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प्रदूषण की रोकथाम पर राजनीति

चारु कार्तिकेय
१६ नवम्बर २०२१

दिल्ली में हर साल सर्दियों में वायु प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता है लेकिन इसकी रोकथाम के लिए स्थायी कदम नदारद हैं. प्रदूषण जैसे विषय पर भी राजनीति हावी है और सरकारें अपनी अपनी राजनीतिक रोटियां सेकने में व्यस्त हैं.

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तस्वीर: Jewel Samad/AFP/Getty Images

13 नवंबर को जब सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एन वी रमना ने कहा कि वो अपने घर के अंदर भी सांस नहीं ले पा रहे हैं तब दिल्ली में प्रदूषण का स्तर पहली बार खतरनाक रूप से नीचे नहीं गिरा था. अक्टूबर-नवंबर में ऐसा हर साल होता है.

लेकिन इसके बावजूद न दिल्ली सरकार हर साल इस स्थिति को दोहराने से रोक पा रही है और न केंद्र सरकार. यहां तक कि प्रदूषण के कारणों को लेकर भी दोनों सरकारों का नजरिया अलग है.

प्रदूषण का असली कारण क्या

यह बात एक बार फिर खुल कर सुप्रीम कोर्ट में 15 नवंबर को सामने आई जब केंद्र सरकार ने अदालत को बताया कि दिल्ली के प्रदूषण के लिए शहर के अंदर के कारण ज्यादा जिम्मेदार हैं और पड़ोसी राज्यों में जलाई जाने वाली फसल की पराली के धुएं के असर का सिर्फ 10 प्रतिशत योगदान है.

दिल्ली सरकार इस बात से सहमत नहीं है और वो लगातार प्रदूषण में पराली के धुएं के योगदान को 30-40 प्रतिशत तक बताती है. बल्कि अदालत के दरवाजे खटखटाने वाले याचिकाकर्ताओं में से एक के वकील विकास सिंह ने भी कहा कि केंद्र ने इससे पहले अपनी ही एक बैठक में कहा था कि पराली के धुएं का 35 प्रतिशत योगदान है.

केंद्र सरकार इससे पहले भी पराली जलाने के योगदान को 10 प्रतिशत से भी कम बता चुकी है, लेकिन दिल्ली सरकार का कहना है कि एक ही एफिडेविट में केंद्र सरकार ने चार प्रतिशत और 35-40 प्रतिशत दोनों आंकड़े दिए हैं.

इसका मतलब आज तक यह भी स्पष्ट नहीं हो पाया है कि दिल्ली में प्रदूषण के मुख्य कारण क्या हैं. ऐसे में प्रदूषण के रोकथाम की एक कारगर नीति कैसे बन पाएगी?

साल भर प्रदूषण पर नहीं जाता ध्यान

अलग अलग संस्थानों के अध्ययनों में भी यह विरोधाभास नजर आता है. दिल्ली स्थित थिंक टैंक सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) का कहना है कि इस साल पराली के धुएं का दिल्ली के प्रदूषण में 12 प्रतिशत योगदान रहा है. हां, दिवाली की तीन दिनों बाद यानी सात नवंबर को यह बढ़ कर 48 प्रतिशत हो गया था.

सीएसई के मुताबिक 2020 में इसका पूरे साल का औसत था 17 प्रतिशत, 2019 में 14 प्रतिशत और 2018 में 16 प्रतिशत. एक और संस्था द एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टिट्यूट (टेरी) के मुताबिक पराली का योगदान सिर्फ छह प्रतिशत है.

इसका मतलब आज तक स्पष्ट रूप से यह भी साबित नहीं हो पाया है कि दिल्ली के प्रदूषण के लिए कौन कौन से कारण कितने जिम्मेदार हैं. यह पता लगाना समाधान ढूंढने की पहली सीढ़ी है और अगर सरकार अभी पहली सीढ़ी ही नहीं चढ़ पाई है तो समझ लेना चाहिए कि मंजिल अभी दूर है.

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