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दुनिया से खत्म हुआ लेडेड पेट्रोल

३१ अगस्त २०२१

आखिरकार, सीसा आधारित पेट्रोल का इस्तेमाल दुनिया में हर जगह खत्म हो गया है. इस कदम से असमय होने वाली मौतों में 12 लाख की कमी और सालाना 24 अरब डॉलर की बचत का अनुमान है.

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तस्वीर: Prakash Singh/AFP/Getty Images

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) ने कहा है कि दुनियाभर से लेड-पेट्रोल का इस्तेमाल खत्म कर दिया गया है. लगभग एक सदी पहले डॉक्टरों ने लेड आधारित तेल के खतरों के प्रति चेतावनी जारी की थी. अल्जीरिया ऐसा तेल इस्तेमाल करने वाला आखरी देश था, जिसकी सप्लाई पिछले महीने खत्म हो गई.

यूएनईपी के कार्यकारी निदेशक इंगर ऐंडरसन ने कहा, "लेडेड पेट्रोल पर प्रतिबंध की सफलता दुनिया की सेहत और हमारे पर्यावरण के लिए मील का एक अहम पत्थर है.”

इस पेट्रोल के इस्तेमाल का असमय होने वाली मौतों, मिट्टी की खराब सेहत और वायु प्रदूषण से सीधे संबंध के बावजूद दो दशक पहले तक भी 100 से ज्यादा देश लेडेड पेट्रोल का इस्तेमाल करते थे.

एक सदी का संघर्ष

लेडेड पेट्रोल के बारे में सबसे पहले चिंताएं 1924 में जाहिर की गई थीं जब अमेरिका की तेल कंपनी स्टैंडर्ड ऑयल के दर्जनों कर्मचारियों को एकाएक अस्पताल में भर्ती कराया गया और उनमें से पांच की जान चली गई. इसके बावजूद 1970 के दशक तक लेड आधारित पेट्रोल दुनियाभर में बिकता रहा.

2002 में यूएनईपी ने इस पेट्रोल के खिलाफ अभियान शुरू किया. हालांकि तब तक अमेरिका, चीन और भारत समेत कई बड़े देश इस तेल का इस्तेमाल बंद कर चुके थे. लेकिन गरीब देशों में हालात लगातार गंभीर बने रहे.

2016 तक आते आते उत्तर कोरिया, म्यांमार और अफगानिस्तान ने भी लेड आधारित पेट्रोल बेचना बंद कर दिया. उसके बाद इराक, यमन और अब जाकर अल्जीरिया ने भी इस तेल का प्रयोग करना बंद कर दिया है.

तस्वीरेंः कार स्क्रैपिंग नीति

अपने बयान में यूएनईपी ने कहा कि लेड आधारित तेल के खात्मे से "हर साल असमय होने वालीं 12 लाख मौतों को रोका जा सकेगा, बच्चों का आईक्यू बढ़ेगा, 24.4 अरब डॉलर की बचत होगी और अपराध कम होंगे.” यूएनईपी ने चेतावनी दी है कि पर्यावरण पर होने वाले असर को कम करने के लिए जीवाश्व ईंधन के इस्तेमाल में भारी कमी की जरूरत है.

‘जहरीले युग का अंत'

दुनिया के कई संगठनों ने लेड आधारित पेट्रोल का इस्तेमाल बंद होने की खबर का स्वागत किया है. पर्यावरण के लिए काम करने वाली संस्था ग्रीनपीस ने कहा कि यह एक जहरीले युग का अंत है.

ग्रीनपीस अफ्रीका की थांडिले चिन्यावानु ने कहा, "यह साफतौर पर दिखाता है कि अगर हम 20वीं सदी में सबसे जहरीले ईंधनों में से एक को खत्म कर सकते हैं तो सारे जीवाश्व ईंधनों का भी धीरे धीरे खात्मा किया जा सकता है. अफ्रीकी सरकारों को जीवाश्म ईंधन उद्योग के लिए अब और बहाने नहीं बनाने चाहिए.”

देखिए, कच्चे तेल से क्या मिलता है

दुनियाभर में वाहनों की बिक्री में तेजी से वृद्धि हो रही है. इनमें विकासशील देश सबसे आगे हैं. यूएनईपी ने कहा है कि आने वाले कुछ दशकों में एक अरब 20 लाख वाहन सड़कों पर उतारे जाएंगे. एक बयान में एजेंसी ने कहा, "ऊर्जा से जुड़े ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में परिवहन उद्योग का हिस्सा एक चौथाई से भी ज्यादा है और 2050 तक यह बढ़कर एक तिहाई हो जाएगा.”

यूएनईपी ने अमेरिका, यूरोप और जापान से पुराने और खराब गुणवत्ता वाले वाहनों के कम आय वाले देशों में जाने पर भी चिंता जताई. उसने कहा कि इससे ग्लोबल वॉर्मिंग और वायु प्रदूषण तो बढ़ता ही है, दुर्घटनाएं भी बढ़ती हैं.

वीके/सीके (एएफपी)

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