क्या है मिशन शक्ति जिसका ऐलान खुद मोदी ने किया
२७ मार्च २०१९भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के नाम अपने संबोधन में बताया कि भारत ने एंटी सैटेलाइट मिसाइल (A-SAT) का सफल परीक्षण किया. इस परीक्षण के साथ ही भारत ए-सैट मिसाइल का परीक्षण करने वाला दुनिया का चौथा देश बन गया है. भारत ने लो अर्थ ऑरबिट में 300 किलोमीटर दूर एक उपग्रह को नष्ट कर इसका सफल परीक्षण किया.
इस सबका मतलब क्या है, सरल भाषा में समझते हैं.
क्या होता है सैटेलाइट और लो अर्थ ऑरबिट
सैटेलाइट यानी उपग्रह, वो छोटे खगोलीय पिंड जो किसी बड़े खगोलीय पिंड के चारों तरफ एक निश्चित समय में चक्कर लगाते रहते हैं. जैसे पृथ्वी एक बड़ा खगोलीय पिंड है और चंद्रमा एक छोटा खगोलीय पिंड. चंद्रमा पृथ्वी के चारों तरफ निश्चित कक्षा (ऑरबिट) में चक्कर लगाता है. इसके एक चक्कर का समय भी निश्चित लगभग 27 दिन होता है. चंद्रमा एक प्राकृतिक उपग्रह है. ऐसे ही वैज्ञानिकों द्वारा कुछ उपग्रह बनाए गए जो पृथ्वी की कक्षाओं में चक्कर लगाते हैं. इन्हें कृत्रिम उपग्रह कहा जाता है. ये नेविगेशन, टेलिकम्युनिकेशन और मौसम की जानकारी सहित दूसरे कई कामों में इस्तेमाल होते हैं. लाइव सैटेलाइट का मतलब उस वक्त काम कर रहा उपग्रह होता है.
कृत्रिम उपग्रह भी एक निश्चित समय अंतराल में अपनी कक्षा में पृथ्वी का एक चक्कर पूरा करते हैं. पृथ्वी की इन कक्षाओं को ऊंचाई के आधार पर चार हिस्सों में बांटा गया है.
लो अर्थ ऑरबिट (LEO)- पृथ्वी से 2000 किलोमीटर से कम ऊंचाई पर स्थित कक्षाओं को पृथ्वी की निचली कक्षा या लो अर्थ ऑरबिट कहते हैं.
मीडियम अर्थ ऑरबिट (MEO)- 2000 किलोमीटर की ऊंचाई से 35,786 किलोमीटर की ऊंचाई तक की कक्षा को मीडियम अर्थ ऑरबिट या पृथ्वी की मध्यम कक्षा कहा जाता है.
जियोसिंक्रोनस ऑरबिट (GSO)- 35,786 किलोमीटर ऊंचाई से 42,164 किलोमीटर की ऊंचाई तक की ऊंचाई वाली कक्षाएं जियोसिंक्रोनस ऑरबिट कहलाती हैं.
हाई अर्थ ऑरबिट (HEO)- जियोसिंक्रोनस ऑरबिट से ज्यादा ऊंचाई वाली कक्षाएं हाई अर्थ ऑरबिट या पृथ्वी की उच्च कक्षाएं कहलाती हैं.
लो अर्थ ऑरबिट में चक्कर लगाने वाले सैटेलाइट को LEO सैटेलाइट कहा जाता है. ये मुख्यत: कम्युनिकेशन के लिए काम आने वाले सैटेलाइट होते हैं.
क्या है मिशन शक्ति
मिशन शक्ति भारत का एंटी सैटेलाइट मिसाइल प्रोग्राम है जिसका सफल परीक्षण किया गया है. भारत ने लो अर्थ ऑरबिट में करीब 300 किलोमीटर की ऊंचाई पर एक चालू सैटेलाइट को एंटी सैटेलाइट मिसाइल से नष्ट कर दिया है. यह परीक्षण पहली बार किया गया है. तत्कालीन डीआरडीओ चीफ विजय सारस्वत ने बताया था कि साल 2012 में ही ए-सैट मिसाइल के बिल्डिंग ब्लॉक्स बना लिए थे. लेकिन परीक्षण अब किया गया है. इसका कारण है कि परीक्षण के लिए एक कृत्रिम उपग्रह को निशाना बनाया जाना था. सफल परीक्षण पर इसका मलबा अंतरिक्ष में बिखर जाता जिससे पहले से मौजूद सैटेलाइट्स को नुकसान होने का खतरा होता. ऐसे में पहले इसकी इलेक्ट्रॉनिक टेस्टिंग ही की गई. अब इसका वास्तविक परीक्षण भी सफल रहा है.
