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कोख के आखिरी सौदे पर महिलाओं को सता रहा है डर

२३ जनवरी २०१७

सरकार सरोगेसी पर प्रतिबंध लगाकर महिलाओं की दशा में सुधार करना चाहती है लेकिन विशेषज्ञ इससे इत्तेफाक नहीं रखते. इनका मानना है कि सरकार को इसके नियमन की दिशा में कार्य करना चाहिए.

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Indien Leihmutterschaft - Surrogacy Centre India (SCI) clinic in Neu-Delhi
तस्वीर: Getty Images/AFP/S. Hussain

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से सटे गुरुग्राम के रिहायशी इलाके में एक घर है, जो आम घरों के मुकाबले बिल्कुल अलग है. इस घर में गर्भावस्था के दौर से गुजर रही वे महिलाएं रह रही हैं जिनके लिए गर्भ धारण मातृत्व सुख से इतर एक पेशा भी है. ये महिलाएं अब रातदिन बस यही दुआ कर रही हैं कि उनकी संतानों के जन्म में किसी प्रकार की अड़चन न आए, नहीं तो बड़ी रकम पाने का मौका इनके हाथ से निकल सकता है.

जैसे-जैसे भारत, कमर्शियल सरोगेसी पर प्रतिबंध लगाने की ओर बढ़ रहा है यहां रहने वाली हर महिला की कोख की मांग में भी इजाफा हुआ है. अगर संसद अगले सत्र में इस विधेयक पर अपनी मुहर लगा देता है तब ये महिलाएं अपनी कोख को किराये पर देने वाली देश की आखिरी महिलाएं होंगी. 15 साल पुराने कोख की खरीद-फरोख्त के इस कारोबार की कीमत तकरीबन 2.3 अरब डॉलर सालाना लगाई गई है.

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देश का सरोगेसी कारोबार, महिला अधिकारों के लिए लड़ने वाली संस्थाओं के निशाने पर रहा है. ये संस्थाएं इन सरोगेसी क्लीनिक्स को अमीरों के लिए बच्चे पैदा करने वाली फैक्ट्री कहती आई हैं. इन संस्थाओं का कहना है कि नियम-कानूनों में कमी के चलते गरीब और अनपढ़ महिलाएं यहां-वहां किसी भी समझौते पर हस्ताक्षर कर देती हैं.

ऐसे ही एक सरोगेसी केंद्र में रह रहीं 32 वर्षीय रजिया सुल्ताना, आज से छह महीने पहले तक इन केंद्रों के लिए एक एजेंट की भूमिका में थी और हर एक रेफरल पर 5 हजार रुपये वसूलती थी. लेकिन जिस दिन रजिया ने पहली बार प्रतिबंध की खबर सुनी उसने स्वयं सेरोगेट मां बनने का फैसला किया. रजिया के मुताबिक, इस फैसले में उनके बच्चे उनका साथ दे रहे हैं क्योंकि किडनी बेचने से ज्यादा बेहतर गर्भधारण करना है. रजिया कहती हैं कि ये तो छोटी कंपनियां हैं, हमारे पास पैसा कमाने का कोई और तरीका नहीं है.

सरकार का मानना है कि सरोगेसी पर प्रतिबंध से अनैतिक कारोबार पर रोक लगेगी. स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के मुताबिक सरकार सरोगेसी में लिप्त महिलाओं के स्वास्थ्य को लेकर चिंतित है, साथ ही सरकार ऐसे बच्चों के कानूनी और वित्तीय अधिकारों को भी सुनिश्चित करना चाहती है.

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गुरुग्राम में अपनी कोख का कारोबार करती ये अधिकतर महिलाएं बाहर से आकर यहां रह रही हैं. इन महिलाओं को काम में मेहनताना इतना कम मिलता था कि वे इस कारोबार में शामिल हो गईं. 35 साल की रुबी कुमारी बताती हैं कि जिस दिन उन्होंने सरोगेसी के लिए हामी भरी थी, उसी दिन 50 हजार रुपये का एडवांस मिला था. उसी दिन उन्होंने अपनी बेटी का दाखिला अंग्रेजी स्कूल में कराया था. यहां रहने वाली हर एक महिला की अपनी एक अलग कहानी है.

सरोगेसी कानून के विशेषज्ञ कहते हैं कि अगर सरकार वाकई गरीब महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करना चाहती है तो सरकार को इसके नियमन की दिशा में कार्य करना चाहिए.

इंडियन सरोगेसी लॉ सेंटर के हरि रामासुब्रमण्यन के मुताबिक सरोगेसी विधेयक में महिलाओं की सुरक्षा से जुड़े कोई प्रावधान नहीं हैं, बस ऐसा माना जा रहा है कि सरोगेसी पर प्रतिबंध महिलाओं की दशा में सुधार करेगा.

विशेषज्ञों का मानना है कि इस प्रतिबंध से सरोगेसी का गुप्त कारोबार बढ़ेगा और महिलाओं के स्वास्थ्य का जोखिम बढ़ेगा.

एए/वीके (रॉयटर्स)