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समाज

लॉकडाउनः गाय खा रही है स्ट्रॉबेरी

२ अप्रैल २०२०

स्ट्रॉबेरी दिखने में जितनी खूबसूरत है उतनी ही वह स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद है. वह ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करने, कैंसर को दूर रखने में कारगर है. लेकिन इन खूबियों के बावजूद किसान इसे बाजार तक नहीं पहुंचा पा रहे हैं.

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Indien Maharashtra Ein Bauer füttert seine Kuh mit Erdbeeren
तस्वीर: Reuters/R. Jadhav

पोषक तत्वों से भरपूर स्ट्रॉबेरी की खेती हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र और कुछ ठंडे इलाकों में होती है. देश ही नहीं विदेश में भी स्ट्रॉबेरी की बहुत मांग है. लेकिन कोरोना वायरस के कारण करोड़ों भारतीय जहां इसके फैलाव से बचने के लिए घरों में बंद हैं, वहीं पालतू जानवर स्ट्रॉबेरी और ब्रॉकली का भरपूर आनंद ले रहे हैं. भारत में 21 दिनों के लॉकडाउन के बीच किसान अपने उत्पाद को शहरों तक ट्रांसपोर्ट नहीं कर पा रहे हैं.

भारत में ऐसे उत्पाद की मांग गर्मियों में अधिक होती है, लेकिन देश में कृषि सप्लाई चेन में अव्यवस्था के कारण किसानों का माल बाजार तक नहीं पहुंच पा रहा है. मांग में आई अचानक कमी की वजह से लाखों किसान प्रभावित हो रहे हैं. भारत में कोरोना वायरस के संक्रमण के मामले 1,900 के पार चले गए हैं.

महाराष्ट्र के सतारा जिले में अपने दो एकड़ खेत में स्ट्रॉबेरी उगाने वाले किसान अनिल सलुनखे अब उसे गाय को खिला रहे हैं. अनिल कहते हैं, “पर्यटक और आइसक्रीम बनाने वाली कंपनियां आमतौर पर स्ट्रॉबेरी खरीदती हैं लेकिन अब यहां कोई पर्यटक नहीं आ रहा है.” अनिल को उम्मीद थी कि फसल बेचकर वह आठ लाख रुपये कमा लेंगे लेकिन अब तक वह ढाई लाख की लागत तक नहीं निकाल पाए हैं.



भारत के आईटी हब कहे जाने वाले बेंगलुरू के किसानों की भी हालत कुछ अच्छी नहीं है. मुनीशमप्पा ने 15 टन अंगूर की फसल को बेच नहीं पाने के कारण उसे पास के ही जंगल में फेंक दिया. उन्होंने अंगूर पैदा करने के लिए पांच लाख रुपये लगाए थे. यही नहीं  मुनीशमप्पा  ने आस पास के गांव वालों को मुफ्त में अंगूर ले जाने के लिए कहा, लेकिन कुछ ही लोग आए.
भारतीय अंगूर का निर्यात यूरोप में भी होता है लेकिन यूरोप ने पिछले कुछ हफ्तों में खरीद में तेजी से कटौती की है, क्योंकि वहां भी वायरस के कारण भारी तबाही मची हुई है.


महंगे फूल उगाने वाले किसान भी शादियों के रद्द होने के कारण परेशान हैं. शादी के दौरान महंगे फूलों की मांग बहुत अधिक होती है. किसान राहुल पवार कहते हैं, “गर्मी में एक फूल 15 से 20 रुपये के बीच बेचता हूं. अब हाल यह है कि कोई एक रुपए में भी खरीदने को तैयार नहीं है.” राहुल अब फूलों को तोड़ कर कंपोजिट खाद बनाने के लिए गड्ढे में डाल रहे हैं. फूलों के एक और किसान सचिन शेलर कहते हैं कि उनकी अच्छी कमाई गर्मी के दौरान होती है लेकिन इस अहम समय में बिक्री ठप्प हो गई है.
एए/सीके (रॉयटर्स)

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