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सर्जिकल स्ट्राइक के सबूत मांगना देशद्रोह कैसे हुआ?

६ अक्टूबर २०१६

सर्जिकल स्ट्राइक पर सवाल उठाने वालों को भारत में देशद्रोही कहा जा रहा है. क्यों? क्या सरकार पर सवाल उठाना देशद्रोह है?

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तस्वीर: Sajjad Qayyum/AFP/Getty Images

मई 2014 में जब से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार सत्ता में आई है, उनके प्रशंसकों और भक्तों ने राजनीति शास्त्र में एक नया सिद्धांत जोड़ डाला है. इस सिद्धांत के अनुसार लोकतांत्रिक ढंग से चुनी हुई सरकार की आलोचना करना उस जनादेश का अपमान करना है जो देश की जनता से उसे मिला है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उससे जुड़े या प्रेरित संगठनों के कार्यकर्ताओं ने पिछले लगभग ढाई सालों से इस सिद्धांत पर अमल करते-करते अब देश भर में ऐसा माहौल बना दिया है कि सरकार की आलोचना करना देशद्रोह माना जाने लगा है, आलोचकों से उनके देशप्रेम का सुबूत मांगा जाता है और उन्हें यह भी निर्देश दिया जाता है कि वे यह सुबूत ‘भारत माता की जय' का नारा लगा कर दें. जैसा कि संघ की शाखाओं में दिए जाने वाले हथियारों के प्रशिक्षण से स्पष्ट है, उसका राष्ट्रवाद ठोस सैन्यवाद और राष्ट्रप्रेम की भावनाओं को भड़काने पर आधारित है.

उसे इस तथ्य पर भी लीपापोती करने की पड़ी रहती है कि उसने अंग्रेजों के खिलाफ आजादी की लड़ाई से अपने को अलग रखा और अपने राष्ट्रवाद की नींव गैर-हिंदुओं, विशेषकर मुसलमानों, के विरोध पर रखी. मुसलमानों के विरोध का ही एक पहलू यह भी है कि उसका राष्ट्रवाद घोर पाकिस्तानविरोध पर आधारित है. यहां संघ और उसकी विचारधारा का उल्लेख इसलिए किया जा रहा है क्योंकि नरेंद्र मोदी खुद संघ के प्रचारक रहे हैं और उनकी सरकार बिना किसी संकोच के संघ प्रमुख मोहन भागवत के सामने पेश होकर अपना रिपोर्ट कार्ड पेश करती है. पिछले वर्षों में संघ के महत्वपूर्ण पदों पर रहे व्यक्ति आज मुख्यमंत्री और राज्यपाल के पदों पर बैठे हैं.

ये हैं खतरनाक विवाद

मोदीभक्त यह भूल जाते हैं कि किसी भी शास्त्र के सिद्धांत सभी पर लागू होते हैं, किसी एक पर नहीं. ‘चुनी हुई सरकार की आलोचना करना जनादेश का अपमान करना है' का सिद्धांत केवल मोदी सरकार पर ही लागू नहीं किया जा सकता. वह उसकी पूर्ववर्ती मनमोहन सिंह सरकार पर भी लागू होता है जिसे स्वयं मोदी और उनकी पार्टी के लालकृष्ण आडवाणी, अरुण जेटली और सुषमा स्वराज जैसे वरिष्ठ नेता रोज पानी पी-पी कर कोसते थे. मोदी ने जिस तरह से और जितनी खिल्ली तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की उड़ाई है, उतनी स्वतंत्र भारत के इतिहास में कभी किसी विपक्षी नेता ने नहीं उड़ाई. यदि तब वह ठीक था, तो अब कैसे गलत हो गया?

लेकिन जिस तरह सरकार की आलोचना को देशद्रोह बताया जा रहा है, उसी तरह सेना की आलोचना को देश पर प्राण न्यौछावर करने वाले बहादुर जवानों की शहादत का अपमान और देशद्रोह कह कर सरकार द्वारा घोषित ‘सर्जिकल स्ट्राइक' पर सवाल उठाने वालों की लानत-मलामत की जा रही है. आज की दुनिया में जब पृथ्वी के चप्पे-चप्पे पर उपग्रहों के जरिए नजर रखी जा रही है, इस तरह की सर्जिकल स्ट्राइक जिसमें पाकिस्तान-समर्थित आतंकवादियों के सात शिविर नष्ट हो जाएं, गुप्त नहीं रह सकती. लेकिन इनकी घोषणा करके सरकार द्वारा इस बात की शेख़ी बघारी गई कि पहली बार किसी प्रधानमंत्री ने ऐसी हिम्मत दिखाई है.

जिस सेना ने तीन-तीन बार पाकिस्तान को युद्ध में हराया हो, उसके बारे में रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर ने यह बयान दे डाला कि हनुमान की तरह उसे तो अपनी शक्ति का आभास ही नहीं था, यह तो मोदी सरकार है जिसने उसे उसकी शक्ति का एहसास दिलाया. यानी भारतीय सेना इतनी गफलत में है कि उसके पास अपनी शक्ति और सीमाओं का यथार्थपरक आकलन ही नहीं हैं. यह कहकर पर्रिकर सेना का अपमान कर रहे थे, या सम्मान, इसके बारे में लोग स्वयं अंदाजा लगाने में सक्षम हैं.

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भारत सरकार के सामने ‘सर्जिकल स्ट्राइक' घोषित करने की कोई मजबूरी नहीं थी. लेकिन देशप्रेम पर एकाधिकार जताने की इच्छा और सेना की उपलब्धियों का चुनावी लाभ उठाने की ललक के कारण यह घोषणा कर दी गई. पाकिस्तान ही नहीं, संयुक्त राष्ट्र और अन्य देशों ने भी भारत के दावे को स्वीकार नहीं किया है. इसलिए इनके बारे में सवाल उठने लगे हैं और उन्हें उठाने वालों को तत्काल देशद्रोही घोषित किया जाने लगा है. उधर उत्तर प्रदेश में, जहां पांच माह बाद विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं, सेना के बयानों, सैनिकों और प्रधानमंत्री के चित्रों वाले बड़े-बड़े पोस्टर लगाए जा रहे हैं और आगरा में रक्षामंत्री के भव्य अभिनंदन की तैयारी की जा रही हैं.

सवाल उठता है कि यदि अभिनंदन करना ही है तो सेनाध्यक्ष और सैनिकों का करें, रक्षामंत्री का अभिनंदन क्यों किया जा रहा है? इसका केवल एक ही जवाब है कि अन्य सभी मोर्चों पर विफल भारतीय जनता पार्टी सेना की इस बहुप्रचारित उपलब्धि को उत्तर प्रदेश और पंजाब के चुनावों में भुनाना चाहती है. इसलिए उसे इसके ऊपर कोई भी सवाल उठाया जाना बर्दाश्त नहीं. मीडिया, खासकर टीवी चैनल, इस काम में उसकी पूरी तरह से मदद कर रहे हैं. उनके एंकरों ने श्याम बेनेगल और ओम पुरी जैसी दिग्गज फिल्मी हस्तियों के देशप्रेम पर भी उंगली उठाने से गुरेज नहीं किया है. पूरे भारत में देशप्रेम के नाम पर उन्माद पैदा करने की कोशिश जारी है.

ब्लॉग: कुलदीप कुमार