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सीरिया पर हमले को लेकर भारत ने की तुर्की की आलोचना

चारु कार्तिकेय
१२ अक्टूबर २०१९

सीरिया में तुर्की के हमले की अंतरराष्ट्रीय समुदाय में आलोचना हो रही है जबकि तुर्की ने नाटो के साथियों से एकजुटता की मांग की है. हमलों की भारत ने भी खुली आलोचना की है.

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Syrien  Militäroffensive der Türkei l Explosion an der Grenze zu der Türkei in  Ras al-Ain
तस्वीर: Reuters/S. Nenov

तुर्की के विदेश मंत्री मोवलुत चावुसोग्लू ने अंतरराष्ट्रीय आलोचना को दरकिनार करते हुए कहा, "ये कहना काफी नहीं कि हम आपकी वैध चिंताओं को समझते हैं. हम स्पष्ट और दोटूक एकजुटता चाहते हैं."  वे नाटो के महासचिव येंस स्टॉल्टेनबर्ग के साथ एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित कर रहे थे. सीरिया पर तुर्की के हमले के दो दिन बाद नाटो के महासचिव ने अंकारा का दौरा किया है और वहां तुर्की के विदेश मंत्री से मुलाकात की है.

तुर्की ने बुधवार को सीरिया में कुर्द इलाके पर हवाई हमलों और आर्टिलरी हमलों के साथ लंबे समय से घोषित सैनिक कार्रवाई शुरू की. इसके पहले अमेरिका ने सीरिया में अपने कुर्द साथियों का साथ छोड़ने का फैसला किया था. चोवुसोग्लू ने सैनिक कार्रवाई को वैध कार्रवाई बताया लेकिन नाटो के सदस्यों के बीच इसकी कड़ी आलोचना हुई है. नाटो महासचिव स्टॉल्टेनबर्ग ने इतना भर कहा कि "नाटो सहयोगियों के बीच अलग अलग मत हैं." नाटो महासचिव ने कहा कि उन्होंने इलाके को अस्थिर बनाने पर गंभीर चिंता जताई है. उन्होंने कहा कि नाटो तुर्की को सैनिक संरचना में 5 अरब डॉलर की मदद देता है.

इसके पहले शुक्रवार को तुर्की के रक्षा मंत्रालय ने सीरिया में सैनिक कार्रवाई में पहले हताहतों की जानकारी दी. मंत्रालय ने कहा कि कुर्दों के वाईपीजी संगठन के लड़ाकों के साथ लड़ाई में तीन तुर्क सैनिक घायल हो गए जबकि उसने 49 "आतंकवादियों" को मारने का दावा किया. तुर्की वाईपीजी को प्रतिबंधित कुर्द संगठन पीकेके का साथी समझता है जो तुर्की में सरकार के खिलाफ संघर्ष कर रही है. लड़ाई में अब तक मरने वालों की संख्या 277 हो गई है. तुर्की का कहना है कि वह कुर्दों को पीछे धकेलना चाहता है और सीरिया में एक बफर जोन बनाकर वहां 10 से 20 लाख सीरियाई शरणार्थियों को बसाना चाहती है.

Syrien Militäroffensive der Türkei im Norden
तस्वीर: picture-alliance/AA/M.S. Alakus

भारत ने की आलोचना

इस बीच, भारत ने भी सीरिया पर तुर्की के हमले की आलोचना की है. एक असाधारण और रुखे वक्तव्य में भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने सैन्य आक्रमण को एकतरफा बताया है और कहा है कि भारत इससे बहुत चिंतित है. कुमार ने ये भी कहा की तुर्की का कदम इस भूभाग में स्थिरता और आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई को कमजोर कर सकता है. मानवीय और नागरिक संकट खड़ा होने की संभावना व्यक्त करते हुए कुमार ने कहा, "हम आह्वान करते हैं कि तुर्की संयम दिखाए और सीरिया की संप्रभुता और प्रादेशिक अखंडता का सम्मान करे." उन्होंने सभी मुद्दों का समाधान बातचीत के माध्यम से करने की अपील की.

भारत आम तौर पर दूसरे देशों पर ऊंगली नहीं उठाता है और उनके कदमों पर टिपण्णी नहीं करता है. पर तुर्की के आक्रमण को भारत ने बहुत गंभीरता से लिया है और उस पर अपनी प्रतिक्रिया दी है. जानकारों का मानना है कि तुर्की के खिलाफ इतना कड़ा रुख अपनाने की वजह पिछले कुछ दिनों में कश्मीर पर तुर्की के रवैये को लेकर दोनों देशों के रिश्तों में आई गिरावट है. कश्मीर पर 5 अगस्त के भारत सरकार के फैसलों का तुर्की ने समर्थन नहीं किया था और पाकिस्तान का साथ देते हुए भारत सरकार की आलोचना की थी. विदेश मंत्रालय ने इस मुद्दे पर तुर्की को आगाह किया था कि कश्मीर भारत का घरेलू मुद्दा है और तुर्की के कश्मीर से संबंधित बयान गलत, पूर्वाग्रह से ग्रसित और गैर-जरूरी हैं.

हालांकि भारत और तुर्की के बीच ऐतिहासिक संबंध रहे हैं, पर हाल में रिश्तों में तल्खी आ गई है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नवंबर 2015 में जी-20 समूह के एक शिखर सम्मलेन में तुर्की गए थे और वहां तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तय्यप एर्दोवान से भी मिले थे. राष्ट्रपति एर्दोवान भी कई बार भारत आ चुके हैं और उनकी पिछली भारत यात्रा मई 2017 में हुई थी, जिसके दौरान दोनों देशों के बीच कई समझौतों पर हस्ताक्षर भी हुए थे. दोनों देशों के बीच 2016-17 में  करीब 580 करोड़ डॉलर का व्यापार हुआ था, जिस में से 450 करोड़ मूल्य के उत्पाद भारत ने तुर्की को निर्यात किए थे.

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