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समाज

बाल मजदूरी, भारत का एक कड़वा सच

१८ फ़रवरी २०२०

उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में एक रेडियो स्टेशन बच्चों को शिक्षा की ओर आकर्षित करने में मदद कर रहा है. स्टेशन बाल श्रम करने वाले बच्चों के लिए खास कार्यक्रम चलाता है. शो का मकसद है शहर को बाल मजदूरी को लेकर जागरुक बनाना.

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Kinderarbeit in Delhi (Indien)
तस्वीर: DW/A. Chatterjee

रेडियो के माइक पर गुब्बारे बेचने वाली 9 साल की निशा ने बताया कि उसका पसंदीदा रंग बैंगनी है. उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में "लाउडस्पीकर" एफएम रेडियो का एक कार्यक्रम बाल मजदूरों की आवाज को सामने लाने के लिए समर्पित है. गोरखपुर की सड़कों पर निशा की तरह सड़कों पर काम और रहने को मजबूर बच्चों ने एक दोपहर रेडियो स्टूडियो में बिताए, उन्होंने रेडियो कार्यक्रम के दौरान कविता पढ़ी, गाने सुनाए और अपने दिन के बारे में बातचीत की.

गोरखपुर में बाल मजदूरी अब भी देखी जा सकती है. रेडियो शो के दौरान डीजे ज्योति सिंह ने निशा से पूछा, "मुझे बताया गया कि तुम कुछ गुब्बारे बच्चों को मुफ्त में दे देती हो?" ज्योति सिंह के सवाल के जवाब में निशा कहती है, "हां, जब मैं देखती हूं कि बच्चे रो रहे हैं तो मैं उन्हें गुब्बारे दे देती हूं."

Indien Kinderarbeit
फाइल.तस्वीर: imago/imagebroker

इस रेडियो स्टेशन की शुरुआत पिछले साल बच्चों की समस्याओं पर ध्यान देने के लिए बाल तस्कर विरोधी संस्था ने की थी. रेडियो स्टेशन ने हफ्ते में एक घंटे का विशेष कार्यक्रम हाल में ही शुरू किया है. अंतरराष्ट्रीय श्रमिक संगठन का अनुमान है कि भारत में 5 से लेकर 14 साल की उम्र के करीब एक करोड़ बाल मजदूर हैं. दुनिया भर में 15 करोड़ बच्चे मजदूरी करने को मजबूर हैं.

भारतीय कानून 15 साल से कम उम्र के बच्चों को काम करने के लिए प्रतिबंधित करता है. हालांकि स्कूल के बाद बच्चे परिवार के व्यापार में मदद कर सकते हैं. बालश्रम के खिलाफ अभियान चलाने वालों का कहना है कि पारिवारिक व्यवसायों के लिए यह रियायत काम देने वालों के लिए बच्चों को ईंट भट्टों, चूड़ी और कपड़े के कारखानों में रखने के लिए सक्षम बनाती है. साथ ही साथ इसी रियायत के सहारे बच्चों को सड़क किनारे गुब्बारे, पानी और चाय बेचने के काम पर लगाया जा रहा है.

सड़क पर काम करते बच्चे आम बात है लेकिन अधिकारियों की नजर उनपर नहीं जाती है. इसकी बजाय वो वे ईंट भट्टों या कारखानों में काम करने वाले बाल मजदूरों पर ध्यान देते हैं. पिछले साल "लाउडस्पीकर" एफएम रेडियो को शुरू करने वाले सेफ सोसायटी के संस्थापक विश्व वैभव शर्मा कहते हैं, "बच्चे जो सड़क पर काम करते हैं वह बाल मजदूर हैं लेकिन वे तस्करी के शिकार नहीं हैं जिन्हें उनके परिवारों से अलग कर दिया गया हो."

संस्था ने रेडियो कार्यक्रम के जरिए बच्चों को एक माध्यम देना चाहती है ताकि वे खुद को इजहार कर सके और शहर को बाल श्रम कानूनों पर एक सबक दे सके. गोरखपुर में पुलिस अधिकारियों को सरकार ने बाल श्रम के खिलाफ कार्रवाई के आदेश दिए हैं. गोरखपुर बाल कल्याण समिति के मिठाई लाल गुप्ता का कहना है कि बाल गृह में बच्चों को रखना समस्या का समाधान नहीं है और वे बाहर आते ही दोबारा काम करने लगेंगे. गुप्ता के मुताबिक, "हमारे पास एक बाल गृह है लेकिन यह सड़कों पर काम करने वाले बच्चों के लिए एक आदर्श व्यवस्था नहीं है." शर्मा का कहना है कि सेफ सोसायटी शिक्षकों को नौकरी पर रखती है जिससे माता-पिता को बच्चों को पढ़ने भेजने के लिए प्रोत्साहन मिलता है और इसके परिणाम भी देखने को मिल रहे हैं.

निशा के साथ रेडियो स्टूडियो में जाने वाले 10 से ज्यादा बच्चों में से आधे ने काम करना छोड़ दिया है. ज्योति कहती हैं कि "लाउडस्पीकर" एफएम का कार्यक्रम बच्चों पर केंद्रित है ना कि उनके काम पर. ज्योति कहती हैं, "कुछ बच्चे गुब्बारे बेचते हैं, कुछ घर में काम करते हैं जबकि कुछ बच्चे चाय की दुकान पर काम करते हैं. लेकिन हम उनके काम को महत्व नहीं देते हैं. उनके पास अन्य बच्चों की तरह रचनात्मकता दिखाने को नहीं है. हम उन्हें नाचने और गाने के लिए कहते हैं. उन्हें एक दिन के लिए रेडियो जॉकी बनाते हैं और इस तरह से उनकी कहानी टुकड़े-टुकड़े में बाहर आती है."

एए/एनआर (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)

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