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समाज

घट रहा है हिंदू और मुसलमान औरतों में बच्चे जनने का अंतर

विवेक कुमार
२२ सितम्बर २०२१

भारत में बीते दशकों में सभी धर्मों के लोगों की जन्मदर में बड़ी गिरावट हुई है. अमेरिकी संस्था प्यू रिसर्च सेंटर का एक ताजा अध्ययन बताता है कि 1951 से भारत की धार्मिक बनावट में मामूली बदलाव हुए हैं.

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तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/A. Qadri

प्यू रिसर्च सेंटर के ताजा अध्ययन में पता चला है कि भारत के सभी धर्मों में जन्मदर लगातार घटी है जिस कारण देश की मूल धार्मिक बनावट में मामूली बदलाव हुए हैं. 1.2 अरब आबादी वाले देश में 94 प्रतिशत लोग हिंदू और मुस्लिम धर्म के हैं. बाकी छह फीसदी आबादी में ईसाई, सिख, बौद्ध और जैन आते हैं.

प्यू रिसर्च सेंटर ने नैशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (एनएफएचएस) और जनगणना के आंकड़ों का विस्तृत अध्ययन किया है. इस अध्ययन के जरिए यह समझने की कोशिश की गई है कि भारत में धार्मिक संरचना में किस तरह के बदलाव आए हैं और अगर ऐसा हुआ है तो उनकी क्या वजह हैं.

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1951 की जनगणना में भारत की आबादी 36.1 करोड़ थी जो 2011 में 1.2 अरब हो गई थी. प्यू का अध्ययन कहता है कि इस दौरान सभी धर्मों की आबादी में वृद्धि हुई है. हिंदुओं की जनसंख्या 30.4 करोड़ से बढ़कर 96.6 करोड़ हो गई है. इस्लाम को मानने वाले 3.5 करोड़ से बढ़कर 17.2 करोड़ पर पहुंच गए जबकि ईसाइयों की आबादी 80 लाख से 2.8 करोड़ हो गई.

जन्मदर का अंतर घटा

अध्ययन के मुताबिक अब भी भारत में सबसे ज्यादा जन्मदर मुसलमानों की है. 2015 के आंकड़ों के मुताबिक भारत में मुस्लिम जन्मदर प्रति महिला 2.6 थी. इसके बाद हिंदुओं का नंबर आता है जो प्रति महिला 2.1 बच्चों को जन्म दे रही थी. जैन धर्म की जन्मदर सबसे कम 1.2 रही.

लेकिन अध्ययन इस बात को उजागर करता है कि यह चलन ज्यादा बदला नहीं है. शोध के मुताबिक 1992 में भी मुसलमानों की जन्मदर सबसे ज्यादा (4.4) थी जो हिंदुओं से (3.3) ज्यादा थी. स्टडी कहती है, "लेकिन, विभिन्न धर्मों के बीच जन्मदर में अंतर पहले से बहुत कम हो गया है.”

ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि अल्पसंख्यकों की जन्मदर बढ़ने में सबसे ज्यादा कमी आई है. शुरुआती दशकों में मुस्लिम जन्मदर बहुत तेजी से बढ़ रही थी जबकि अब यह काफी कम हो चुकी है. प्यू रिसर्च सेंटर की वरिष्ठ शोधकर्ता स्टेफनी क्रैमर लिखती हैं कि एक ही पीढ़ी में 25 वर्ष से कम आयु की मुस्लिम औरतों के बच्चे जनने की दर में लगभग दो बच्चों की कमी हो गई है.

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क्रैमर के मुताबिक 1990 के दशक में प्रति भारतीय महिला 3.4 बच्चे जन्म ले रहे थे जो 2015 में घटकर 2.2 पर आ गए. इसमें सबसे बड़ा योगदान मुस्लिम महिलाओं का है. 1990 के दशक में हर मुस्लिम महिला औसतन 4.4 बच्चों को जन्म दे रही थी जो 2015 में घटकर 2.6 पर आ गया. यानी 1992 में मुस्लिम महिलाएं हिंदुओं की अपेक्षा 1.1 बच्चे ज्यादा जन रही थीं और 2015 में यह अंतर घटकर 0.5 बच्चों पर आ गया.

मुसलमानों की आबादी सबसे ज्यादा बढ़ी

बीते 60 साल में मुसलमानों की आबादी 4 प्रतिशत बढ़ी है जबकि हिंदुओं की आबादी लगभग इतनी ही कम हुई है. बाकी धर्मों की आबादी लगभग स्थिर रही है.

2011 की जनगणना के हिसाब से भारत में 96.6 करोड़ हिंदू थे जो कुल आबादी का 79.8 प्रतिशत है. 2001 की जनगणना की तुलना में यह संख्या 0.7 फीसदी कम थी और 1951 की जनगणना से तुलना करें तो हिंदुओं की आबादी 4.3 प्रतिशत कम हुई थी, जो तब 84.1 प्रतिशत हुआ करते थे.

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इसकी तुलना में मुसलमानों की आबादी बढ़ी है. 2001 में भारत में 13.4 प्रतिशत मुसलमान थे जो 2011 में बढ़कर 14.2 प्रतिशत हो गए. 1951 की तुलना में मुसलमानों की आबादी 4.4 प्रतिशत बढ़ी थी. ईसाई, सिख, बौद्ध और जैन धर्म के मानने वालों की संख्या में ज्यादा बदलाव नहीं हुआ.

जनसंख्या में यह बदलाव पूरे देश में समान नहीं हुआ है. कुछ राज्यों में आबादी की संरचना में बदलाव बाकी राज्यों के मुकाबले ज्यादा देखा गया है. मसलन, अरुणाचल प्रदेश में हिंदुओं की आबादी 2001 से 2011 के बीच 6 प्रतिशत घट गई थी लेकिन पंजाब में 2 प्रतिशत बढ़ी.