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क्यों सुलग रहा है यूरोपः चार वजहें

स्टुअर्ट ब्राउन
१३ अगस्त २०२१

दक्षिणी यूरोप और भूमध्यसागरीय क्षेत्र में भड़की आग ने पुराने रिकॉर्ड ध्वस्त कर दिए हैं. कार्बन डाइऑक्साइड सोखने वाले कार्बन सिंक की बरबादी पर वैज्ञानिक चिंतित हैं.

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तस्वीर: Nathaniel Levine/ZUMAPRESS.com/picture alliance

गर्मियां अभी आधी ही बीती हैं लेकिन बाल्कन क्षेत्र, इटली और दक्षिणपूर्वी भूमध्यसागरीय इलाकों में जंगल की आग से बरबाद इलाकों ने पिछले वर्षों की औसत को उलट-पलट कर रख दिया है. बिजली गिरने की कुदरती वजह से हो या जानबूझकर लगाई गई हो लेकिन पिछले महीने पूरे दक्षिणी यूरोप में फैली जंगल की आग को सूखे और बेतहाशा गर्मी ने और भड़का दिया है.

वैज्ञानिकों को इस बात पर कोई संदेह नहीं है कि इस सीजन में और ज्यादा आग भड़कने की मुख्य वजह है जलवायु परिवर्तन. वे ये भी जानते हैं कि जिन देशों में आग लगने की घटनाएं ज्यादा होती हैं वहां उनसे निपटने के इंतजाम पूरे नहीं हैं. इसलिए हालात बिगड़ते ही जा रहे हैं.

यहां हम देखेंगे कि भूमध्यसागरीय और बाल्कन देशों में जंगल की आग इतना क्यों भड़कती है. दुनिया के गरम होते जाने के क्या नतीजे होंगे, ये भी हम खंगालेंगे. 

1. भूमध्यसागरीय इलाका अभी क्यों सुलग रहा है?

गर्मियों में जंगल की आग का सुलगना स्वाभाविक होता है और अक्सर भूमध्यसागरीय जंगलों के जीवन का एक अनिवार्य हिस्सा है. 2016 से पहले के दशक में, दक्षिणी यूरोप के पांच देशों- स्पेन, फ्रांस, पुर्तगाल, इटली और ग्रीस (यूनान) के जंगलों में आग लगने की करीब 48 हजार घटनाओं में सालाना चार लाख 57 हजार हेक्टेयर जंगल खाक हो चुका था. वैज्ञानिकों के मुताबिक, आग से इन इलाकों में जंगल फिर से नया भी हो जाता है और जैव विविधता भी बनी रहती है. 

दक्षिणी यूरोप के गरम और शुष्क इलाकों के समुदाय, आग पर काबू पाने के बेहतर उपाय और रणनीतियों की मदद से, हर साल लगने वाली औसत आग से निपटना सीख चुके हैं. इसके चलते 1980 से आग लगने की घटनाएं और उनका आकार भी कम हुआ है. लेकिन हाल के वर्षों में तो जंगल गाहे-बगाहे सुलग ही उठते हैं और आग अपने सामान्य आकार और वेग से काफी आगे जा चुकी है.

खतरे में यूरोप के जंगल

2017 और 2018 की विनाशकारी आग ने तुर्की और स्पेन तक फैले एक बड़े भूभाग में सैकड़ों जानें ले लीं थीं. स्वीडन समेत मध्य और उत्तरी यूरोप के देश भी झुलस उठे थे. ऐसी अप्रत्याशित आग, अपरिहार्य रूप से बेतहाशा सूखे और गर्मी की लहर से जुड़ी है.

2. आग कैसे भड़क रही है?

जुलाई का महीना यूरोप में दूसरा सबसे गरम महीना था. (विश्व स्तर पर तीसरा सबसे गरम). दक्षिणी यूरोप इस अत्यधिक गर्मी के केंद्र में रहा है, ग्रीस में तापमान इस सप्ताह 47 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाने का अनुमान लगाया गया था.

ग्रीस और पड़ोसी तुर्की इस समय, 30 साल की सबसे भीषण गर्मी की लहर का सामना कर रहे हैं- ये लहर इतनी प्रचंड है कि इसने 1987 के फायर सीजन की डरावनी यादें ताजा कर दी हैं जब अकेले ग्रीस में डेढ़ हजार से ज्यादा लोग मारे गए थे.

