1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें
शिक्षा

...ताकि स्कूल बच्चों की कब्रगाह न बन जाएं

क्रिस्टीने लेनन
३० दिसम्बर २०१६

स्कूलों में बच्चों के साथ लगातार हो रहे हादसों से पालकों के साथ साथ बाल अधिकार कार्यकर्ता भी चिंतित हैं. अधिकतर मामलों में हादसों के लिए स्कूल प्रबंधन की लापरवाही को जिम्मेदार ठहराया जाता है.

https://p.dw.com/p/2V19M
Indische Kinder beim Essen
तस्वीर: Getty Images/AFP/N. Nanu

बच्चों को शिक्षा के साथ साथ शिक्षा की मूलभूत सुविधाओं और सुरक्षा की भी जरूरत होती है. लेकिन देश के ज्यादातर स्कूल और सरकारों ने इस पर कुछ खास ध्यान नहीं दिया है. पिछले कुछ सालों में सुरक्षा इंतजामों में कमी के चलते कई छात्रों को जान तक गंवानी पड़ी है. हादसों के बढ़ते मामलों का संज्ञान लेते हुए राष्ट्रीय बाल अधिकार आयोग ने स्कूलों से जरूरी सुरक्षा इंतजाम करने को कहा है. वहीं, इसको लेकर एक व्यापक अध्ययन भी किया जा रहा है.

सुरक्षा प्रबंधों में कमी

देश के ज्यादातर स्कूलों में छात्रों की सुरक्षा का इंतजाम संतोषजनक नहीं हैं. हालांकि सरकार ने स्कूलों में बच्चों की सुरक्षा के लिए नियम और कानून बनाए हुए हैं. नियमानुसार, भगदड़ से बचने के लिए हर स्कूल में एक सुरक्षित स्थान का होना, खेल के मैदान में चिकित्सक और चोट लगने पर इलाज की व्यवस्था, अनिवार्य है. इसी तरह बिजली से सुरक्षा की व्यवस्था भी होनी ही चाहिए. चाहे प्राइवेट हों या सरकारी, दोनों ही स्कूलों में सुरक्षा के तय मानकों के प्रति उदासीनता देखी जाती है. दिल्ली के लगभग आधे सरकारी स्कूल बिना किसी अग्निशमन एनओसी के ही चल रहे हैं.

पिछले दिनों दिल्ली, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, झारखण्ड और कर्नाटक से स्कूली बच्चों के साथ हादसे की खबरें आती रहीं हैं. मानसिक और शारीरिक शोषण की खबरों ने भी लोगों को झकझोरा है. कई स्कूलों में छात्राओं, और कुछ जगहों पर छात्रों का यौन शोषण शिक्षकों द्वारा किए जाने की घटनाएं हुई हैं. महिला और बाल विकास मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार हर 3 में से 2 बच्चे यौन उत्पीड़न का शिकार हो जाते हैं. लेकिन 70 प्रतिशत मामले सामने ही नहीं आ पाते.

कितने सुरक्षित हैं बच्चे?

इस सम्बन्ध में कोई ताजा आधिकारिक आकड़ा नहीं है. परिस्थिति की गंभीरता को देखते राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग यानी एनसीपीसीआर, देश के संरक्षित और सुरक्षित स्कूलों पर एक सर्वेक्षण करा रहा है, जिसमें आंकड़े सीधे छात्रों से एकत्र किए जा रहे हैं. सर्वे के जरिये  बच्चों से ही जाना जाएगा कि वे स्कूल में सुरक्षित महसूस करते हैं या नहीं. महिला और बाल विकास मंत्रालय के तहत आने वाला एनसीपीसीआर विभिन्न राज्यों के बाल आयोग के जरिए यह सर्वे करवा रहा है, जिसके बाद राष्ट्रीय रिपोर्ट तैयार कर मंत्रालय को सौंपी जाएगी. एनसीपीसीआर के प्रियांक कानूनगो के अनुसार इस अध्ययन से कुछ चिंताओं का निदान ढूंढ़ने में सहायता मिलेगी.

व्यापक सर्वेक्षण

इस अखिल भारतीय सर्वे के लिए 6 मानक तय किए गए हैं, जिसके आधार पर प्रश्नावली तैयार की गई है. इसे इस तरह किया जाना है, जिससे 5 प्रतिशत सरकारी और 5 प्रतिशत प्राइवेट स्कूलों को शामिल किया जा सके. देश भर के करीब 80 हजार स्कूलों के करीब 8 लाख स्टूडेंट्स इस सर्वे का हिस्सा बनेंगे.

इसमें भावनात्मक सुरक्षा, यौन सुरक्षा के साथ साथ ही आधारभूत सुरक्षा, स्वास्थ और आपदा प्रबंध से जुड़े सवाल छात्रों से पूछे जाएंगे. छात्रों से जाना जाएगा कि स्कूल में वह भावनात्मक रूप से कितना सुरक्षित महसूस करते हैं. लिंग के आधार पर होने वाले भेदभाव से जुड़े प्रश्नों को भी सर्वेक्षण में शामिल किया गया है. प्रश्नावली में अभद्रता से संरक्षण, सामाजिक एवं भावनात्मक सुरक्षा, स्कूल परिवहन, अग्निशमन सुविधाओं, शौचालय, पेयजल सुविधाएं, मध्याह्न भोजन की गुणवत्ता, खेल के मैदान, कक्षाएं जैसी आधारभूत संरचना जैसे पहलू शामिल किए गए हैं.

सुरक्षा उपायों पर जोर 

स्कूलों के भीतर शारीरिक एवं मानसिक उत्पीड़न और स्कूल के बाहर दुर्घटना के खतरे का सामना कर रहे बच्चों की सुरक्षा को प्राथमिकता देने की मांग हो रही है. राष्ट्रीय बाल अधिकार आयोग ने स्कूलों से सुरक्षा मानकों का कड़ाई से पालन करने को कहा है. स्कूलों में शिक्षक या स्टाफ की नियुक्ति के लिए पुलिस वेरीफिकेशन और मनोवैज्ञानिक परीक्षण को अनिवार्य किये जाने की मांग हो रही है. एक अभिभावक सरिता सिंह का कहना है कि पुलिस वेरीफिकेशन के साथ ही स्कूल के गेट और सभी कमरों में सीसीटीवी लगाना चाहिए ताकि स्कूल के भीतर होने वाले अपराधों पर अंकुश लग सके.

हादसों में मौत की सबसे बड़ी वजह स्कूल वाहन साबित हो रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्कूली बच्चों को लाने-ले जाने वाले वाहनों के संचालन को लेकर गाइड लाइन तैयार किये जाने के बावजूद इसका पालन नहीं होता. वाहनों में क्षमता से अधिक छात्रों को बिठाने के कारण कई दुर्घटनाएं हुई हैं. अधिवक्ता आरती चंदा कहती हैं कि हर साल देश के कई नौनिहाल दुर्घटना में मारे जाते हैं, अगर इस पर लगाम लगानी है तो स्कूल प्रशासन के साथ अभिभावकों को भी जागरूक होना पड़ेगा.

तस्वीरों में मिलिए उन लोगों से जो स्कूल में पीछे थे लेकिन जिंदगी में अव्वल