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श्रीलंका में मानवाधिकार हनन के आरोपी को बनाया सेना प्रमुख

२० अगस्त २०१९

तमिल विद्रोहियों के साथ हुई जंग में श्रीलंका के नए सेना प्रमुख पर मानवाधिकारों के उल्लंघन का आरोप है. 2009 में खत्म हुए इस गृहयुद्ध के आखिर में करीब 45,000 तमिल नागरिक मारे गए थे. यूएन ने भी इस नियुक्ति पर चिंता जताई है.

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Sri Lanka Terrorismus l Präsident Maithripala Sirisena mit u.a. Polizeichef Pujith Jayasundara
तस्वीर: picture alliance/AP Photo/E. Jayawardena

19 अगस्त को श्रीलंका के राष्ट्रपति ने मानवाधिकार हनन के आरोपी एक जनरल को श्रीलंकाई सेना का प्रमुख बनाने का एलान किया है. नई नियुक्ति पाने वाले जनरल पर आरोप है कि एलटीटीई के खिलाफ किए गए ऑपरेशन के आखिरी चरण में उन्होंने मानवाधिकारों का उल्लंघन किया. इस मामले पर संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार परिषद अधिकारी ने कहा है कि ऐसा करने से यूएन के शांति मिशन श्रीलंका के योगदान पर असर पड़ेगा.

शवेंद्र सिल्वा उस समय मेजर जनरल थे और सेना की 58वीं ईकाई के प्रमुख हुआ करते थे. 2009 के गृहयुद्ध के दौरान एलटीटीई पर हुई आखिरी कार्रवाइयों में सेना की यह ईकाई शामिल थी. मानवाधिकार समूहों ने आरोप लगाया था कि इस सैन्य ईकाई ने अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार नियमों का उल्लंघन किया था. इस ईकाई पर एक अस्पताल के ऊपर हमला करने का भी आरोप है. इसके बावजूद सिल्वा को पदोन्नति देकर पहले लेफ्टिनेंट जनरल बनाया गया था.

सिल्वा की नियुक्ति ऐसे वक्त में हुई है जब राष्ट्रपति मैत्रिपाला सिरिसेना और उनकी सरकार ईस्टर पर हुए आतंकी हमलों को रोक पाने में नाकामी के चलते आलोचनाओं का शिकार हो रही है. इन हमलों में आईएस की विचारधारा से प्रभावित दो स्थानीय कट्टरपंथी संगठन शामिल थे. चर्चों को निशाना बनाकर किए गए इन हमलों में 260 लोग मारे गए थे. सिल्वा श्रीलंका में बहुसंख्यक सिंघलियों के बीच काफी लोकप्रिय हैं. वो अपने ऊपर लगे आरोपों से हमेशा इंकार करते रहे हैं.

मई 2009 में श्रीलंकाई सरकार ने तमिल विद्रोहियों पर जीत का एलान किया था. श्रीलंका के अल्पसंख्यक तमिलों की अपने लिए तमिल ईलम नाम के एक अलग देश की मांग थी. श्रीलंकाई सेना और तमिल विद्रोहियों के बीच चली ये लड़ाई 26 साल तक चलती रही. दोनों हील पर मानवाधिकारों के उल्लंघन का आरोप लगता रहा.

Symbolbild Logo UN Human Rights Ägypten

यूएन के आंकड़ों के मुताबिक इस गृहयुद्ध के आखिरी दौर में करीब 45,000 तमिल नागरिक मारे गए. यूएन मानवाधिकार परिषद उच्चायुक्त द्वारा 2015 में की गई जांच के मुताबिक इस गृहयुद्ध के आखिर में सिल्वा को पुतुमत्तलन इलाके पर कब्जा करने का लक्ष्य मिला था. मानवाधिकार परिषद के मुताबिक उन्हें इस बात के सबूत मिले हैं कि अपने इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए सिल्वा की ईकाई ने एक अस्पताल और यूएन के एक दफ्तर के ऊपर भी हमला किया.

जांच रिपोर्ट के मुताबिक चश्मदीदों  का कहना है कि श्रीलंकाई सेना ने पुतुमत्तलन अस्पताल और यूएन हब के ऊपर हमला करने के लिए क्लस्टर बमों का भी इस्तेमाल किया. तब श्रीलंकाई सरकार ने यूएन मानवाधिकार परिषद से वादा किया था कि वो इन आरोपों की निष्पक्ष जांच करवाएगी. इस जांच में विदेशी जांचकर्ता भी शामिल होगें. हालांकि ऐसा अब तक नहीं हो सका है.

यूएन मानवाधिकार परिषद के उच्चायुक्त मिशेल बैचलेट का कहना है, "सिल्वा के सेना का प्रमुख बनाए जाने से मैं बहुत चिंतित हूं. सिल्वा को मानवाधिकारों के हनन के गंभीर मामलों के बावजूद उन्हें सेना का प्रमुख बनाया जाना उचित नहीं है. यह उस गृहयुद्ध की त्रासदी का परिणाम झेल रहे पीड़ितों की भावनाओं से खिलवाड़ है. इससे यूएन शांति मिशन में श्रीलंका के योगदान पर भी असर पड़ेगा."

यूएन का कहना है कि उनके शांति मिशन में काम कर रहे सैनिक मानवाधिकारों को अपनी प्राथमिकता में रखते हैं. यूएन शांति मिशन में काम कर रहे सभी श्रीलंकाई सैनिक भी इसमें शामिल हैं. गौरतलब है कि पिछले महीने ही दक्षिण सूडान में यूएन शांति मिशन पर मेडिकल कॉर्प्स के 61 सैनिकों को भेजा गया है. इनमें से अधिकतर श्रीलंकाई सेना के ही हैं.

श्रीलंका में मौजूद अमेरिकी दूतावास ने भी इस नियुक्ति पर चिंता जताई है. एक बयान जारी कर अमेरिकी दूतावास ने कहा," सिल्वा पर लगे मानवाधिकार हनन के आरोप गंभीर हैं. ऐसे में सेना प्रमुख के पद पर उनकी नियुक्ति श्रीलंका की अंतरराष्ट्रीय छवि को भी धूमिल करने वाला है." श्रीलंका के अंदर मौजूद मानवाधिकार संगठनों ने सिल्वा की नियुक्ति का विरोध किया है. हालांकि सरकार ने अभी इस पर कोई और प्रतिक्रिया नहीं दी है.

आरएस/एनआर(एपी)

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