तुर्की में अलग अलग करीब 200 जगहों पर जंगल की आग भड़की हुई है और एक सप्ताह में ही पूरे देश में फैल चुकी है. कुछ तटीय निवासियों और टूरिस्टों को सुरक्षा के लिए आगियान की ओर भागना पड़ा है.

जानबूझकर लगाई जाने वाली आग और बिजली गिरने जैसी कुदरती वजहें बराबर की जिम्मेदार भले ही हों, अत्यधिक गर्मी ने आग को और भड़का दिया है और आग की चपेट में आए इलाकों की तबाही की असली जिम्मेदार वही है. इसीलिए पिछले 12 साल के औसत के मुकाबले पांच अगस्त तक कम से कम 55 फीसदी ज्यादा इलाका, यूरोप भर में जल उठा.

और इस संकट को और तीव्र बनाते हैं- जर्जर वन प्रबंधन और कभी-कभी कुदरती जंगलों का ओवर-प्रोटेक्शन यानी उन्हें बचाने की अति.

तस्वीरों मेंः आग से तबाह हो रहे हैं कई देश

इतालवी शहर पेस्कारा में चीड़ के जंगल, पिनेटा दान्नुनजियाना में एक अगस्त को सुलगी आग देखते ही देखते पूरे जंगल में फैल गई, 800 लोगो को वहां से निकालना पड़ा. लेकिन ये इलाका क्योंकि संरक्षित नेचर रिजर्व है तो यहां वन प्रबंधन नहीं चलता. जैसे झाड़-झंखाड़ की नियमित सफाई नहीं की जाती या यहां पर नियंत्रित आग नहीं लगाई जाती. पेस्कारा के मेयर कार्लो मास्की कहते हैं, "झाड़-झंखाड़ बहुत तेजी से आग पकड़ता है.”

इस बीच, आग पर काबू पाने की मौजूदा नीतियां, उन इलाकों की ज्वलनशीलता पर ग्लोबल हीटिंग के असर को मद्देनजर नहीं रखती जहां जंगल की जमीन (कभी-कभी बंजर खेत पर उगाए जंगल भी) और फैलता हुआ शहर एक-दूसरे से जुड़े हैं. इसका प्रमाण था इस सप्ताह एथेन्स के बाहरी इलाकों में भड़की आग.

दक्षिणी यूरोप में जंगल की आग के पैटर्न को समझने के लिए हुए 2021 के एक अध्ययन, "अंडरस्टैंडिंग चेंजस टु फायर्स इन सदर्न यूरोप” के लेखकों के मुताबिक, "अधिकांश भूमध्यसागरीय इलाकों में मौजूदा वाइल्डफायर प्रबंधन नीतियां आग को दबाने पर ही आमतौर पर बहुत ज्यादा ध्यान केंद्रित करती हैं, और वे दुनिया में जारी बदलाव के लिहाज से अनुकूलित नहीं रह गई हैं.”

3. तो इस सबका जलवायु से क्या लेनादेना?

यूरोपीय पर्यावरण एजेंसी (ईईए) के मुताबिक, भूमध्यसागरीय क्षेत्र के जले हुए इलाके पिछले 40 साल के दौरान कम हुए हैं. इसकी प्रमुख वजह है- आग पर नियंत्रण की ज्यादा प्रभावी कोशिशें.

वैश्विक तापमान में बढ़ोत्तरी से पूरी दुनिया में आग के लिए मुफीद मौसमी स्थितियों की आवृत्ति और गंभीरता भी बढ़ जाती हैं. हाल के वर्षों में ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका के कैलिफोर्निया में भड़की अभूतपूर्व आग में यही देखा गया था. और ये भी तय है कि जलवायु परिवर्तन ने पूरे यूरोप में जंगल की आग का जोखिम बढ़ा दिया है, इसमें मध्य और उत्तरी यूरोप के वे इलाके भी शामिल हैं जहां आमतौर पर जंगल की आग नहीं भड़कती है.

