1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

पाकिस्तान में कट्टरपंथियों का राज है

शामिल शम्स
२८ नवम्बर २०१७

पाकिस्तान में 27 नवंबर को एक काले दिन के तौर पर याद किया जायेगा जब कट्टरपंथियों ने परे देश को झुका दिया. डीडब्ल्यू के शामिल शम्स कहते हैं कि चिंता की बात यह है कि इस मामले में सेना ने कट्टरपंथियों का साथ दिया.

https://p.dw.com/p/2oMyX
Pakistan Proteste
तस्वीर: picture-alliance/abaca

कट्टरपंथियों की मांग के मुताबिक कानून मंत्री जाहिद हामिद का इस्तीफा कोई बहुत आश्चर्यजनक घटना नहीं थी. इससे पहले प्रदर्शनकारियों पर सरकार ने कार्रवाई की, जिससे न सिर्फ राजधानी इस्लामाबाद में बल्कि देश के कई अन्य शहरों में भी हिंसा भड़क उठी.

चुनाव के लिए नामांकन दाखिल करने से जुड़े एक हलफनामे में पैगंबर मोहम्मद का संदर्भ हटाने के लिए तहरीक ए लब्बैक नाम का संगठन कानून मंत्री को ईशनिंदा का जिम्मेदार बता रहा था. हालांकि इस मुद्दे पर विवाद बढ़ता देख कानून मंत्री हामिद पहले ही न सिर्फ माफी मांग चुके हैं बल्कि हलफनामे को भी उसके मूल स्वरूप में बहाल कर दिया गया. लेकिन प्रदर्शनकारी उनके इस्तीफे से कम पर मानने को तैयार नहीं थे.

पाकिस्तान में कानून मंत्री का इस्तीफा, प्रदर्शन खत्म

41 मुस्लिम देशों ने बनाया आतंकवाद विरोधी गठबंधन

जब सरकार की तरफ से प्रदर्शनकारियों के खिलाफ की गयी कार्रवाई भी इस्लामाबाद की तरफ जाने वाली अहम सड़क से उन्हें नहीं हटा पायी तो सरकार ने सेना से मदद मांगी. लेकिन सेना प्रमुख कमर जावेद बाजवा ने प्रधानमंत्री शाहिद खाकान अब्बासी को मशविरा दिया कि प्रदर्शनकारियों के साथ "शांतिपूर्ण तरीके से" निपटा जाये और उनके साथ बातचीत शुरू की जाए.

ये है ओसामा का बेटा हमजा बिन लादेन

पाकिस्तान में सेना को सबसे ताकतवर संस्था माना जाता है. खबरें हैं कि सेना ने कहा कि वह हिंसा की स्थिति में हस्तक्षेप नहीं करेगी क्योंकि वे "अपने ही लोगों पर" ताकत का इस्तेमाल नहीं कर सकते. यह सरकार को संदेश था कि धार्मिक चरमपंथियों के साथ हिंसक टकराव की स्थिति में सेना सरकार का साथ नहीं देगी. ऐसे में, इस बात की संभावना बढ़ गयी कि अब सरकार के पास चरमपंथियों के सामने झुकने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है और फिर वही हुआ. कानून मंत्री ने इस्तीफा दिया और राजधानी इस्लामाबाद की नाकेबंदी खत्म हुई.

इस पूरे मामले में अधिकारियों ने साबित किया है कि चरमपंथी खुद पाकिस्तानी राष्ट्र से भी मजबूत हैं. इससे तो यही समझ आता है कि मुट्ठीभर लोग इतने ताकतवर हैं कि वे शरिया की अपनी व्याख्या के मुताबिक सांसदों को अपनी मर्जी के कानून बनाने के लिए मजबूर कर सकते हैं. कुछ लोग तो यह भी कहते हैं कि पाकिस्तान में असली शासक कट्टरपंथी ही हैं. वे सड़कों पर उतर आएं तो पूरी सरकार और व्यवस्था पंगु बन कर रह जाती है. और सेना ऐसे लोगों को "अपने लोग" समझती है. ऐसे में, चुनी हुई सरकार की क्या जरूरत रह जाती है?

Shams Shamil Kommentarbild App
शामिल शम्स

पाकिस्तान में उदारवादी और प्रगतिशील सोच रखने वाले लोगों को तंग किया जाता है और तंग करने वाला कोई और नहीं बल्कि वही लोग हैं जिन्हें सेना "अपने लोग" कहती है. पिछले कुछ हफ्तों में जो कुछ हुआ, निश्चित तौर पर उससे दुनिया भर में पाकिस्तान की और बदनामी हुई है. अंतरराष्ट्रीय समुदाय की बराबर इस पर नजर थी कि कैसे राजधानी इस्लामाबाद को एक तरह से बंधक बना लिया गया और विवाद को खत्म करने के लिए "राजनीतिक संवाद" के नाम पर सरकार ने कट्टरपंथियों के सामने झुकने का फैसला किया.

चरमपंथियों को रोकने में कामयाब होगा पाकिस्तान?

कट्टरपंथियों की यह जीत सत्ताधारी पार्टी पाकिस्तान मुस्लिम लीग (एन) के नेता और पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की हार है. तहरीक ए लब्बैक पार्टी के नेता खादिम हुसैन रिजवी का पंजाब में खासा असर है जो 1980 के दशक से शरीफ का गढ़ रहा है. विपक्षी नेता इमरान खान साफ तौर पर कट्टरपंथियों के साथ दिख रहे हैं. यही नहीं, हाल के महीनों में रिजवी की लोकप्रियता भी काफी बढ़ी है. सितंबर में रिजवी मुख्यधारा की राजनीति में शामिल हुए और नवाज शरीफ की खाली की गयी लाहौर सीट पर हुए उप चुनाव में रिजवी की पार्टी को सात हजार से ज्यादा वोट मिले.

पाकिस्तान अब ऐसे दौर में दाखिल हो गया है जहां चंद कट्टरपंथियों के पास इतनी ताकत होगी कि वह अपनी मांगों को मनवा पाएंगे. वही तय करेंगे कि क्या इस्लामी है और क्या नहीं, कौन काफिर है, किसने ईशनिंदा की है, कौन गुनहगार है और कौन पश्चिमी देशों का एजेंट है. पाकिस्तानी कट्टरपंथियों ने दिखा दिया है कि अब वही राष्ट्र हैं.