सूख रही हैं भारत की अहम झीलें
भारत के नीति आयोग के मुताबिक देश पानी के अभूतपूर्व संकट का सामना करने जा रहा है. देश के ज्यादातर इलाकों में सिकुड़ती झीलें इसकी गवाही भी दे रही हैं.
वुलर झील
कश्मीर की वुलर झील भारत में ताजा पानी की सबसे बड़ी झील है. 1980 तक वुलर झील 202 वर्ग किलोमीटर में फैली थी. आज यह झील दो तिहाई सिकुड़कर सिर्फ 74 वर्ग किमी रह गई है.
डल झील
श्रीनगर की पहचान कही जाने वाली डल झील 1960 के दशक से तेज़ी सिकुड़ती जा रही है. सन 1900 के रिकॉर्डों में डल झील का आकार 26 वर्ग किमी दर्ज है. आज झील मात्र 11.5 वर्ग किमी में सिमट चुकी है.
नैनी झील
उत्तराखंड के नैनीताल जिले की पहचान नैनी झील आकार में भले ही न सिकुड़ रही हो लेकिन उसकी गहराई लगातार घट रही है. पर्यावरण विज्ञानी डॉक्टर सुजाता बिष्ट के मुताबिक 1987 में झील की गहराई 96 मीटर थी. अब गहराई 27 मीटर रह गई है. जिले की बाकी झीलें भी मुश्किल में हैं.
लेक चिल्का
ओडिशा के पुरी जिले में पड़ने वाली यह झील भारत की दूसरी बड़ी झील है. यह झील मीठे और खारे पानी का संगम भी है. स्थानीय निवासियों के मुताबिक 30-40 साल पहले चिल्का झील की अधिकतम गहराई 3-6 मीटर थी. आज यह मात्र डेढ़ मीटर रह गई है.
भोज ताल
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल की मशहूर झील भोज ताल भी लगातार सिकुड़ रही है. 2017 की सैटेलाइट तस्वीरों में भोज ताल 2400 हेक्टेयर में फैला था. 2019 में ताल सिर्फ़ 700 हेक्टेयर के दायरे में सिमट गया.
बेलांदर झील
बेंगलुरू की यह झील 2015 में पहली बार सुर्खियों में तब आई, जब इसमें खूब झाग बन गया और धुआं उठने लगा. अतिक्रमण की वजह से बीते 20 साल में यह झील अपना 95 फीसदी हिस्सा खो चुकी है. कुछ जगहों पर तो ये नाले जैसी दिखती है.
खो गई चेन्नई की झीलें
चेन्नई की अन्ना यूनवर्सिटी के रिसर्चरों ने 1893 के सिटी मैप के आधार पर दावा किया कि कभी मद्रास के केंद्र में 60 से ज़्यादा झीलें और पोखर थे. अंधाधुंध शहरीकरण के कारण अब चेन्नई में सिर्फ़ सात बड़ी झीलें बची हैं. शहर की ज़मीन में भूजल करीब करीब खत्म हो चुका है.