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समाज

महामारी का खेल, जेल से घर नहीं जाना चाहते कैदी

चारु कार्तिकेय
१ जून २०२१

किसी के लिए घर जेल बन गया है, तो किसी के लिए जेल ही घर है. कोविड-19 महामारी और तालाबंदी के असर से प्रभावित इस नई दुनिया में जेल की अवधारणा को देखने का नजरिया बदल रहा है.

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Indien Tihar Gefängnis in New Delhi
जेल में खुद को ज्यादा सुरक्षित महसूस कर रहे हैं कई कैदीतस्वीर: ROBERTO SCHMIDT/AFP/GettyImages

महाराष्ट्र से खबर आई है कि वहां कुछ कैदी ऐसे भी हैं जिन्हें महामारी की वजह से कुछ दिनों के लिए जेल से बाहर रहने की इजाजत दे दी गई है, लेकिन वे कह रहे हैं कि वो जेल में ही ठीक हैं. पूरे राज्य में कम से कम 26 ऐसे कैदियों का मामला सामने आया है. वे आपात पैरोल के लिए योग्य पाए गए हैं लेकिन इन्होंने जेल से बाहर जाने से मना कर दिया है. कुछ का कहना है कि उन्हें इन हालात में बाहर जाकर कोई नौकरी नहीं मिलेगी और वे अपने परिवार पर बोझ बन जाएंगे.

जेल के अंदर कम से कम सरकार उनका ख्याल तो रख रही है और जेल में काम करके वे कुछ पैसे भी कमा ले रहे हैं. इन कैदियों में कुछ ऐसे भी हैं जिनका ना तो कोई परिवार है और ना कोई और सामाजिक सहारा. ऐसे कैदियों को डर है कि बाहर जा कर अगर उन्हें संक्रमण हो गया और वे बीमार हो गए, तो कौन उनकी देखभाल करेगा और जरूरत पड़ने पर कौन अस्पताल ले जाएगा.

जेलों के कुछ अधिकारियों का यह भी दावा है कि उनकी जेलों में इतने अच्छे इंतजाम हैं कि कुछ कैदी बाहर के मुकाबले जेल के अंदर संक्रमण से ज्यादा सुरक्षित महसूस करते हैं. यह खबर अक्सर भारत में जेलों के हालात के बारे में कही जाने वाली बातों से ठीक उल्टी तो है ही, संभव है यह उन लोगों को भी अचरज में डाल दे जिन्होंने पिछले सवा साल से घर में बंद होने की वजह से अपने घर को जेल और खुद को कैदी बताना शुरू कर दिया है.

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लॉकडाउन वाली जेल

यह बात शायद सही है कि पूरी दुनिया में लोग अब महामारी से डर कर घर के अंदर बंद रहने से उक्ता गए हैं. अमेरिका और यूरोप से आ रही तस्वीरों को देखिए. अमेरिका में पहली बार महामारी कुछ काबू में लग रही है. यूरोप के कई देश कोरोना की दूसरी लहर से बाहर निकल रहे हैं. महामारी की रोकथाम के लिए जो प्रतिबंध महीनों से लागू थे उन्हें धीरे धीरे हटाया जा रहा है. पर्यटन स्थल खुल रहे हैं और होटल, रेस्तरां बाहें पसारे ग्राहकों को एक बार फिर बुला रहे हैं.

होटलों की तो कमाई बंद थी. इसलिए साल भर हुए नुकसान की भरपाई करने का मौका वो भला क्यों गंवाएंगे. लेकिन लोग भी अपने पैसे खर्च कर और संक्रमण का जोखिम उठा कर बाहर की तरफ दौड़ पड़े हैं. इसे जेल से छूटे कैदियों जैसा व्यवहार कहा जा सकता था, लेकिन महाराष्ट्र के उन 26 कैदियों ने इस उदाहरण को निरर्थक साबित कर दिया है. घर में बंद रहने की, चेहरा छिपाए रखने की और दूसरों से दूरी बनाए रखने की यह एक नई, अजीब दुनिया है और इस दुनिया में जेल के मायने बदल गए हैं. किसी के लिए घर जेल बन गया है तो किसी के लिए जेल ही घर है.

आजादी का अर्थ

लेकिन मुमकिन है कि इसी बहाने हम उस सरल से विचार को समझ पाएंगे जिसकी वजह से भारत के सुप्रीम कोर्ट ने कभी "जमानत ही कायदा है और जेल अपवाद" का न्यायिक सिद्धांत रखा था. महामारी के बाद की दुनिया पहले से ज्यादा खूबसूरत होगी अगर वो जाते जाते हमें "राइट टू लिबर्टी" या आजादी के अधिकार का सही मतलब सिखा जाए. सोच कर देखिए. आप अपने घर में हैं. अपने परिवार के बीच हैं. आपके इर्द गिर्द आपकी जरूरत का सारा सामान है. यहां तक कि जिस चीज की कमी हो जा रही है वो भी आपके दरवाजे पर पहुंचा दी जा रही है, और आप इसे जेल कह रहे हैं.

तो वो लोग उस जगह को क्या कहें जहां की नीरस और अपरिचित चारदीवारी में वे अकेले जबरन बंद पड़े हुए हैं? और बंद भी क्यों? सिर्फ इसलिए क्योंकि उनका विश्वास ऐसे विचारों में हैं जो उन ताकतों से मेल नहीं खाता जो सत्ता में हैं. उनमें से कई बूढ़े हैं और तरह तरह की बीमारियों से पीड़ित हैं. कई युवा हैं, विद्वान हैं और एक उज्जवल भविष्य के हकदार हैं. कुछ को जेल के अंदर ही कोविड भी हो गया. उनमें से कुछ के करीबी लोग गुजर गए लेकिन उन्हें आखिरी अलविदा कहने का मौका नहीं मिला. अगर आप जेल में हैं तो वो जहां हैं उसे क्या कहेंगे?

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