ईईए के मुताबिक, भूमध्यसागरीय क्षेत्र में पड़ रहे रिकॉर्ड सूखे और गर्मी की लहरों ने 2018 की घटनाओं की याद दिलाई है जब "ज्यादा देश पहली बार उतने व्यापक स्तर पर भड़की आग में झुलस रहे थे.”

तस्वीरों मेंः पोलर बेयर पर खतरा

2018 की कथित "अटिका फायर्स” ने ग्रीस में 100 से ज्यादा लोगों की जान ले ली थी- इस शताब्दी में वो दूसरी सबसे भयंकर और जानलेवा आग थी. इससे पहले 2009 में ऑस्ट्रेलिया के जंगलों में "ब्लैक सैटर्डे फायर” नाम से कुख्यात, भयंकर आग भड़की थी.

ईईए का अनुमान है कि यूरोप में फायर-प्रोन इलाके बढ़ रहे हैं और आग का सीजन खिंचता जा रहा है. यूरोपीय ग्रीन डील और पेरिस संधि जैसे जलवायु समझौतों के बावजूद कार्बन उत्सर्जन में उतनी तेज गति से कटौती नहीं हो पा रही है जो इस अतिशय गर्मी पर अकुंश लगा सके.

हेल्महोल्त्स सेंटर फॉर ओशन रिसर्च में जलवायु वैज्ञानिक मुजीब लतीफ कहते हैं, "वे योजनाएं बनाते हैं, लक्ष्य निर्धारित करते हैं लेकिन हकीकत में कुछ नहीं करते.” उन्होंने डीडब्लू को बताया, "1990 से वैश्विक कार्बन उत्सर्जन में 60 प्रतिशत बढ़ोत्तरी हो चुकी है.” उनके मुताबिक 2020 में महामारी के चलते स्लोडाउन दिख रहा था जो अब 2021 में नहीं है और उत्सर्जन का ग्राफ फिर बढ़ेगा.

4. जलवायु परिवर्तन के क्या नतीजे होंगे?

एक क्लाइमेट ग्रुप, कार्बन ब्रीफ के मुताबिक दुनिया भर में भड़कने वाली जंगल की आग, ग्रीनहाउस गैसों में उत्सर्जन के एक बड़े हिस्से के लिए जिम्मेदार है. खराब, दूषित हवा से दुनिया में हर साल तीस लाख से कुछ अधिक आकस्मिक मौतें हो जाती हैं, जिनमें से कार्बन ब्रीफ के मुताबिक पांच से आठ प्रतिशत मौतों की वजह ये आग ही है. 

लेकिन जंगल की आग से होने वाले कार्बन उत्सर्जन में हाल के दशकों में गिरावट आती जा रही है. इसकी वजह वही है- आग की रोकथाम के उपायों में सुधार. लेकिन आग की तेजी और गंभीरता की समस्या कायम है. जंगल इतनी बुरी तरह जल जाते हैं कि फिर से पनप नहीं पाते और इसका बहुत गहरा असर कार्बन सोखने की उनकी क्षमता पर पड़ता है.

ब्रह्मपुत्र पर भिड़ते भारत, चीन और बांग्लादेश

2017 में दक्षिणपश्चिमी यूरोप (खासकर आईबेरियाई प्रायद्वीप, दक्षिणी फ्रांस और इटली) के जंगलों में भड़की आग से, 2003 के बाद, सबसे ज्यादा सीओटू निकली थी. करीब करीब 37 टेराग्राम (यानी 10 लाख मीट्रिक टन!) सीओटू हवा में मिल गई थी.

आप इस बात से भी अंदाजा लगा सकते हैं कि आईबेरियाई प्रायद्वीप और भूमध्यसागरीय तट में 2003 में जो अभूतपूर्व भीषण और व्यापक आग लगी थी, उससे ठीक उतना ही उत्सर्जन हुआ था जितना उस साल समूचे पश्चिमी यूरोप में तमाम इंसानी गतिविधियों के चलते हुआ था.

2021 में आग का ये वेग, अगर जंगल के एक बड़े हिस्से को निगल जाता है तो कार्बन डाइऑक्साइड को सोख लेने वाले प्राकृतिक पर्यावरण यानी कार्बन सिंक का नुकसान, जलवायु के लिए और भी ज्यादा विनाशकारी हो सकता है.

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