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महामारी के बाद भारत में असमानता घटीः रिपोर्ट

विवेक कुमार
६ जनवरी २०२२

अमेरिका की एक गैर सरकारी संस्था एनबीईआर ने एक अध्ययन के बाद कहा है कि महामारी के दौरान भारत में असमानता कम हुई है. ऐसा दो आधार पर आंका गया है.

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तस्वीर: Pradeep Gaur/Zumapress/picture alliance

पिछले महीने प्रकाशित हुए एक अध्ययन के नतीजे कहते हैं कि भारत में महामारी के दौरान असमानता कम हुई है. अमेरिकी संस्था नेशनल ब्यूरो ऑफ इकोनॉमिक रिसर्च ने एक अध्ययन के बाद कहा है कि सख्त कोविड लॉकडाउन के बाद भारत में असमानता में कमी आई है.

‘इनइक्वॉलिटी इन इंडिया डिक्लाइन्ड ड्यूरिंग कोविड' शीर्षक से प्रकाशित इस अध्ययन के नतीजों की अभी अन्य शोधकर्ताओं ने समीक्षा नहीं की है. शोध कहता है कि दो अर्थों में भारत में कोविड के दौरान असमानता कम हुई है.

यह शोध स्टर्न स्कूल ऑफ बिजनस के अर्पित गुप्ता, न्यू यॉर्क यूनिवर्सिटी के अनूप मलानी और शिकागो लॉ स्कूल के बार्टोस वोदा न मिलकर किया है. इस शोध के मुताबिक, "भारत में धनी लोगों के धन में गरीबों के मुकाबले ज्यादा गिरावट आई है. दूसरे, बहुत थोड़ी सी गिरावट उपभोग को लेकर असमानता में भी देखी गई है.”

अन्य शोध कुछ और कहते हैं

शोध के लिए आंकड़े सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी के कंज्यूमर पिरामिड्स हाउसहोल्ड सर्वे (सीपीएचएस) द्वारा किए गए अध्ययन से लिए गए थे. सेंटर ने 1.97 लाख घरों का सर्वे करने के बाद अपनी वेबसाइट पर ये आंकड़े उपलब्ध करवाए हैं जो जनवरी 2015 से जुलाई 2021 के बीच का हाल कहते हैं.

इस शोध के दिलचस्प नतीजों में से एक यह भी है कि लॉकडाउन हटाए जाने के बाद आय की असमानता घटी है, जो इस दौरान भारत में आय आधारित असमानता पर हुए अन्य शोध के नतीजों के उलट है. मसलन वैश्विक असमानता रिपोर्ट 2022 के मुताबिक भारत के 10 प्रतिशत धनी लोगों के पास निचले 50 प्रतिशत लोगों से करीब 96 गुना ज्यादा धन है.

इसी तरह गैर सरकारी संस्था ऑक्सफैम इंटरनेशनल का एक अध्ययन कहता है कि 2021 में भारत के 1 प्रतिशत अमीरों का देश की कुल संपत्ति का 77 प्रतिशत हिस्से पर कब्जा है.

क्या हैं तर्क?

अपने नतीजों के लिए एनबीईआर ने जो तर्क दिए हैं उनमें सांख्यिकी विज्ञान की तकनीक गिनी कोएफिशिएंट्स का हवाला दिया गया है. शोधकर्ता कहते हैं कि गिनी कोएफिशिएंट्स भारत में असमानता की जो तस्वीर पेश करते हैं वह ज्यादा लुभावनी नहीं है क्योंकि कोविड लॉकडाउन के दौरान असमानता ना सिर्फ बढ़ी थी बल्कि जुलाई 2020 तक यह महामारी से पहले वाले स्तर पर लौट चुकी थी.

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इस शोध का एक तर्क यह भी है कि असमानता में गिरावट 2018 में शुरू हुई थी. इस चलन को लॉकडाउन ने रोक दिया लेकिन एकबार तालाबंदी हटाई गई तो असमानता में गिरावट दोबारा शुरू हो गई. शोधकर्ताओं का सीधा तर्क है कि अमीरों की आय कम होती है तो असमानता घटती है. इसलिए भारत में असमानता घटने की वजह अमीरों की कमाई में आई कमी को माना जा सकता है.

हालांकि, शोधकर्ता इस बात को भी मानते हैं कि महामारी के दौरान भारत में गरीबी बहुत तेजी से बढ़ी लेकिन वे कहते हैं कि "असमानता आंकने के लिए गरीबी में बढ़ोतरी का आंकड़ा नाकाफी है.” स्टडी कहती है कि लॉकडाउन से पहले शहरी इलाकों में गरीबी 40 प्रतिशत थी जो लॉकडाउन के दौरान बढ़कर 70 प्रतिशत पर पहुंच गई. यहां गरीब उसे माना जा रहा है जो वर्ल्ड बैंक के मानक यानी 1.9 डॉलर प्रतिदिन से कम कमाता है.

शोधकर्ता कहते हैं, "लॉकडाउन के बाद गरीबी में कमी आई और आय व उपभोग बढ़ा. लेकिन यह महामारी से पहले के स्तर पर नहीं पहुंच पाया है. फिर भी शहरी और ग्रामीण दोनों इलाकों में असमानता घटी क्योंकि अमीरों की संपत्ति कम हुई.”

क्यों घटी अमीरों की आय?

शोध इस बात पर भी चर्चा करता है कि अमीरों की संपत्ति में कमी की क्या वजह रही. शोधकर्ता कहते हैं कि भारत में धनी लोगों की आय के स्रोत या तो सर्विस सेक्टर है या फिर वह धन है जो उनके पास पहले से मौजूद धन के कारण पैदा होता है. चूंकि लॉकडाउन का असर इन दोनों पर पड़ा, इसलिए उनकी संपत्ति में कमी आई.

शोधकर्ता कहते हैं, "सबसे अधिक आय वाले लोगों में बड़ा हिस्सा सर्विस सेक्टर का है. उस सेक्टर पर महामारी के दौरान कम हुए खर्च का सबसे ज्यादा असर पड़ा. अमीरों की तन्ख्वाहों में ज्यादा कमी हुई और लॉकडाउन हटाए जाने के बाद आई बेरोजगारी का भी उन पर नकारात्मक असर पड़ा.”

इस शोध के मुताबकि गरीबों के रोजगार पर ज्यादा असर लॉकडाउन के दौरान हुआ लेकिन लॉकडाउन हटते ही उन्हें काम भी जल्दी मिल गया. शोधकर्ता कहते हैं, "रोजगार की स्थिति बाकी सभी के लिए लगभग पूरी तरह सुधर गई लेकिन सबसे ज्यादा आय वाले तबके में लॉकडाउन के बाद रोजगार की स्थित उतनी तेजी से नहीं सुधरी.”

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