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ये हो सकता है आतंकवाद को खत्म करने का सबसे अच्छा तरीका

२८ अक्टूबर २०१६

ऑस्ट्रिया में एक संस्था मांओं को इस बात की ट्रेनिंग दे रही है कि वे अपने बच्चों के भीतर पनपते कट्टरपंथी रवैये को शुरुआत में ही पहचान लें ताकि उन्हें खतरनाक स्तर तक पहुंचने से पहले ही रोका जा सके.

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Bangladesh Demonstration gegen Terrorismus
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo

इंडोनेशिया के शहर सुराबाया में रहने वालीं जरमी को तभी अजीब सा लगा था जब उनके बेटे के दो नए दोस्त अक्सर घर आने लगे. कुछ समय बाद जरमी के बेटे प्रियो हादी पूर्णमो को विस्फोटकों और हथियारों के साथ गिरफ्तार कर लिया गया. और तब जाकर जरमी को समझ आया कि जो उन्हें अजीब लग रहा था वह दरअसल उनके बेटे का धार्मिक कट्टरपंथ की ओर धीरे धीरे हो रहा रुझान था. वह बताती हैं, "मेरा बेटा एक अच्छा लड़का था. वह ज्यादा बात तो नहीं करता था लेकिन पढ़ाई में अच्छा था."

जरमी की कहानी उन सारी मांओं की कहानी है जिनके बेटे कट्टरपंथ की ओर आकर्षित होते हैं और फिर आतंकवादी बन जाते हैं. सिस्टर्स अगेंस्ट वॉयलेंट एक्सट्रीमिजम (सेव) नाम की संस्था ऐसी ही मांओं के साथ काम करती हैं. इंडोनेशिया में संस्था की संयोजक देवीरिनी आंगराएनी कहती हैं, "हम ऐसी मांओं से मिल चुके हैं जिनके बेटे आतंकवादी हो गए और इस्लामिक स्टेट जैसे संगठनों के लिए लड़ने विदेश चले गए. उन्हें इस्लामिक स्टेट के बारे में कुछ भी नहीं पता था. उनके बेटों ने उन्हें बताया था कि वे तेल कंपनियों के लिए काम कर रहे हैं."

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सेव संस्था ऑस्ट्रिया में शुरू हुई थी. यह संस्था ऐसी मांओं की मदद करती है जिनके बच्चे कट्टरपंथी की ओर जाने के खतरे की जद में हैं. संस्था मांओं को सिखाती है कि वे पहले संकेत कौन से होते हैं जिनसे पता चल सकता है कि बच्चा कुछ बदल रहा है. इंडोनेशिया में तीन साल पहले ईस्ट जावा प्रांत में इसका पहला केंद्र खुला था. अब तक यहां 150 मांओं को ट्रेनिंग दी जा चुकी है.

ताजिकिस्तान, नाइजीरिया और भारत में भी यह संस्था काम कर रही है. इसका मकसद आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में महिलाओं का इस्तेमाल है. जकार्ता में वर्ल्ड पीस फोरम में इसी बात पर चर्चा होनी है. फोरम में एक समिति के प्रमुख वाहिद रिदवान कहते हैं, "आतंकवाद की आंच सबसे ज्यादा महिलाएं झेलती हैं लेकिन इसके खिलाफ लड़ाई में उनकी भूमिका पर नीति निर्माताओं ने बहुत कम सोचा है."

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इंडोनेशिया यूनिवर्सिटी में आतंकवाद विश्लेषक रिदवान हबीब कहते हैं कि सरकारें आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई की जो रणनीतियां बना रही हैं उनमें इस बात पर विचार ही नहीं हो रहा है कि बच्चों को कट्टरपंथी बनने से रोकने में महिलाएं अहम भूमिका निभा सकती हैं. वह कहते हैं, "जो खतरनाक विचार बच्चों को आकर्षित करते हैं उनसे लड़ने में परिवार की भूमिका अहम हो सकती है. हाल के मामले दिखाते हैं कि हमलावर बहुत कम उम्र के युवा थे जो अच्छे परिवारों से थे और घर पर इंटरनेट ने उन्हें कट्टरपंथी बना दिया." हबीब कहते हैं कि कानून व्यवस्था को लागू करवाने में भी महिलाओं की भूमिका बढ़ाए जाने की जरूरत है क्योंकि वे ज्यादा संवेदनशील हो सकती हैं और सूचनाओं तक उनकी पहुंचा आसान हो सकती है.

वीके/एके (डीपीए)