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"फील गुड" करा के फेसबुक का प्रचार

२८ सितम्बर २०१५

भारत के टीवी, प्रिंट और सोशल मीडिया मोदी के कार्यक्रमों में उमड़ी भीड़, उनकी वाक्पटुता पर ऐसे अभीभूत क्यों दिख रहे हैं, जैसे कुछ रेलवे स्टेशनों पर मिलने जा रहे मुफ्त इंटरनेट पर ही देश का विकास, शांति और सौहार्द्र टिका है

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USA Narendra Modi und Mark Zuckerberg
तस्वीर: picture-alliance/Zuma Press

सिलिकॉन वैली की कंपनियों की नजर भारत के विशाल बाजार पर है और भारत को अपने तकनीकी विकास के लिए उनकी दरकार भी है. जाहिर है कि भारतीय प्रधानमंत्री के साथ चर्चा के लिए दोनों पक्षों के पास कई जरूरी मुद्दे थे. इस लिहाज से इन जरूरी विषयों पर बात भी हुई और कुछ संधियों पर हस्ताक्षर भी. आज भारत के करीब 30 करोड़ लोगों की पहुंच इंटरनेट तक है लेकिन बाकी एक अरब आबादी अभी इससे अछूती है. फेसबुक के मार्क जकरबर्ग ने प्रधानमंत्री मोदी के साथ सवाल-जवाब वाले सत्र के लिए फेसबुक पर ही लोगों से उनके सवाल मंगवाए थे. फिर इस बेहद सफल बताए जा रहे सेशन की लाइव स्ट्रीमिंग भी की गई.

Deutsche Welle DW Ritika Rai
ऋतिका राय, डॉयचे वेलेतस्वीर: DW/P. Henriksen

पूरे सत्र में "फील गुड" फैक्टर बनाए रखने के लिए पहले से सोच समझ कर चुने गए सवाल ही पूछे गए. सवाल वे थे जिसके उत्तर जानने में फेसबुक के सवाल भेजने वाले उन यूजर्स नहीं बल्कि खुद फेसबुक की दिलचस्पी थी, जैसे कि - भारत में डिजिटल ढांचे का विकास, बिजनेस को आसान बनाना वगैरह. फेसबुक यूजरों के ही 40,000 से भी अधिक प्रश्नों में से एक भी मुश्किल लेकिन जरूरी सवाल नहीं लिया गया. जाति के आधार पर भेदभाव, बेरोजगारी, तरह तरह के बैन लगाकर नागरिक अधिकारों की अनदेखी जैसे कई सवाल निरुत्तर ही रह गए. भारत में तो प्रधानमंत्री ऐसे टाउनहाल जैसे इंटरव्यू करते नहीं हैं और अपनी बात पहुंचाने के लिए रेडियो पर 'मन की बात' या फिर बहुत ही नियंत्रित किस्म की प्रेस कांफ्रेंस करते हैं. ऐसे में लोगों के इन मुश्किल सवालों का जवाब आखिर कहां मिलेगा.

चीन ने दिखाया अलग रुख

आपको याद होगा कि कुछ महीनों पहले इसी फेसबुक के इंटरनेट डॉट ओआरजी को लेकर भारत में काफी विवाद खड़ा हुआ था. तकनीकी जानकार इसे देश में नेट न्यूट्रैलिटी के नियमों की अनदेखी बताते हैं. इसे ऐसे समझिए कि जब फेसबुक जैसी बड़ी कंपनी अपने विस्तृत प्लेटफॉर्म पर कुछ चुनी हुई कंपनियों के उत्पाद को अपने अरबों यूजरों तक पहुंचाएगी, तब छोटे लेकिन महत्वपूर्ण इनोवेटर्स के लिए बिना खर्च किए अपने उत्पाद लोगों तक पहुंचाना एक और भी बड़ा दु:स्वप्न बन जाएगा.

मोदी के दौरे से कुछ ही दिन पहले चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग भी अमेरिका के टूर पर थे. उनसे भी इन सारी बड़ी कंपनियों के प्रमुख ऐसे ही मिले थे. जाहिर है इन कंपनियों को चीन का बड़ा बाजार भी चाहिए लेकिन चीन का रवैया बहुत अलग रहा. भारत के पड़ोसी और चिर प्रतिद्वंद्वी देश चीन ने फेसबुक को तो अपने देश में कदम तक नहीं रखने दिया है और अपनी खुद की सोशल नेटवर्किंग साइट वाइबो इस्तेमाल करता है. चीन ने दूसरी कंपनियों के लिए भी अपने नियमों में ढील नहीं बल्कि कड़ाई करने की ही बात की.

प्रोफाइल फोटो बदलने का क्या फायदा?

अमेरिका में मोदी ने भारत को 20 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने की इच्छा जताई और डिजिटल विकास की गाड़ी दौड़ाने के लिए पटरियां बिछाने का वादा भी किया. मोदी ने कहा, "हम हाइवे का महत्व समझते हैं. ऐसा ही महत्व आई-वे का भी है."

मेरा मानना है कि भारत के गांवों में इंटरनेट की सुविधा के बिना जीना अभी भी संभव है. लेकिन जिस किसान की फसल खराब हो रही है, जिसकी उपज का पर्याप्त मूल्य नहीं मिल रहा और वे जो कभी खत्म ना होने वाले बेहद ऊंची ब्याज दरों पर लिए अपने कर्ज के तले दबे हैं, उन अन्नदाताओं को एक एक सांस भारी पड़ रही है.

सवाल यह उठता है कि किसी के फेसबुक प्रोफाइल फोटो को डिजिटल इंडिया के रंग में रंगने से आखिर किसे फायदा होगा. कहीं यह सब कुछ सोशल मीडिया और फेसबुक के प्रभुत्व को स्थापित करने वाला एक समारोह तो नहीं, जहां फेसबुक पर 3 करोड़ लोगों की निजी फॉलोइंग वाले रॉकस्टार प्रधानमंत्री के लिए लगे "मोदी, मोदी" के नारों और तालियों के बीच इंटरनेट की वर्चुअल यानि आभासी दुनिया में असली दुनिया की कड़वी सच्चाइयां कहीं पृष्ठभूमि में ओझल होती दिख रही हैं.

ब्लॉग: ऋतिका पाण्डेय

एडिटर, डीडब्ल्यू हिन्दी
ऋतिका पाण्डेय एडिटर, डॉयचे वेले हिन्दी. साप्ताहिक टीवी शो 'मंथन' की होस्ट.@RitikaPandey_