अधूरा है गांव गांव में बिजली पहुंचाने का मोदी सरकार का वादा
१९ जुलाई २०१७ऊर्जा मंत्री पीयूष गोयल का दावा है कि इस दौरान लगभग साढ़े तेरह हजार गांवों तक बिजली पहुंच गयी है और बाकी में अगले साल पहली मई तक पहुंच जायेगी. लेकिन नीति आयोग की एक ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में अब भी तीस करोड़ से ज्यादा लोगों की बिजली तक पहुंच नहीं है और 50 करोड़ लोग बायो-गैस से खाना पकाने पर मजबूर हैं. हर गांव में बिजली पहुंचाने के दावे को कामयाब बताने में आंकड़ों की बाजीगरी की भी अहम भूमिका है. आयोग का कहना है कि तमाम ग्रमीण विद्युतीकरण अभियान के बावजूद जमीनी हालात में खास सुधार नहीं आया है. दिलचस्प बात यह है कि पिछली यूपीए सरकार ने इस मामले में बेहतर काम किया था.
आयोग की रिपोर्ट
ऊर्जा सुरक्षा के मकसद को पूरा करने के लिए देश को अभी लंबा सफर तय करना है. राष्ट्रीय ऊर्जा नीति के मसौदे में कहा गया है कि पहले की ऐसी योजनाओं और अब दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना पर भारी-भरकम खर्च के बावजूद बिजली तक पहुंच की समस्या में कोई खास सुधार नहीं आया है. उसने ऊर्जा मंत्रालय के नजरिये पर सवाल उठाते हुए कहा है कि सिर्फ गांवों को ही लक्ष्य करने की बजाय घर-घर बिजली पहुंचाना सबसे बड़ी चुनौती है.
आयोग ने अपनी रिपोर्ट में विद्युतीकरण की अवधारणा की नये सिरे से व्याख्या करने की भी सिफारिश की है. उसका कहना है कि किसी भी गांव के तमाम घरों तक बिजली पहुंचाए बिना उसे विद्युतीकरण के दायरे में शामिल नहीं किया जाना चाहिए. साथ ही, यह सुनिश्चित करना भी जरूरी है कि उस गांव को रोजाना तय समय तक बिजली की सप्लाई की जाये. यानी ऐसा नहीं कि 24 में से महज एकाध घंटे बिजली देकर उसे पूरी तरह विद्युतीकृत गांव मान लिया जाये. आयोग की यह रिपोर्ट इस मायने में अहम है कि वह सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सुझाव देता है और उसकी सिफारिशों से ही सरकारी नीतियों का स्वरूप तय होता है.
सरकारी आंकड़े
केंद्र सरकार ने वर्ष 2015 में 18,452 गांवों की पहचान कर तीन साल के भीतर वहां बिजली पहुंचाने का भरोसा दिया था. ऊर्जा मंत्री पीयूष गोयल दावा करते हैं कि उनमें से 13,516 गांवों तक बिजली पहुंच चुकी है. उनका कहना है कि 944 गांवों में कोई आबादी नहीं है और बाकी लगभग चार हजार गांवों में अगले साल पहली मई तक बिजली पहुंच जायेगी. लेकिन दूसरी ओर, सरकारी आंकड़े ही बताते हैं कि जिन साढ़े तेरह हजार गांवों तक बिजली पहुंचाने के दावे हो रहे हैं वहां महज आठ फीसदी घरों तक ही बिजली की रोशनी पहुंची है. ऊर्जा मंत्रालय की वेबसाइट में ग्रामीण विद्युतीकरण के कॉलम में कहा गया है कि इन साढ़े तेरह हजार गांवों में से 1,089 में ही घर-घर बिजली पहुंचायी जा सकी है.
दरअसल यह आंकड़ों की बाजीगरी का खेल है. अक्तूबर, 1997 में ऊर्जा मंत्रालय की ओर से तय मानकों के मुताबिक किसी गांव को उसी हालत में विद्युतीकृत कहा जाता है जब स्कूल, पंचायत, स्वास्थ्य केंद्र, दवाखानों और कम्युनिटी सेंटर जैसे सार्वजनिक स्थानों और कम से कम 10 फीसदी घरों में बिजली मुहैया करायी गयी हो. यानी 90 फीसदी घरों के अंधेरे में रहने के बावजूद संबंधित गांव को पूरी तरह विद्युतीकृत गांव की श्रेणी में रखा जा सकता है.
यूपीए का काम बेहतर
तमाम दावों के बावजूद हकीकत यह है कि यूपीए सरकार के शासनकाल के दौरान वर्ष 2005-06 से 2013-14 तक ग्रामीण विद्यीतकरण की दिशा में बेहतर काम हुआ था. इस दौरान 1.08 लाख गांवों को ग्रिड से जोड़ा गया था. लेकिन अपने पहले तीन साल के कार्यकाल के दौरान बीजेपी सरकार ने महज 14,528 गांवों को ग्रिड से जोड़ा है.
यूपीए सरकार ने सालाना औसतन 12,030 गावों तक बिजली पहुंचायी थी लेकिन बीजेपी सरकार के सत्ता में आने के बाद अब तक यह औसत 4,842 रहा है. यानी आधे से भी कम. इससे सरकार के दावों की पोल खुलती है. नीति आयोग ने अपनी रिपोर्ट में इस योजना की खामियों का संकेत देते हुए इनमें सुधार के उपाय भी सुझाये हैं.
बिजली विशेषज्ञों का कहना है कि गांवों में घर-घर बिजली पहुंचाने की राह में दो गंभीर चुनौतियां हैं. पहली यह कि ज्यादातर परिवार गरीबी की वजह से बिजली कनेक्शन पर होने वाला एकमुश्त खर्च नहीं उठा सकते. विभिन्न राज्यों में यह खर्च दो से तीन हजार रुपये के बीच है. इसके अलावा अगर किसी तरह कनेक्शन ले भी लिया तो इस बात की गारंटी नहीं है कि बिजली की सप्लाई कब होगी और वह कितनी देर तक रहेगी. ऐसे में गरीबी रेखा से ऊपर रहने वाले परिवारों की बिजली कनेक्शन लेने में खास दिलचस्पी नहीं होती. गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले परिवारों को यह कनेक्शन मुफ्त दिया जाता है.
एक ऊर्जा विशेषज्ञ देवजित बरूआ कहते हैं, "ग्रामीण परिवारों की आय और बिजली की नियमित सप्लाई सुनिश्चित करने के साथ ही विभिन्न स्तरों पर संगठित प्रयासों के जरिए ही सौ फीसदी विद्युतीकरण का लक्ष्य हासिल किया जा सकता है." ऐसा नहीं होने तक घर-घर बिजली पहुंचाने का सपना फाइलों तक ही सिमटा रहेगा.
रिपोर्टःप्रभाकर