ज्यादा दस मौतें राजस्थान में हुईं. उसके बाद गुजरात में नौ सफाई कर्मचारियों की मौत हुई है. महाराष्ट्र और तमिलनाडु में सात-सात मामले दर्ज किए गए.

अब सीवर की सफाई के लिए मशीनों का इस्तेमाल भी होने लगा है
अब सीवर की सफाई के लिए मशीनों का इस्तेमाल भी होने लगा हैतस्वीर: DW

मजदूरों के लिए कठिन हालात

कानून के मुताबिक सफाई एजेंसियों के लिए सफाई कर्मचारियों को मास्क, दस्ताने जैसे सुरक्षात्मक उपकरण देना अनिवार्य है, लेकिन एजेंसियां अकसर ऐसा नहीं करतीं. कर्मचारियों को बिना किसी सुरक्षा के सीवरों में उतरना पड़ता है.

सीवर और सेप्टिक टैंकों की इंसानों के हाथों सफाई (मैन्युअल स्कैवेंजिंग) या मैला ढोने की प्रथा का हिस्सा है, जो भारत में कानूनी रूप से प्रतिबंधित है. कानून का उल्लंघन करने वाले व्यक्ति या एजेंसी को एक लाख रुपये तक का जुर्माना या दो साल जेल की सजा हो सकती है. हालांकि, असल में कई जगहों पर इस प्रतिबंध का पूरी तरह से पालन नहीं होता है जिसकी वजह से ऐसी घटनाएं सामने आती रहती हैं.

इसी साल अक्टूबर में सुप्रीम कोर्ट ने इंसानों द्वारा सीवर की सफाई के दौरान होने वाली मौतों के बारे में एक अहम आदेश जारी किया था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जो लोग सीवर की सफाई के दौरान मारे जाते हैं उनके परिवार को सरकार द्वारा 30 लाख रुपये मुआवजा देना होगा.

सुप्रीम कोर्ट ने साथ ही कहा था कि सीवर की सफाई के दौरान स्थायी विकलांगता के शिकार होने वालों को न्यूनतम मुआवजे के रूप में 20 लाख रुपये का भुगतान किया जाएगा. इसके अलावा आदेश में कहा गया था कि अगर सफाई करते हुए कोई कर्मचारी अन्य किसी विकलांगता से ग्रस्त होता है तो उसे 10 लाख रुपये का मुआवजा दिया जाएगा.

भारत में इंसानों द्वारा सीवर और सेप्टिक टैंकों की सफाई एक बड़ी समस्या है. 2013 में एक कानून के जरिए इस पर प्रतिबंध भी लगा दिया गया था, लेकिन बैन अभी तक सिर्फ कागज पर ही है. देश में आज भी हजारों लोग सीवरों और सेप्टिक टैंकों की सफाई करने के उद्देश्य से उनमें उतरने के लिए मजबूर हैं.