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जिनकी आवाज चली गई, अब वे भी बोलेंगे

२५ अप्रैल २०१९

कई बीमारियों की वजह से कई लोग अपनी आवाज खो देते हैं. लेकिन अब उनके लिए एक खुशखबरी आई है. वैज्ञानिकों को एक मशीन बनाने में सफलता मिली है. कैसे काम करती है ये मशीन, जानते हैं.

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Taiwan Notizbücher als Ersatz für das Kurzzeitgedächtnis
तस्वीर: Reuters/T. Siu

जिन लोगों की आवाज स्ट्रोक या किसी दूसरे मेडिकल कारणों से चली गई है उनके लिए यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया में एक उपयोगी रिसर्च हो रही है. वहां वैज्ञानिकों ने एक ऐसी मशीन बनाई है जो दिमाग में होने वाली हलचल से कृत्रिम आवाज पैदा करेगी. वैज्ञानिकों ने कुछ वॉलंटियरों के दिमाग में इलेक्ट्रो़ड लगाए और फिर दिमाग में आने वाले सिग्नलों को एक कंप्यूटर से डिकोड किया. इस कंप्यूटर के साथ एक सिम्यूलेटर लगा है जिसमें मनुष्य जैसे होंठ, जबड़ा, जीभ और काल्पनिक स्वरयंत्र लगे हैं. यह सिम्यूलेटर कंप्यूटर से आने वाले सिग्नलों को आवाज में बदलता है. इस सिम्यूलेटर से आईं अधिकतर आवाजें स्पष्ट थीं. कुछ सिग्नलों को यह सिम्यूलेटर आवाज में नहीं बदल पाया. इसके जरिए आने वाले समय के लिए चिकित्सा विज्ञान ने बड़ी उम्मीदें जगा दी हैं. थोड़े सुधारों के बाद ये आवाज खो चुके मरीजों के लिए क्रांतिकारी साबित होगा.

इस मशीन को बनाने में काम कर रहे जोश कार्टियर ने कहा, "जब इस मशीन ने पहली बार बोलना शुरू किया तो हम अचंभित रह गए. इसकी बोली इंसानों से मिलती जुलती है. हालांकि इस पर अभी बहुत काम करने की जरूरत है लेकिन जिस तरह इसने मस्तिष्क से मिले सिग्नलों को डिकोड किया उससे हम बहुत उत्साहित हैं."

Stephen Hawking Suche nach außerirdischem Leben
वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिन्स भी बीमारी के चलते बोल नहीं पाते थे.तस्वीर: picture-alliance/EPA/A. Rain

स्ट्रोक के अलावा सेरेब्रल पाल्सी, एमियोट्रोफिक लेटरल स्क्लेरोसिस (ALS), पार्किसंस डिजीज, मल्टीपल स्केलेरोसिस जैसी बीमारियों के अलावा दिमाग में लगी चोट और गंभीर कैंसर से बोलने की क्षमता खत्म हो सकती है. कुछ लोग चेहरे और आंखों की गतिविधियों से काम करने वाले उपकरणों का इस्तेमाल करते हैं. ये उपकरण इन गतिविधियों के हिसाब से एक-एक अक्षर बोलते हैं जिन्हें जोड़कर शब्द बनाए जाते हैं. लेकिन ये बोलने में बहुत समय लेते हैं. ऐसे उपकरणों से एक मिनट में महज दस शब्द ही लिखे जा सकते हैं जबकि आम तौर पर एक मिनट में 100-150 शब्द तक बोले जाते हैं.

इस प्रयोग के लिए पांच लोगों को चुना गया जिन्हें मिर्गी की बीमारी है. ये सब बोलने में सक्षम हैं. इन लोगों की न्यूरोसर्जरी होने वाली है. इस सर्जरी में मिर्गी शुरू होने का स्रोत पता लगाने के लिए पहले इनके दिमाग में इलेक्ट्रो़ड लगाए जाने थे. अब इस मशीन का प्रयोग बोल ना सकने वाले लोगों के साथ किया जाएगा.

इन वॉलंटियरों को जोर-जोर से पढ़ने के लिए कहा गया जिससे बोलते समय होने वाली हरकत को कंप्यूटर में ट्रैक किया जा सके. वैज्ञानिकों ने कंठयंत्र में होने वाली हरकत को सिम्यूलेटर के काल्पनिक कंठयंत्र में उत्पन्न किया गया. इससे दिमाग और कंठयंत्र की गतिविधियों से कृत्रिम आवाज पैदा की गई. इस शोध में काम कर रहे न्यूरोसर्जन एडवार्ड चांग ने कहा, "हममें से बस कुछ लोगों को ही अंदाजा है कि जब हम बोलते हैं तो हमारे मुंह में क्या होता है. दिमाग हमारे सोचने में आने वाली बातों को कंठयंत्र की गतिविधियों में बदलता है और हम बोल पाते हैं. हम इस प्रक्रिया को ही डिकोड करने की कोशिश कर रहे हैं."

वैज्ञानिक धीमी गति की आवाजों जैसे 'श' को पहचानने में ज्यादा सफल रहे. तेजी से आने वाली आवाजों जैसे 'ब' और 'प' को पहचानने में थोड़ी परेशानियां हैं. इससे पहले वैज्ञानिकों ने कृत्रिम कंठयत्र के बिना सीधे ही दिमाग से आने वाले सिग्नलों को आवाज में बदलने की कोशिश की. लेकिन यह प्रयोग सफल नहीं हुआ.

जोश कार्टियर कहते हैं, "हम इन आवाजों को और स्पष्ट बनाने की कोशिश कर रहे हैं. ये हमारे द्वारा बनाए गए एलगोरिदम का ही परिणाम है. हम इसे और बेहतर बनाने की कोशिश कर रहे हैं. हम उम्मीद करते हैं कि हमारे इस प्रयोग के बाद उन लोगों को भी हम बोलने में सक्षम बना सकेंगे जिनकी आवाज किसी कारण से चली गई है. फिलहाल ये इस दिशा में पहला सकारात्मक कदम है."

आरएस/एके (रॉयटर्स)