किन देशों के पास पहले से है ऐसी शक्ति़
भारत से पहले अमेरिका, रूस और चीन के पास ही एंटी सैटेलाइट मिसाइल की क्षमता थी. हालांकि आज तक किसी देश ने दूसरे देश के सैटेलाइट पर एंटी सैटेलाइट मिसाइल का इस्तेमाल नहीं किया है. डीआरडीओ के पूर्व प्रमुख के मुताबिक भारत की अग्नि-5 मिसाइल जिसकी मारक क्षमता 5,000 किलोमीटर है, से भी अंतरिक्ष में 600 किलोमीटर ऊंचाई तक हमला किया जा सकता है. ए-सैट हथियार की मारक क्षमता कम से कम 800 किलोमीटर ऊंचाई तक होनी चाहिए. भारत ने अब उस क्षमता का सफल परीक्षण कर लिया है.
अमेरिका ने यह क्षमता साल 1958 में हासिल की थी जबकि रूस ने 1964 और चीन ने 2007 में ए-सैट मिसाइलों का सफल परीक्षण किया था. लेकिन कभी दूसरे देश के सैटेलाइट को गिराने में इनका इस्तेमाल नहीं किया गया. इस्राएल का भी दावा है कि उसके पास ए-सैट मिसाइल हैं लेकिन कभी इनका परीक्षण नहीं किया गया है.
भारत को इससे क्या फायदा होगा
पिछले दो दशकों में भारत एक बड़ी अंतरिक्ष शक्ति के रूप में उभर कर सामने आया है. भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र के दोनों प्रमुख संस्थान इसरो और डीआरडीओ मिलकर नए कीर्तिमान स्थापित कर रहे हैं. इस परीक्षण के बाद भारत के पास किसी भी दुश्मन देश के लो ऑरबिट सैटेलाइट को मार गिराने की क्षमता है. ऐसा करने से भारत ऐसे देश के कम्युनिकेशन सिस्टम पर असर डाल सकता है. इस कदम के बाद भारत की रक्षा स्थिति मजबूत होगी.
क्या है मिशन शक्ति
मिशन शक्ति भारत का एंटी सैटेलाइट मिसाइल प्रोग्राम है जिसका सफल परीक्षण किया गया है. भारत ने लो अर्थ ऑरबिट में करीब 300 किलोमीटर की ऊंचाई पर एक चालू सैटेलाइट को एंटी सैटेलाइट मिसाइल से नष्ट कर दिया है. यह परीक्षण पहली बार किया गया है. तत्कालीन डीआरडीओ चीफ विजय सारस्वत ने बताया था कि साल 2012 में ही ए-सैट मिसाइल के बिल्डिंग ब्लॉक्स बना लिए थे. लेकिन परीक्षण अब किया गया है. इसका कारण है कि परीक्षण के लिए एक कृत्रिम उपग्रह को निशाना बनाया जाना था. सफल परीक्षण पर इसका मलबा अंतरिक्ष में बिखर जाता जिससे पहले से मौजूद सैटेलाइट्स को नुकसान होने का खतरा होता. ऐसे में पहले इसकी इलेक्ट्रॉनिक टेस्टिंग ही की गई. अब इसका वास्तविक परीक्षण भी सफल रहा है.
किन देशों के पास पहले से है ऐसी शक्ति़
भारत से पहले अमेरिका, रूस और चीन के पास ही एंटी सैटेलाइट मिसाइल की क्षमता थी. हालांकि आज तक किसी देश ने दूसरे देश के सैटेलाइट पर एंटी सैटेलाइट मिसाइल का इस्तेमाल नहीं किया है. डीआरडीओ के पूर्व प्रमुख के मुताबिक भारत की अग्नि-5 मिसाइल जिसकी मारक क्षमता 5,000 किलोमीटर है, से भी अंतरिक्ष में 600 किलोमीटर ऊंचाई तक हमला किया जा सकता है. ए-सैट हथियार की मारक क्षमता कम से कम 800 किलोमीटर ऊंचाई तक होनी चाहिए. भारत ने अब उस क्षमता का सफल परीक्षण कर लिया है.
अमेरिका ने यह क्षमता साल 1958 में हासिल की थी जबकि रूस ने 1964 और चीन ने 2007 में ए-सैट मिसाइलों का सफल परीक्षण किया था. लेकिन कभी दूसरे देश के सैटेलाइट को गिराने में इनका इस्तेमाल नहीं किया गया. इस्राएल का भी दावा है कि उसके पास ए-सैट मिसाइल हैं लेकिन कभी इनका परीक्षण नहीं किया गया है.
भारत को इससे क्या फायदा होगा
पिछले दो दशकों में भारत एक बड़ी अंतरिक्ष शक्ति के रूप में उभर कर सामने आया है. भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र के दोनों प्रमुख संस्थान इसरो और डीआरडीओ मिलकर नए कीर्तिमान स्थापित कर रहे हैं. इस परीक्षण के बाद भारत के पास किसी भी दुश्मन देश के लो ऑरबिट सैटेलाइट को मार गिराने की क्षमता है. ऐसा करने से भारत ऐसे देश के कम्युनिकेशन सिस्टम पर असर डाल सकता है. इस कदम के बाद भारत की रक्षा स्थिति मजबूत होगी.