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जर्मनी में भी प्रेस की आजादी पर चिंता

महेश झा२० जून २०१६

प्रेस की स्वतंत्रता लोकतंत्र का पैमाना है. यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और लोकतंत्र की जीवंतता का दर्पण होती है. संविधान में शामिल होने के बावजूद जर्मनी में भी प्रेस की स्वतंत्रता मानी हुई बात नहीं है.

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Reporter ohne Grenzen Protest vor der russischen Botschaft in Berlin 04.02.2014
तस्वीर: Getty Images

जर्मनी में पिछले दो सदियों का इतिहास राजतंत्र, निरंकुशता, नाजीवाद और लोकतंत्र का इतिहास रहा है. अलग अलग सरकारों ने प्रेस, सिनेमा और कला की दूसरी विधाओं में नियमित रूप से रोक लगाई है लेकिन आधुनिक जर्मनी में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी के साथ सेंसरशिप का स्वरूप बदल गया है. अब सेंसरशिप का इस्तेमाल सिनेमा या वीडियो गेम्स को खास उम्र से लोगों के लिए उपलब्धता रोक कर किया जाता है. लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि जर्मनी में कोई समस्या ही नहीं है.

जर्मनी का संविधान अभिव्यक्ति और प्रेस की स्वतंत्रता की गारंटी देता है, लेकिन समूहों के खिलाफ विद्वेष फैलाने, यहूदी नरसंहार को झुठलाने और नाजी प्रचार पर रोक है. हालांकि पत्रकारों के खिलाफ पुलिस या कानूनी कार्रवाई बिरले ही होता है लेकिन समय समय पर ऐसे मामले आते रहे हैं. 2010 में ड्रेसडेन की अदालत ने दो पत्रकारों को जजों की मानहानि के आरोप में सज़ा सुनाई गई थी, लेकिन उसे अपील कोर्ट ने खारिज कर दिया. दोनों पत्रकार सेक्सनी में उच्च न्यायपालिका में भ्रष्टाचार के मामलों की जांच कर रहे थे.

जर्मनी में करीब पब्लिक और प्राइवेट टेलिविजन चैनलों के अलावा 350 दैनिक और 20 साप्ताहिक अख़बार हैं. उन्हें आम तौर पूरी संपादकीय स्वतंत्रतता है. लेकिन पब्लिक चैनलों में राजनीतिक दलों के वर्चस्व की आलोचना होती रही है और अब संवैधानिक न्यायालय ने उसे कम करने का आदेश दिया है.

जर्मनी में प्रेस की स्वतंत्रता को तीन मुख्य खतरे हैं. एक खतरा वित्तीय है. सोशल मीडिया के प्रसार और मीडिया व्यवसाय में आ रहे परिवर्तनों के कारण अखबारों को विज्ञापनों से होने वाली आय गिरी है. जिसकी नतीजा पिछले सालों में अखबारों के बंद होने या विलय के रूप में सामने आया है. खर्च बचाने के लिए विभिन्न अखबारों के संपादकीय विभागों को मिलाया जा रहा है और रिपोर्टिंग में प्रतिस्पर्धा में कमी आई है.

पत्रकार दूसरा खतरा लगातार सख्त होते आतंकवादविरोधी कानूनों में देख रहे हैं, जो पुलिस को निगरानी के व्यापक अधिकार देती है. इसमें आतंकवाद रोकने के लिए कंप्यूटरों, टेलिफोन लाइनों और घरों की छुपकर निगरानी शामिल है. पत्रकारों की चिंता है कि इस कानून के चलते उनके लिए अपने खबरियों को गुप्त रखना मुश्किल होता जा रहा है. इतना ही नहीं पकड़े जाने के के डर से विसलब्लोअर पत्रकारों को सूचना देने से घबराते हैं.

तीसरा खतरा लोगों की तरफ से है. जर्मनी इस साल रिपोर्टर्स विदाउट बोर्डर्स की रैंकिंग में चार स्थान नीचे खिसक गया है. वह 12वें से 16वें स्थान पर चला गया है और इसकी वजह है पत्रकारों के साथ झगड़ों, धमकियों और हिंसक हमलों में भारी वृद्धि. खासकर शरणार्थियों के आने के बाद पैदा हुए शरणार्थी विरोधी आंदोलनों के दौरान ये हमले साफ तौर पर दिखे हैं और मीडिया पर झूठा प्रेस होने के इलजाम लगाए जा रहे हैं. पत्रकारों के प्रति लोगों का रवैया आक्रामक होता जा रहा है.

Gedenken an Anna Politkowskaja
तस्वीर: AP

पत्रकारों के प्रति सरकारी संस्थानों के रवैये में भी सख्ती दिख रही है. ऑनलाइनअख़बार नेत्सपोलिटिक डॉट ओआरजी के पत्रकारों के खिलाफ जर्मनी के महाधिवक्ता ने देशद्रोह का आरोप लगाया था. इसके पहले अख़बार ने घरेलू खुफिया एजेंसी द्वारा इंटरनेट निगरानी के विस्तार की गोपनीय खबर छाप दी थी. तीस साल में यह पहला मौका था जब पत्रकारों पर देशद्रोह का मुकदमा दायर किया गया था. लोकतांत्रिक जर्मनी के इतिहास में ऐसा सिर्फ तीन बार हुआ है. दबाव इतना बढ़ा कि सरकार को हस्तक्षेप करना पडा और महाधिवक्ता को हटा दिया गया, पत्रकारों के खिलाफ देशद्रोह के मामले की जांच रोक दी गई.

लोकतंत्र में भी लोकतांत्रिक संस्थानों के खिलाफ खतरे खत्म नहीं हो जाते. जरूरी यह बात है कि लोकतांत्रिक संस्थाओं को बनाए रखने पर आम सहमति हो. और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता होगी तो बहस भी होगी और आम राय से फैसले भी लिए जाएंगे. तभी लोकतंत्र जीवित और जीवंत रहेगा. मीडिया के अलावा समाज को भी इसमें अपनी भूमिका निभानी होगी.

ब्लॉगः महेश झा