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क्या खाएंगे: अगड़ों की मिलावट या दलित का शुद्ध अन्न

ओंकार सिंह जनौटी (रॉयटर्स)२३ सितम्बर २०१६

आप ऊंची जाति के हाथ का मिलावटी खाना खाना पसंद करेंगे या दलित के हाथ का शुद्ध और सेहतमंद खाना? इसी आइडिया के साथ एक दलित कारोबारी ने अपना कारोबार शुरू किया है.

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तस्वीर: Dalit Foods

चंद्रभान प्रसाद का बचपन भारत के आम बच्चों से अलग था. बचपन में ही उन्हें बार बार अहसास कराया गया कि वह दलित और अछूत हैं. जैसे जैसे उम्र बढ़ी भेदभाव भी बढ़ता गया. अगड़ी जातियों की ज्यादतियों से तंग आकर दलित पासी समुदाय के चंद्रभान प्रसाद ने हथियार उठाए. वह माओवादी बन गए और गरीब व भूमिहीनों किसानों के लिए लड़ने लगे. धीरे धीरे उन्हें हिंसा की राह भी अर्थहीन लगने लगी.

इस बीच चंद्रभान के परिवार के तीन सदस्य कैंसर से मारे गए. बस वहीं से चंद्रभान ने खाने पर ध्यान केंद्रित किया, "खाने में मिलावट एक बड़ी मुश्किल है और आज समाज में स्वास्थ्य को लेकर जितनी समस्याएं हैं, शायद उनकी सबसे बड़ी जड़ यही है."

Indien Dalit Food und Dalit Shop
चंद्रभान प्रकाशतस्वीर: Dalit Foods

हालात बदलने के इरादे से 58 साल के चंद्रभान कारोबार में उतरे. पत्नी के साथ मिलकर उन्होंने "दलित फूड्स" नामक कंपनी खोली. कंपनी इंटरनेट के जरिये मसाले, अचार और अनाज बेचती है. नई दिल्ली के दफ्तर से कारोबार चलाने वाले चंद्रभान कहते हैं, "मैं अलगाव और छुआछूत के साथ बड़ा हुआ, लेकिन भारत बदल चुका है. मैं देखना चाहता हूं कि जो लोग जन्मजात शुद्ध हैं वे मेरे प्रस्ताव पर कैसी प्रतिक्रिया देते हैं. मैंने 80 साल के स्वस्थ दलितों को देखा है जो कड़ी मेहनत करते हैं, शायद इसकी वजह यह है कि वे शुद्ध और अनप्रोसेस्ड खाना खाते हैं."

भारतीय संविधान के मुताबिक देश में जाति, भाषा, रंग और धर्म के आधार भेदभाव प्रतिबंधित है. लेकिन धार्मिक कर्मकांड कराने वाले पंडितों का व्यवहार अब भी सदियों पुरानी सोच से चल रहा है. भारत में कई जगहों पर आज भी दलितों को मंदिरों और जलस्रोतों में दाखिला नहीं मिलता है. कई ऊंची जातियां दलितों के हाथ लगे खाने को अशुद्ध मानती हैं.

Indien Dalit Food und Dalit Shop
दलित फूड्स के कई प्रोडक्टतस्वीर: Dalit Foods

भारत का पैकेज्ड फूड मार्केट तेजी से फैल रहा है. 2015 में यह 32 अरब डॉलर का कारोबार था. एसोचैम के मुताबिक 2017 तक यह 50 अरब डॉलर का कारोबार होगा. खाने पीने में मिलावट के बढ़ते मामलों के बीच ग्राहक शुद्धता को लेकर जागरुक भी हो रहे हैं.

चंद्रभान के मुताबिक बचपन में उन्हें और उनके परिवार को खुरदुरा खाना मिलता था. ऐसा खाना जो आम तौर पर नौकरों और मवेशियों के लिए रखा जाता था. इस खाने में बिना पॉलिस किया हुआ चावल और ज्वार-बाजरा होता था. चंद्रभान कहते हैं, "तब ज्वार-बाजरे को निचले तबके का खाना माना जाता था. आज वे इसे सुपरफूड कहते हैं. हम दलितों के खाने को इसी तरह लोकप्रिय करना चाहते हैं."

अब एक मशहूर होटल चेन भी दलित फूड्स के प्रोडक्ट खरीद रही है. चंद्रभान के मुताबिक शहरों में रह रहे भारतीय भी उनके प्रोडक्ट्स की बिक्री बढ़ा रहे हैं. बदलते वक्त के बारे में चंद्रभान कहते हैं, "हमने काफी तरक्की की है, लेकिन अब भी दलितों और अगड़ी जातियों के बीच समानता नहीं है. मेरा कारोबार एक सामाजिक प्रयोग भी है, जिसके जरिये मैं देखना चाहता हूं कि क्या भारत वाकई में बदला है, मैं देखना चाहता हूं कि क्या लोग शुद्ध खाने को लेकर अपने पूर्वाग्रहों से बाहर आने को तैयार हैं?"

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