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पर्यावरण परिवर्तन पर रिपोर्ट पर क्या बोली दुनिया

१० अगस्त २०२१

संयुक्त राष्ट्र द्वारा जलवायु परिवर्तन पर जारी की गई रिपोर्ट के बाद दुनियाभर के नेताओं और पर्यावरण कार्यकर्ताओं में चिंता है और इस बात पर सहमति भी, कि बड़ा संकट टालने के लिए फौरन कदम उठाए जाने की जरूरत है.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa/O. Berg

सोमवार को जलवायु परिवर्तन पर अंतर्देशीय पैनल (IPCC) द्वारा जारी रिपोर्ट पर दुनियाभर से प्रतिक्रियाएं आ रही हैं. इस रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि 15 साल के भीतर पृथ्वी का औसत तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा बढ़ जाएगा.

रिपोर्ट में यह स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि तापमान में वृद्धि की वजह इंसान द्वारा उत्सर्जन ही है और इस कारण दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में संकट पैदा हो रहे हैं.

ग्रेटा थुनबर्गः यह आपातकाल है

हमारे ग्रह का औसत तापमान पहले ही 1.1 डिग्री तक बढ़ चुका है और बहुत कम देश हैं जो उत्सर्जन को कम करने के लिए जरूरी कदम उठाने की दिशा में बढ़ रहे हैं. पर्यावरण कार्यकर्ता ग्रेटा थुनबर्ग कहती हैं कि इस रिपोर्ट में कुछ भी ऐसा नहीं है जिस पर हैरत हो.

18 वर्षीय कार्यकर्ता ने ट्विटर पर लिखा, "यह रिपोर्ट बस उन्हीं बातों को पुष्ट करती है, जो हम हजारों रिपोर्टों और शोधों से जान चुके हैं – कि यह आपातकाल है.”

थुनबर्ग ने कहा, "हम अब भी सबसे बुरे परिणामों से बच सकते हैं. लेकिन जो कुछ आज चल रहा है, वैसे नहीं. और संकट को संकट की तरह समझे बिना भी नहीं.”

पानी को तरसती धरती की पांचवीं बड़ी नदी

रिपोर्ट के संदर्भ में थुनबर्ग ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स से कहा कि वह स्कॉटलैंड में संयुक्त राष्ट्र के पर्यावरण सम्मेलन में हिस्सा लेंगी. पहले उन्होंने कहा था कि दुनियाभर में कोविड वैक्सीन के असमान वितरण के विरोध में वह इस सम्मेलन का बहिष्कार करेंगी.

नाईजीरिया के कार्यकर्ता ओलादोसू आडिनिके की प्रतिक्रिया भी ग्रेटा थुनबर्ग जैसी ही थी. उन्होंने ट्विटर पर लिखा कि "प्रभावों के मौजूदा अनुमानों से निपटने के लिए दुनियाभर के नेताओं की प्रतिबद्धता समुचित नहीं है.”

‘जीवाश्म ईंधनों को मौत की सजा'

संयुक्त राष्ट्र महासचिव अंटोनियो गुटेरेश ने कहा कि इस रिपोर्ट को इन्सानियत के लिए ‘कोड रेड' यानी खतरे की घंटी बताया. उन्होंने कहा, "इससे पहले कि कोयला और जीवाश्म ईंधन ग्रह को नष्ट कर दें”, इस रिपोर्ट को उनके लिए मौत की सजा का ऐलान बन जाना चाहिए.

अमेरिका के पर्यावरण मामलों पर दूत जॉन केरी ने कहा कि आईपीसीसी की रिपोर्ट बताती है कि अब और ज्यादा देर नहीं की जा सकती और "पर्यावरण परिवर्तन हमारे ग्रह को अभूतपूर्व रूप से बदल रहा है, जिसके असर घातक हैं और हमें दिखाई दे रहे हैं, जैसे कि गर्मी, बारिश, जंगलों की आग और सूखा पहले से ज्यादा बार हो रहे हैं और पहले से ज्यादातर गंभीर हैं.”

भूरी बर्फ पिघलने से धरती पर संकट

अपने यहां एक कोयला खदान खोलने की योजना का विरोध झेल रहे हैं ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने कहा, "हम जानते हैं कि ग्लोबल वॉर्मिंग को रोकने के लिए क्या किया जाना चाहिए. कोयले को इतिहास में धकेलकर स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों की ओर बढ़ना होगा, कुदरत की रक्षा करनी होगी और मोर्चे पर सबसे आगे खड़े देशों को जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए धन उपलब्ध कराना होगा.”

यूरोपीय संघ में यूरोपीयन ग्रीन डील के प्रमुख फ्रान्स टिमरमान ने ट्विटर पर अपनी प्रतिक्रिया दी. उन्होंने कहा, "अगर हम अभी निर्णात्मक कदम उठाएं तो बहुत देर नहीं हुई है.” जर्मनी में भी नेताओं ने संकट ने निपटने के लिए ज्यादा सहयोग की जरूरत पर जोर दिया.

बढ़ेगी बेरहम मौसम की मार

रिपोर्ट की लेखकों में से एक फ्रीडरीके ओटो ने डॉयचे वेले से बातचीत में कहा कि इसमें अब कोई उलझन नहीं है कि इन्सान द्वारा किया जा रहा ग्रीनहाउस उत्सर्जन ही तापमान की उस बढ़ोतरी के लिए जिम्मेदार है, जिसे हम महसूस कर रहे हैं.

ओटो ने कहा कि बेहद गर्मी, बाढ़ और सूखे जैसी घटनाएं जो हम अभी देख रहे हैं, और ज्यादा होंगी. वह बताती हैं, "इसके साथ ही, हम चाहे औसत तापमान की वृद्धि को कितना भी रोक लें, समुद्र के जलस्तर में वृद्धि को आने वाले दशकों और सदियों तक बढ़ने से नहीं रोक पाएंगे क्योंकि यह बहुत धीमी गति से जलवायु व्यवस्था पर प्रतिक्रिया है.”

देखिए, जर्मनी में बाढ़ से पहले और बाद की तस्वीरें

ओटो ने इस बात पर भी जोर दिया कि आईपीसीसी की रिपोर्ट पर्यावरण का विज्ञान है जो सरकारों को नीति बनाने के लिए जरूरी आंकड़े उपलब्ध कराता है लेकिन कोई नीति-निर्देशक सिफारिश नहीं करता. उन्होंने कहा कि अगर हम तापमान को 1.5 डिग्री से ज्यादा बढ़ने से रोकना चाहते हैं हमें इस सदी के आधे में ही शून्य उत्सर्जन को हासिल करना होगा.

रिपोर्टः आलेक्स बेरी

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