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नोट बदलवाने का आखिर दिन: क्या खोया, क्या पाया

३० दिसम्बर २०१६

एक हजार और 500 रुपये के पुराने नोट बैंकों में जमा कराने की समयावधि खत्म होने के साथ ही लोगों की नजरें इस कदम के नतीजों पर टिक गई हैं.

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Indien Mumbai Proteste gegen Abschaffung von Geldscheinen
तस्वीर: Getty Images/AFP/I. Mukherjee

8 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक हजार और 500 रुपये के नोट बंद करने का ऐलान किया था. ऐलान के वक्त उन्होंने कहा था कि यह आतंकवाद, काले धन और भ्रष्टाचार के खिलाफ एक कदम है. उन्होंने लोगों से 50 दिन मांगे थे और कहा था कि इतने दिन की मुश्किलों के बाद राह आसान हो जाएगी. यह एक बड़ा फैसला था क्योंकि देश के बाजार में मौजूद 86 फीसदी करंसी नोटों को एकदम कागज के रद्दी टुकड़े में बदल दिया गया था. पहले पहल तो लोगों ने इस कदम की तारीफ की थी लेकिन वक्त बीतने के साथ साथ दिक्कतें कम होने के बजाय बढ़ती चली गईं. बैंकों में कैश उपलब्ध नहीं था. लंबी लंबी लाइनों में लगकर लोग अपना ही पैसा पाने के लिए बेबस खड़े थे. दर्जनों लोगों ने इन लाइनों में जान भी गंवा दी. और साथ ही रोज के हिसाब से बदलते नियमों के कारण भी लोगों को भारी परेशानी उठानी पड़ी.

तस्वीरों में, दुनिया के सबसे महंगे नोट

अब जबकि प्रधानमंत्री की मांगी मोहलत खत्म हो गई है तो लोग जानना चाहेंगे कि पूरे देश में मची इस उथल-पुथल से हासिल क्या हुआ. साल के दूसरे महीने में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव हो सकते हैं और सबकी नजर यूपी की जनता के फैसले पर टिकी है. राजनीतिक विश्लेषक देवेन चौधरी कहते हैं, "इस नीति का पहला असली टेस्ट यूपी चुनाव में होगा. मुझे तो नहीं लगता कि इस नीति से बीजेपी को कुछ फायदा होगा क्योंकि कैश की कमी का दर्द ग्रामीण इलाकों और छोटे उद्योगों तक अब भी पहुंच रहा है. लोगों में एक गुस्सा दबा हुआ है जो जल्दी ही बाहर आएगा. और बीजेपी को यह नीति महंगी पड़ेगी."

नोटबंदी की नीति ने सरकार और खासकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बैकफुट पर ला दिया है. उन्होंने काले धन और भ्रष्टाचार से लड़ने के जिस वादे के साथ नोटबंदी का ऐलान किया था, उसे छोड़कर फिर वह देश को कैशलेस इकॉनमी की ओर ले जाने की बात करने लगे थे. लेकिन लोगों की परेशानियां कम नहीं हुई हैं. खासकर ग्रामीण इलाकों में कैश की कमी के कारण काफी मुश्किलें हुई हैं. किसान अपनी फसल नहीं बेच पए और छोटे व्यापारियों की आय में भी कमी के संकेत हैं. हालांकि छोटे दुकानदारों तक ने प्रधानमंत्री के कैशलेस हो जाने के आह्वान का सकारात्मक जवाब दिया लेकिन एक सच्चाई यह भी है कि बहुत से उद्योगों से लोगों को नौकरी से निकाला जा रहा है.

अब एटीएम के बाहर लाइनें जरूर छोटी हो गई हैं लेकिन ज्यादातर एटीएम से 2000 का नोट ही मिलता है जो अपने आप में एक समस्या है क्योंकि इसका खुला लेना आसान काम नहीं है. लोग 31 मार्च तक रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया में अपने पुराने नोट बदलवा सकते हैं और उसके बाद पुराने नोट रखना गैरकानूनी होगा. सरकार ने एक अध्यादेश लाकर 10 से ज्यादा पुराने नोट रखने को भी अवैध कर दिया है जिसके लिए 10 हजार रुपये का जुर्माना लग सकता है.

देखिए, ऐसे बनते हैं करारे नोट

अर्थशास्त्रियों का मानना है कि इस नीति का असर भारत के आर्थिक विकास पर भी पड़ेगा. रेटिंग एजेंसी फिच की सहयोगी इंडिया रेटिंग्स एंड रिसर्च के सुनील कुमार सिन्हा कहते हैं, "आर्थिक विकास तो प्रभावित हुआ है. व्यापार पर बहुत बुरा असर पड़ा है. कर्ज लेने के लिए लोग कहां हैं? बैंकों के फंड की कीमतें भी गिर रही हैं. हो सकता है कि बैंकों को कर्ज लेने वाले लोग ही ना मिलें."

रेटिंग एजेंसी फिच ने पहले भारत की जीडीपी ग्रोथ का अनुमान 7.4 फीसदी बताया था जिसे कम करके अब 6.9 फीसदी कर दिया गया है. अर्थशास्त्री कहते हैं कि लंबे समय में भारत को इसका फायदा हो सकता है कि टैक्स रेवेन्यू बढ़ेगा, लेकिन ऐसा तभी होगा जबकि बंद किए गए करंसी नोटों की जगह नए नोटों की पूरी सप्लाई हो. डन एंड ब्रैडशीट नामक एजेंसी में वरिष्ठ अर्थशास्त्री अरुण सिंह कहते हैं, "एक बार जब नए नोट पूरी तरह अर्थव्यवस्था में आ जाएंगे तो 2018 की दूसरी तिमाही में कुछ सुधार दिखेगा."

लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अब भी कह रहे हैं कि उन्होंने देश की भलाई के लिए एक सख्त कदम उठाया है. उन्होंने कहा कि अगर मैं छोटे राजनीतिक फायदे देखता तो शायद यह कदम ना उठाता लेकिन आने वाले समय में देश को लाभ पहुंचाने के लिए सख्त फैसले लिए हैं.

एके/वीके (एएफपी)