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सेप्सिस- कोरोना वायरस से मरने वालों की असली वजह

१८ मार्च २०२०

कोरोना वायरस के शिकार हुए कई लोगों की जान सेप्सिस होने के चलते जा रही है. यह ऐसी स्थिति होती है जिसमें शरीर का प्रतिरोधी तंत्र अत्यधिक सक्रिय हो जाता है. लेकिन सेप्सिस होता कैसे है और इसके लक्षण व इलाज क्या हैं?

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Rumänien Timisoara | Corona-Patient wird ins Krankenhaus transportiert
तस्वीर: Reuters/Inquam Photos/V. Simonescu

अगर किसी संक्रमण के चलते व्यक्ति का प्रतिरोधी तंत्र इतना ज्यादा सक्रिय हो जाए कि उसके कारण अंग ठीक से काम करना बंद कर दें तो ऐसी जानलेवा स्थिति को सेप्सिस कहते हैं. ऐसी खतरनाक प्रतिक्रिया के कारण शरीर के भीतर ऊतक नष्ट हो सकते हैं या फिर कई अंगों के काम करना बंद करने के कारण मौत भी हो सकती है.  

हाल ही में लांसेट पत्रिका में छपी स्टडी से पता चलता है कि हर साल दुनिया भर में होने वाली मौतों में से एक चौथाई का कारण सेप्सिस ही होता है. 2015 का उदाहरण देखें तो केवल जर्मनी में ही अस्पतालों में मरने वाले करीब 15 फीसदी लोगों की मौत का कारण सेप्सिस दर्ज किया गया- जो कि तमाम तरह के खतरनाक कैंसर के कारण होने वाली मौतों से भी ज्यादा है.

इतनी बड़ी जानलेवा स्थिति होने के बावजूद इसके बारे में जानकारी और जागरुकता का बहुत अभाव दिखता है. जर्मन सेप्सिस फाउंडेशन की सलाह है कि लोगों को इन्फ्लूएंजा वायरस और न्यूमोकॉक्कस के खिलाफ टीका लगवाना चाहिए. कमजोर प्रतिरोधी तंत्र वाले नवजात बच्चों और डायबिटीज, कैंसर, एड्स और दूसरी गंभीर बीमारियों से ग्रस्त बुजुर्गों को तो इसका खास खतरा होता है.

क्या हैं सेप्सिस के लक्षण

वायरस, बैक्टीरिया, फंगस या परजीवी- इन तमाम तरह के रोगाणुओं के कारण सेप्सिस की शुरुआत हो सकती है. न्यूमोनिया, किसी घाव में संक्रमण, मूत्रनली के संक्रमण या पेट के संक्रमण अक्सर सेप्सिस का कारण बनते हैं. कई आम मौसमी इन्फ्लूएंजा वायरसों के अलावा दूसरे तेजी से फैलने वाले वायरसों के कारण भी ऐसा होता है - जैसे कि इबोला, पीत ज्वर, डेंगू, स्वाइन फ्लू, बर्ड फ्लू या फिर आजकल फैला हुआ कोरोना वायरस.

Infografik SARS-CoV-2 Vorerkrankung DE

संक्रमण के आम लक्षणों के अलावा जो खास लक्षण सेप्सिस की ओर इशारा करते हैं वे हैं ब्लड प्रेशर में अचानक गिरावट आना और उसी के साथ दिल की धड़कन तेजी से ऊपर जाना. साथ में बुखार, भारी और तेज तेज सांसें चलना और बहुत बीमार महसूस करना सेप्सिस के लक्षण होते हैं. इसके बाद अगला और गंभीर चरण होता है सेप्टिक शॉक, जिसमें ब्लड प्रेशर खतरनाक स्तर तक गिर जाता है. ऐसे में इमरजेंसी सेवा की मदद लेनी चाहिए.

क्या सेप्सिस का कोई इलाज है

अस्पतालों में सेप्सिस के खूब मामले सामने आते हैं लेकिन अक्सर इनका पता काफी देर से चलता है. पता चलते ही इसका फौरन इलाज किया जाता है. खून की जांच होती है, एंटीबायोटिक दवा दी जाती है और रक्त का प्रवाह और वेंटिलेशन बनाए रखने पर भी ध्यान दिया जाता है. कई बार तो सावधानी के तौर पर सेप्सिस के मरीजों को आर्टिफिशियल कोमा में डाल दिया जाता है. इस दौरान तमाम उपकरणों के माध्यम से मरीज के अंगों को बचा कर रखने की व्यवस्था की जाती है.

ऐसी गहन चिकित्सा ना केवल बेहद जटिल बल्कि बहुत ज्यादा महंगी भी होती है. केवल अमेरिकी अस्पतालों में ही हर साल इस पर 24 अरब डॉलर खर्च होते हैं. लेकिन सच तो यह है कि अस्पतालों में सीमित बेड होने के कारण केवल गिने चुने मरीजों को ही आईसीयू की सुविधा दी जा सकती है. ऐसे में कोरोना वायरस जैसे संक्रमणों के कारण जिन मरीजों को सांस की गंभीर समस्या और सेप्सिस की संभावना बनती दिखे, उन्हें ही पहले आईसीयू में रखा जाता है. यही कारण है कि मौजूदा सिस्टम में कोरोना के हर मरीज को आईसीयू की सुविधा नहीं दी जा सकती और इसीलिए संक्रमण को रोकना ही ज्यादा से ज्यादा जानें बचाने का सबसे कारगर उपाय है.

लंबे समय तक रहता है असर

राहत की बात यह है कि करीब आधे मरीजों में सेप्सिस के बाद आगे चलकर कोई गंभीर असर नहीं दिखता. वहीं दूसरे आधे मामलों में अस्पताल से छुट्टी मिलने के तीन महीने बाद जाकर मरीज को भयंकर संक्रमण, किडनी फेल या फिर कोई कार्डियोवैस्कुलर बीमारी हो जाती है.

इसके अलावा सेप्सिस के कई मरीजों में आगे चलकर लकवा, अवसाद या घबराहट की परेशानी सामने आ सकती है. इसलिए सबसे जरूरी बात है कि किसी तरह से मरीज में सेप्सिस होने से बचाया जाए या फिर जल्दी से जल्दी उसका पता लगाया जाए ताकि कोई थेरेपी उनकी जान बचाने की संभावना को बढ़ा सके.

 

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