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सियासी बंधन तोड़ती पाक महिला

Priya Esselborn२ अप्रैल २०१३

पाकिस्तान की एक सीधी सादी गृहिणी ने तालिबान से लोहा लेते हुए चुनावों में लड़ने का फैसला किया है. अफगानिस्तान से सटे कबायली इलाके में उनके चुनाव जीतने न जीतने से ज्यादा चर्चा आम औरत के सियासत से जुड़ने को लेकर हो रही है.

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तस्वीर: AP

आम तौर पर मर्दों की प्रभुत्व समझी जाने वाली राजनीति में इस बार खर की 40 साल की बादाम जारी ने भी किस्मत आजमाने का फैसला किया है. जिस देश में पढ़ाई करने की वजह से बच्चियों पर हमले हो रहे हों, वहां जाहिर तौर पर कट्टरपंथी धड़े को इस औरत का सियासत में आना खल सकता है और उन पर हमले भी हो सकते हैं.

लेकिन जारी अपने फैसले पर अटल हैं, "मैं महिलाओं की आवाज उठा कर असेंबली में पहुंचना चाहती हूं, खास कर उन महिलाओं की, जो कबायली इलाकों में रह रही हैं. यह एक मुश्किल फैसला था, लेकिन अब मुझे यकीन है कि समाज मेरा समर्थन करेगा."

पाकिस्तान की करीब 18 करोड़ की आबादी में ज्यादातर रूढ़ीवादी हैं और महिलाओं को लेकर उनका नजरिया बहुत तंग रहा है. पश्तून इलाकों में तो यह और तंग हो जाता है, जो मुख्य तौर पर कबीलों में बंटा है और जहां अशिक्षा बहुत हावी है.

बुरी हालत में औरतें

इन जगहों पर महिलाएं आम तौर पर अशिक्षित हैं, गाहे बगाहे ही घर से बाहर काम करती हैं और बाहर जाते वक्त पर्दा करना नहीं भूलतीं. जारी भी जब मीडिया के सामने आईं, तो उन्होंने एक रंगीन शॉल डाल रखी थी, जिसमें उनका पूरा शरीर ढका था, सिर्फ उनकी आंखें नजर आ रही थीं. उन्होंने हाई स्कूल तक की पढ़ाई की है.

तालिबान के बढ़ते प्रभाव के बाद से इन इलाकों में महिलाओं की स्थिति और खराब हुई है. पिछले साल तालिबान लड़ाकों ने 15 साल की मलाला यूसुफजई को गोली मार दी थी क्योंकि वह "स्कूल जाती थी और पढ़ती थी."

जारी कबायली बाजौर इलाके की हैं, जहां पाकिस्तान की सेना तालिबान से टक्कर ले रही है. बाजौर के मुख्य शहर खर में उन्होंने रविवार को चुनाव लड़ने की रस्में पूरी कर दी हैं. उनके साथ उनके पति भी थे, जो पूरी तरह उनके साथ हैं. पाकिस्तान में नेशनल असेंबली के चुनाव 11 मई को होने वाले हैं.

Demonstration für Frauenrechte in Pakistan
तस्वीर: AP

बाजौर के प्रमुख नेता असद सरवर ने कहा, "यह एक साहसी कदम है. इस महिला ने बंधनों को तोड़ा है." आम तौर पर इस इलाके में महिलाओं को वोट डालने से भी मना किया जाता है और कहा जाता है कि उन्हें घर में रहना चाहिए.

जान बूझ कर

इस्लामाबाद के कायदे आजम यूनिवर्सिटी में लैंगिक समानता विभाग की प्रमुख फरजाना बारी का कहना है कि दूसरे इलाकों में भी औरतें आम तौर पर मर्दों की मर्जी से और उनकी पसंद के उम्मीदवार को वोट करती हैं, "संस्कृति और परंपरा के नाम पर राजनीतिक पार्टियों ने औरतों को राजनीतिक व्यवस्था से दूर रखा है." वह जारी की तारीफ करती हैं कि उन्होंने इनके खिलाफ कदम उठाने का फैसला किया है.

वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की 2012 वाली लैंगिक समानता रिपोर्ट में पाकिस्तान नीचे से दूसरे नंबर पर है. यह रिपोर्ट राजनीतिक जागरूकता, शिक्षा और सेहत की स्थिति को ध्यान में रख कर तैयार की गई है. पाकिस्तान से नीचे सिर्फ यमन है.

औरतों को आरक्षण

पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो का हवाला देते हुए बारी का कहना है कि पाकिस्तान में कई महिलाएं महत्वपूर्ण पदों पर भी रही हैं लेकिन ऐसा तब हुआ है, जब उनके परिवार में कोई पुरुष सदस्य नहीं होता है. नेशनल असेंबली की 17 फीसदी सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हैं और यह पार्टियों के प्रदर्शन के अनुसार उन्हें बांटी गई हैं.

इसके अलावा महिलाएं निर्दलीय भी चुनाव लड़ सकती हैं, जैसे जारी कर रही हैं. उन्हें उम्मीद है कि वह महिलाओं को वोट देने के लिए राजी कर पाएंगी. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक उनके चुनाव क्षेत्र में एक लाख 86 हजार मतदाता दर्ज हैं, जिनमें 67 हजार महिलाएं हैं. यानी अगर उन्हें महिलाओं का एकतरफा वोट पड़ जाए, तो वह जीत भी सकती हैं.

एजेए/एनआर (एपी)

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