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पाक ने ही तोड़ी थी जनमत संग्रह की शर्त

अशोक कुमार२२ सितम्बर २०१६

पाकिस्तान कश्मीर में संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों के मुताबिक जनमतसंग्रह कराने की बात कहना नहीं भूलता. लेकिन इतिहास को टटोलें तो इस जनमत संग्रह की शर्तों को सबसे पहले पाकिस्तान ने ही मानने से इनकार कर दिया था.

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Indien Protesten in Kashmir
तस्वीर: picture-alliance/Pacific Press/F. Khan

बात जब भी कश्मीर मुद्दे की उठती है तो पाकिस्तान वहां संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों के मुताबिक जनमत संग्रह कराने की बात कहना नहीं भूलता. लेकिन इतिहास को टटोलें तो इस जनमत संग्रह की शर्तों को सबसे पहले पाकिस्तान ने ही मानने से इनकार कर दिया था.

बंटवारे के बाद जब कश्मीर को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच झगड़ा शुरू हो गया तो मामला संयुक्त राष्ट्र में पहुंचा. 21 अप्रैल 1948 को सुरक्षा परिषद ने ‘यूनाइटेड नेशंस सिक्योरिटी काउंसिल रेजोल्यूशन 47' पास किया. इस प्रस्ताव में कहा गया कि कश्मीरी किसके साथ रहना चाहते हैं, इसका फैसला जनमत संग्रह के जरिए होगा. प्रस्ताव में कहा गया कि जनमत संग्रह निष्पक्ष हो, इसके लिए पाकिस्तान अपने वे सैनिक कश्मीर से हटाने होंगे जो वहां लड़ने गए थे और भारत से भी कश्मीर में अपनी सैन्य मौजूदगी कम से कम करने को कहा गया. प्रस्ताव के मुताबिक सिर्फ इतने ही भारतीय सैनिक वहां रहें, जितने व्यवस्था बनाए रखने के लिए जरूरी हों.

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ब्रितानी लेखक और सैन्य इतिहासकार विक्टोरिया शोनफील्ड अपनी किताब ‘कश्मीर इन कंफ्लिक्ट’ में लिखती हैं कि जनमत संग्रह न होने पाने की पहली वजह थी पाकिस्तान का अपने सैनिक हटाने से इनकार करना. दूसरा, इसके बाद जम्मू कश्मीर में जो चुनाव हुए, उसमें जनता ने भारत में विलय पर मुहर लगा दी. इसके बाद भारत ने कहा कि जनमत संग्रह कराने की कोई जरूरत नहीं है. जनता ने चुनावों में अपनी राय जाहिर कर दी है.

भारत और पाकिस्तान के बीच 1949 में हुई जंग के नजीते में कश्मीर का दो तिहाई हिस्सा भारत के नियंत्रण में चला गया जिसमें लद्दाख, जम्मू और कश्मीर घाटी शामिल है जबकि एक तिहाई हिस्सा पाकिस्तान के नियंत्रण में. अपने नियंत्रण वाले कश्मीर के एक हिस्से को पाकिस्तान ‘आजाद कश्मीर' कहता है जबकि बाकी बचा हिस्सा ‘नॉर्दर्न एरियाज' या फिर गिलगित बल्तिस्तान कहा जाता है.

1980 के दशक में कश्मीर घाटी में उग्रवाद शुरू हो गया. अलगगावादियों का कहना है कि उन्होंने कभी अपनी किस्मत का फैसला करने का अधिकार नहीं दिया गया और जनमत संग्रह की मांगें फिर से उठने लगीं. हालांकि जनमत संग्रह को लेकर राय बंटी हुई है. एक तरफ पाकिस्तान के साथ जाने की पैरवी करने वाले लोग हैं तो कुछ लोगों को भारत के साथ रहना है. वहीं तीसरा समूह भी है जो दोनों देशों से अलग एक स्वतंत्र कश्मीर की मांग करता है.

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पाकिस्तान लगातार कश्मीर मुद्दे को जनमत संग्रह के जरिए सुलझाने की मांग करता है और भारत पर अपना वादा न निभाने का आरोप भी लगाता है. पाकिस्तान ने हमेशा जनमत संग्रह का समर्थन किया है लेकिन कभी उसने इसके तीसरे संभावित परिणाम को स्वीकार नहीं किया है. यानी उसे कश्मीर का आजाद होना मंजूर नहीं है. जनमत संग्रह हुआ तो सैद्धांतिक रूप से पाकिस्तानी कश्मीर में भी होगा. गौर करने वाली बात ये भी है कि जनमत संग्रह की आवाजें सिर्फ कश्मीर घाटी से सुनाई देती हैं. राज्य के दो अन्य हिस्सों लद्दाख और जम्मू में कोई इसकी मांग नहीं करता.

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