1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

पीछे छोड़ आया है पाकिस्तान बेनजीर भुट्टो को

२७ दिसम्बर २०१६

नौ साल पहले 27 दिसंबर को पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो की हत्या अभी तक रहस्य है. लेकिन एक बात साफ है कि उनकी पाकिस्तान पीपल्स पार्टी देश की राजनीति में कोई बड़ी ताकत नहीं रह गई है.

https://p.dw.com/p/2Utp6
Pakistan Benazir Bhutto
तस्वीर: dapd

पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री और सबसे करिश्माई नेता बेनजीर भुट्टो की नौ साल पहले रावलपिंडी में एक चुनाव प्रचार के दौरान हत्या कर दी गई थी. उनके बेटे बिलावल जरदारी, जिन्हें बेनजीर ने अपनी वसीयत में अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी घोषित किया था, आज सिंध प्रांत के गढ़ी खुदा बख्श में अपने समर्थकों को संबोधित कर रहे हैं. लेकिन उनमें न तो अपनी मां या नाना जुल्फिकार अली भुट्टो की तरह नेतृत्व के गुण हैं और  न ही जनता का समर्थन. फिर भी 28 वर्षीय बिलावल पार्टी में नई जान फूंकने की जी जान से कोशिश कर रहे हैं. बिलावल जरदारी ने अक्टूबर में अपने समर्थकों से कहा था, "यदि लोग हमें समर्थन दें तो हम पाकिस्तान को बदल देंगे."

तस्वीरों में: 2016 में एशिया की सबसे बड़ी घटनाएं

अज्ञात हमलावरों द्वारा बेनजीर की हत्या के बाद से उनके पति आसिफ अली जरदारी अपने बेटे के साथ पार्टी का नेतृत्व कर रहे हैं. बेनजीर भुट्टो की मौत के बाद पाकिस्तान पीपल्स पार्टी ने 2008 का आम चुनाव जीता था. उसके बाद जरदारी देश के राष्ट्रपति बने. लेकिन 2013 के चुनाव में पार्टी बुरी तरह हार गई और भुट्टो के गढ़ सिंध के अलावा उसका हर कहीं सफाया हो गया. जरदारी की शासन भ्रष्टाचार, अक्षम प्रशासन भाई भतीजावाद और घरेलू इस्लामी कट्टरपंथियों के उत्थान के साए में रहा. पार्टी समर्थकों को सबसे ज्यादा नाराज भुट्टो के हत्यारों को सजा देने में सरकार की अनिच्छा ने किया.

जरदारी की सरकार के आग्रह पर गठित संयुक्त राष्ट्र के एक आयोग ने 2010 की अपनी विस्तृत रिपोर्ट में कहा कि भुट्टो की सुरक्षा के इंतजाम अत्यंत अपर्याप्त थे और कुछ सैनिक एजेंसियों ने शुरुआती जांच में बाधा डालने की कोशिश की थी. देश के पूर्व सैनिक शासक परवेज मुशर्रफ पर भी भुट्टो हत्या कांड में आरोप लगे. वे अपनी हिस्सेदारी ने इंकार करते हैं और आरोप तालिबान पर मढ़ते हैं जबकि कट्टरपंथी इस्लामी संगठन का कहना है कि उसने बेनजीर भुट्टो को नहीं मारा.

खानदानी राजनीति का अंत

पाकिस्तानी राजनीति में बहस अब बेनजीर भुट्टो की हत्या से आगे जा चुकी है. राजनीतिक परिदृश्य पर क्रिकेटर से राजनीतिज्ञ बने इमरान खान जैसे दूसरे बड़े किरदार उभर आए हैं. नई पार्टियों को मध्य वर्ग के बड़े हिस्से से मिल रहे समर्थन की वजह यह है कि वे सुशासन पर जोर दे रहे हैं, खासकर भ्रष्टाचार और राजनीतिक उत्तरदायित्व पर. कुछ उदारवादी बुद्धिजीवियों को छोड़कर पाकिस्तान के अवाम समाजवादी क्रांति के नारों और भुट्टो खानदान के करिश्मे से आगे निकल चुकी है.

देखिए, पाकिस्तान में दहशत के 10 साल

बहुत से पाकिस्तानी शहरियों का मानना है कि भ्रष्टाचार देश के विकास की राह में सबसे बड़ा रोड़ा है और इसके लिए वे अपने राजनीतिज्ञों को जवाबदेह मानते हैं. कराची, लाहौर, इस्लामाबाद और रावलपिंडी जैसे शहरों के इन पढ़े लिखे लोगों ने अपनी उम्मीदें न्यायपालिका से लगा रखी हैं. उनका मानना है कि न्यायपालिका ने भ्रष्ट नेताओं और विधायकों पर मुकदमा चलाने के लिए पर्याप्त आजादी पा ली है. लेकिन देश के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन को दक्षिणपंथी पार्टियों और गैरसरकारी मीडिया का भी समर्थन मिल रहा है.  कराची का एक छात्र कहता है, "सबसे अहम बात व्यवस्था को बदलना है. भ्रष्टाचार खत्म करने के लिए राजनीतिज्ञों की नैतिकता और जवाबदेही पर जोर देना होगा."

अकेली असली उदारवादी पार्टी

इसके बावजूद बेनजीर भुट्टो की शख्सियत पाकिस्तान के बहुत से उदारवादी कार्यकर्ताओं और बुद्धिजीवियों को प्रेरित करती है जिनका मानना है कि भुट्टो ने अपनी जान लोकतंत्र को मजबूत बनाने के लिए दे दी. लाहौर में पीपल्स पार्टी के एक समर्थक ने डॉयचे वेले को बताया, "पीपल्स पार्टी अभी भी देश की अकेली सच्ची प्रगतिशील पार्टी है. यह अकेली पार्टी है जो सेना के जनरलों और बढ़ते इस्लामी कट्टरपंथ का मुकाबला कर सकती है. भुट्टो हमेशा हमारी प्रेरणा और उदारवादी लोकतंत्र का प्रतिरूप रहेंगी."

लेकिन दूसरी ओर से बहुत से लोगों का मानना है कि बेनजीर भुट्टो की पीपल्स पार्टी का अस्तित्व खत्म हो गया है. पार्टी उनके साथ ही 2007 में मर गई. उनका मानना है कि मौजूदा पीपल्स पार्टी जरदारी की पार्टी है और उसकी एकदम अलग विचारधारा है. पार्टी के कुछ विधुब्ध नेता पतन के लिए पार्टी नेतृत्व को जिम्मेदार मानते हैं. उनका कहना है कि जरदारी ने पीपल्स पार्टी की विचारधारा को तिलांजलि दे दी है. उनका बिलावल भुट्टो को संदेश है कि अगर वे पार्टी को फिर से जिंदा करना चाहते हैं तो  अपने बदनाम पिता का साथ छोड़ दें और मां और नाना की विचारधारा की ओर वापस लौटें.

लेकिन ऐसे राजनीतिक विश्लेषक भी हैं जो नहीं मानते कि भुट्टो प्रगतिशील राजनीतिज्ञ थीं. उनके ही शासन में तालिबान ने काबुल पर हमला किया था और अपना बर्बर इस्लामी शासन शुरू किया. कुछ का तो ये भी कहना है कि यह इस्लामाबाद सरकार के समर्थन से हुआ.

शामिल शम्स/एमजे