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इन्सानों के लिए जान की बाजी लगाते ये बंदर

१५ जून २०२१

कोविड़-19 महामारी से इन्सानों को बचाने के लिए लड़ी जा रही लड़ाई में बंदरों की अहम भूमिका है. अमेरिका के एक शोध केंद्र में पांच हजार बंदर इसीलिए रखे गए हैं. पर क्या यह नैतिक है?

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तस्वीर: picture-alliance/dpa/M. Murat

अमेरिका के लुइजियाना में एक छोटे से कस्बे में पांच सौ एकड़ जमीन पर बने एक बाड़े में लगभग पांच हजार बंदर उछल-कूद करते देखे जा सकते हैं. इनमें से ज्यादातर रीसस मैकाकेस प्रजाति के हैं. ट्यूलान नैशनल रीसर्च सेंटर में रह रहे इन बंदरों में से ज्यादातर इन्सान की कोविड-19 महामारी से रक्षा में योगदान देने के लिए तैयार किए जा रहे हैं.

उच्च स्तरीय जैव-सुरक्षा वाले इस केंद्र में प्रयोगशालाएं ऐंथ्रेक्स जैसे गंभीर जैविक खतरों से निपटने में सक्षम हैं. लेकिन कोरोनावायरस महामारी के हमले के बाद इन प्रयोगशालाओं ने खुद को तेजी से कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई के लिए तैयार कर लिया. और ये पांच हजार बंदर उसी तैयारी का हिस्सा हैं.

केंद्र के एसोसिएट डायरेक्टर स्किप बॉम कहते हैं कि इन्सानी बीमारियों पर अध्ययन के लिए बंदरों का इस्तेमाल काफी सटीक रहता है क्योंकि उनका डीएनए और शारीरिक गुण उन्हें इन्सानों से तुलना के लिए एक आदर्श मॉडल बनाते हैं.

उन्होंने बताया, "ये गैर-मानव प्राइमेट हमारे लिए न सिर्फ बीमारी और उसके मानव शरीर पर होने वाले प्रभाव को समझ पाने के लिए लिहाज से बेहद अहम हैं, बल्कि हम विभिन्न इलाजों, थेरेपी और टीकों की तुलना भी कर सकते हैं."

वैज्ञानिक शोध में रीसस मैकाकेस प्रजाति के बंदरों का सर्वाधिक प्रयोग किया जाता है. इसी प्रजाति के बंदर ट्यूलान केंद्र की ब्रीडिंग कॉलनी में सबसे ज्यादा हैं. पिछले एक साल में दो सौ से ज्यादा वयस्क बंदरों को कोरोनावायरस से संबंधित प्रयोगों में इस्तेमाल किया जा चुका है.

केंद्र में हो रहे कोविड-19 से संबंधित अध्ययनों में से एक बीती फरवरी में विज्ञान पत्रिका नेशनल अकैडमी ऑफ साइसेंज में प्रकाशित हुआ था. इस शोध में पता चला कि भारी शरीरों वाले ज्यादा आयु के मरीज सांस लेते ज्यादा वाष्पकण छोड़ते हैं, जो उन्होंने सुपरस्प्रैडर बनाता है. अध्ययन में शामिल रहे केंद्र के संक्रामक रोग विभाग के निदेशक चैड रॉय कहते हैं कि इस अध्ययन में बंदरों का योगदान बेहद अहम था.

आने वाले समय में लंबी अवधि के कोविड पर अध्ययन को योजना पर भी काम चल रहा है, जो कुछ मरीजों में देखा गया है. लगभग दस फीसदी मरीज लंबे समय तक कोविड से बीमार रहे हैं

अध्ययन पूरा हो जाने के बाद ट्यूलान सेंटर में, शोध में शामिल रहे बंदरों को मार दिया जाता है और उनके ऊतकों को जमा कर लिया जाता है, जिससे श्वसन तंत्र के इतर हो रहे कोविड-19 के असर का अध्ययन किया जा सके. इस वजह से कुछ लोग नाखुश भी हैं. जानवरों के अधिकारों के लिए काम करने वाली संस्था पीपल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स (PETA) की कैथी गिलेर्मो कहती हैं कि बंदरों पर प्रयोग नहीं होने चाहिए.

वह कहती हैं, "अगर उनका इस्तेमाल ना किया होता, तो उन्हें मारना भी ना पड़ता. हमें अगर कुछ काम की बात पता चलेगी तो इन्सानों पर प्रयोग से ही पता चलेगी."

वीके/आईबी (रॉयटर्स)

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