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तनाव के बीच मैर्केल का जटिल दौरा

३ फ़रवरी २०१७

जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल ने एक अहम समय पर तुर्की का दौरा किया है. डीडब्ल्यू की सेदा सेरदार का कहना है कि दोनों देशों के नेताओं ने आपसी समस्याओं को सुलझाने की कोशिश की, लेकिन उनके बीच गर्मजोशी नहीं थी.

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Türkei Treffen Angela Merkel & Recep Tayyip Erdogan
तस्वीर: picture-alliance/Anadolu Agency/K. Azher

बीते दस साल में मैर्केल का कोई भी तुर्की दौरा सहज नहीं रहा है. उनका ताजा दौरा तुर्की के लिहाज से बहुत अहम समय में हुआ. यह दौरा ऐसे समय में हुआ है, जब तुर्की में एक ऐसे जनमत संग्रह की तैयारी हो रही है जिससे देश की लोकतांत्रिक परंपराओं में बड़ा बदलाव आएगा.

तुर्की में लोकतांत्रिक कमियों को लेकर अकसर ही बात होती रही है, लेकिन पिछले साल के नाकाम तख्तापलट के बाद जिस तरह बड़े पैमाने पर सरकार ने अपने आलोचकों के खिलाफ कदम उठाए हैं, उससे ये कमियां एक ऐसे स्तर पर आ गई हैं जो न तो पहले देश के लोगों ने और न ही सहयोगी देशों ने देखी थी.

तुर्की के राष्ट्रपति रेचप तैयप एर्दोवान और प्रधानमंत्री बिनाली इल्दिरीम के साथ अलग-अलग प्रेस कांफ्रेंसों में मैर्केल ने प्रेस की स्वतंत्रता और सत्ता के पृथक्कीकरण के विषय को थोड़ा सा छूने की कोशिश की. उन्होंने लोकतंत्र में राजनीतिक विपक्ष की अहमियत पर भी जोर दिया. बड़ी तस्वीर को देखें और प्रस्तावित संवैधानिक सुधारों, हजारों लोगों की गिरफ्तारियां, उन्हें नौकरियों से बर्खास्त किए जाने और विपक्षी आवाजों को दबाने पर विचार करें तो इन बयानों में स्थिति की गंभीरता का पूरी तरह पता नहीं चलता.

तुर्की में जब हुआ तख्तालपट

संवाद के रास्ते खुले

मैर्केल के लिए यह मुश्किल स्थिति है, खास तौर से इसलिए कि जर्मनी में इस साल चुनाव हैं. दूसरी तरफ, यूरोपीय मूल्यों की प्रतिनिधि के तौर पर मैर्केल को एर्दोवान के विरोध में खड़ा होना ही पड़ेगा. लेकिन वह अपनी बात इस तरह सख्ती से दो टूक अंदाज में भी नहीं कह सकती हैं कि यूरोपीय संघ और तुर्की के बीच हुआ शरणार्थी समझौता ही खत्म हो जाए.

शरणार्थी समझौता ही अकेला नाजुक मुद्दा नहीं है. जर्मनी में कुछ संगठनों में काम करने वाले इमामों पर तुर्की के लिए जासूसी करने के आरोप लगे हैं. हालांकि मैर्केल ने इस बारे में स्पष्टीकरण मांगा है, लेकिन तुर्की में दोनों ही नेता इस मुद्दे पर सार्वजनिक रूप से कुछ भी कहने से बचे. इस मुद्दे को लेकर दोनों देशों के बीच तनाव जारी रहेगा.

अतीत की बातें

दोनों देशों के ऐतिहासिक और वित्तीय संबंधों को लेकर दोस्ताना बयानों और आतंकवाद के साथ मिल कर लड़ने की अहमियत के बावजूद ऐसा लगता है कि अंकारा में हुई बातचीत में समस्या और अहसजता ही दिखती रही. ऐसी कोई बात सामने नहीं आई जिससे आगे के रास्ते की कोई जानकारी मिलती हो. सिर्फ यही स्पष्ट संदेश था कि शरणार्थी समझौते को पटरी पर बनाए रखा जाए और यह भी कि तुर्की यूरोप को ब्लैकमेल नहीं कर रहा है.

देखिए तुर्की का बढ़ता महत्व

निश्चित तौर पर दोतरफा संबंध बनाना अहम है और विवादित मुद्दों के समाधान भी तलाशने होंगे. लेकिन तुर्की में सिमटते जा रहे लोकतंत्र के लिए भी आवाज बुलंद करनी होगी ताकि जो लोग इसके लिए लड़ रहे हैं वो खुद को घिरा हुआ महसूस न करें. अगर ज्यादा नहीं तो, यह उतना ही जरूरी है जितना शरणार्थी समझौते को बनाए रखना और आईएस के खिलाफ लड़ना जरूरी है.

दौरे की टाइमिंग

हालांकि बहुत से लोग इस दौरे की टाइमिंग पर सवाल उठा रहे हैं, लेकिन मैर्केल तुर्की में अहम जनमत संग्रह से पहले वहां के नेताओं से मिलने में कोई समस्या महसूस नहीं करती. यह बात सही है कि मैर्केल अपने दौरे में सीएचपी और एचडीपी जैसी विपक्षी पार्टियों के नेताओं से भी मिलीं, जो अक्टूबर 2015 में आम चुनाव से पहले अपने तुर्की दौरे में वह नहीं कर पाई थीं. बावजूद इसके एर्दोवान की एकेपी पार्टी मैर्केल के दौरे का फायदा उठाने से नहीं चूकेगी और जनमत संग्रह के लिए प्रचार के दौरान इसे भुनाने की कोशिश होगी.