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बेहतर पाचन के लिए शरीर में अच्छे बैक्टीरिया डालने का उपाय

गुडरुन हाइजे
२५ सितम्बर २०२०

शौच की आदतें और क्वालिटी किसी की सेहत के बारे में बहुत कुछ बताती हैं. बाकी उपाय काम ना आएं तो एक्सपर्ट स्टूल ट्रांसप्लांट की सलाह देते हैं.

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Symbolbild Grafik Darm Verdauungssystem
तस्वीर: Imago Images/Science Photo Library

डॉक्टरों की भाषा में शरीर से निकलने वाले ठोस उत्सर्जन पदार्थ को स्टूल कहते हैं. जर्मनी में फ्रैंकफर्ट के यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल में संक्रामक रोगों की विशेषज्ञ मारिया वेरेशिल्ड का अनुभव रहा है कि ज्यादातर लोग अपने स्टूल के बारे में बात नहीं करना चाहते. ऐसे में किसी और के स्टूल को उनके शरीर में ट्रांसप्लांट किए जाने के विचार भर से कई लोगों को घिन पैदा होती है. लेकिन सेहत के लिए कुछ भी करने को मजबूर लोगों के लिए यह मायने नहीं रखता.

स्टूल ट्रांसप्लांट को मेडिकल शब्दावलि में फीकल माइक्रोबायोटा ट्रांसप्लांट (एफएमटी) कहा जाता है और डॉक्टर मारिया वेरेशिल्ड इसकी विशेषज्ञ मानी जाती हैं. जिन लोगों को बार बार पेट के इंफेक्शन होते रहते हैं उनके पाचन तंत्र में किसी अन्य स्वस्थ व्यक्ति के शरीर से लिया स्टूल प्लांट किया जाता है. इसकी मदद से मरीज के शरीर में अच्छे बैक्टीरिया की तादाद बढ़ाने और संतुलन लाने की कोशिश की जाती है.

हर किसी के शरीर में पाए जाने वाले माइक्रोबायोम यानि बैक्टीरिया और अन्य सूक्ष्मजीवों का कुल जेनेटिक पदार्थ उतना ही अलग होता है, जैसा दुनिया के हर इंसान के अंगुलियों का निशान.

Bakterien der menschlichen Darmflora
इंसान के मल का करीब 50 फीसदी हिस्सा बैक्टीरिया ही होता है.तस्वीर: Imago/Science Photo Library

इंसान की आंत में अरबों की संख्या में रहने वाले बैक्टीरिया और अन्य सूक्ष्मजीवों के शरीर की सभी गतिविधियों पर असर के बारे में डॉक्टर वेरेशिल्ड बताती हैं कि "ऐसा कोई अंग नहीं जो माइक्रोबायोम के असर से जुड़ा हुआ ना हो." यही कारण है कि हाल के सालों में रिसर्चर केवल पेट ही नहीं दिमाग तक की बीमारियों के लिए माइक्रोबायोम के बीच संबंध पर ध्यान देने लगे हैं.

स्टूल ट्रांसप्लांट से पहले कई तरह के टेस्ट और इंटरव्यू किए जाते हैं. इसे ट्रांसफर करने के लिए कई तरीके आजमाए जाते हैं.  सबसे पहले डोनर को लैब में आकर सैंपल देना होता है फिर इसे फिल्टर करने के बाद सेंट्रीफ्यूज मशीन में डालकर घुमा दिया जाता है. इसी प्रक्रिया में बैक्टीरिया स्टूल से अलग होते हैं और फिर उन्हें कैप्सूलों में भर दिया जाता है जिसे मरीज निगल लेता है.  

इसके अलावा इसे मरीज की कोलन में कोलोनोस्कोपी कर सीधे भी ट्रांसफर किया जा सकता है. या फिर अनीमा नामक प्रक्रिया से बड़ी आंत में इन्हें छोड़ा जा सकता है. इसके बाद बैक्टीरिया के मरीज की आंत में बसने और फलने फूलने की उम्मीद की जाती है.

कई मरीजों में देखा गया है कि एंटीबायोटिक दवाओं के अत्यधिक इस्तेमाल के कारण पेट के संक्रमण बार बार होने लगते हैं. अभी जर्मनी में क्लॉसट्रीडियम डिफिसिल नाम के खास बैक्टीरिया के इंफेक्शन के मामले में ही स्टूल ट्रांसप्लांट किए जाने की अनुमति है. डॉक्टर मारिया वेरेशिल्ड का अनुभव दिखाता है कि करीब 75 फीसदी मरीजों में एक बार थेरेपी करने से ही सुधार आता है. लेकिन चूंकि इलाज का यह तरीका नया है इसलिए इसके जोखिमों या साइड इफेक्ट के बारे में पर्याप्त जानकारी नहीं है.

अगर भविष्य में आंत की और बीमारियों को ठीक करने में यह कारगर रहता है तो क्रोन्स जैसी लाइलाज बीमारी से निपटने का रास्ता खुलेगा. जर्मनी में ही अभी तक आधिकारिक रूप से इलाज के इस तरीके को मान्यता नहीं मिली है. इसे आजमाने से पहले  तमाम शर्तें पूरी करनी होती हैं जिनमें से एक यह है कि डॉक्टर बाकी हर तरीका आजमा चुका है और यह आखिरी विकल्प है.

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