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अदालतों में पहुंची जलवायु परिवर्तन की लड़ाई

स्टुअर्ट ब्राउन
१ अक्टूबर २०२१

जलवायु परिवर्तन से निपटने में राजनीतिज्ञों की नाकामी को देखते हुए एशिया से लेकर दक्षिण अमेरिका और यूरोप तक के एक्टिविस्ट अपने अपने देश की सरकारों और प्रदूषण फैलाने वाली कंपनियों को अदालत में खींच रहे हैं.

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न्यू यॉर्क में जलवायु परिवर्तन के खिलाफ विरोध करते लोगतस्वीर: Caitlin Ochs/REUTERS

जलवायु परिवर्तन सम्मेलन, कॉप 26 करीब आ रहा है और जलवायु आंदोलनकारी खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं क्योंकि लक्ष्य निर्धारण की कोशिशें बेकार जा रही हैं. पेरिस का जलवायु समझौता न सिर्फ इरादे से खाली है बल्कि अपनी प्रतिबद्धताओं पर भी वो खरा नहीं उतरा है.

इस बीच फॉसिल ईंधन कंपनियों का बिजनेस पहले की तरह चालू है, भले ही उनमें से कई कंपनियों को 2050 तक नेट जीरो उत्सर्जन का लक्ष्य भी मिला हुआ है.

चल पड़ी है मुकदमों की लहर

जलवायु परिवर्तन और फॉसिल ईंधन के प्रदूषण से सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले समुदाय महसूस करते हैं  उनके पास अब प्रदूषण करने वालों को अदालत ले जाने के सिवा कोई विकल्प नहीं बचा है.

मई में शेल कंपनी के खिलाफ अदालत ने फैसला सुनाया था कि उसे 2030 तक अपने उत्सर्जनों में 45 प्रतिशत तक की कटौती करनी होगी. इस ऐतिहासिक फैसले के बाद दुनिया भर की तमाम अदालतों में जलवायु से जुड़े मुकदमों की लहर चल पड़ी है.

मानवाधिकारों के अंतरराष्ट्रीय संघ (इंटरनेशनल फेडरेशन फॉर ह्यूमन राइट्स- एफआईडीएच) ने हैशटैग सीयूइनकोर्ट (अदालत में मिलेंगे) के नाम से एक व्यापक मुहिम लॉन्च कर दी है. इस फेडरेशन में 100 से ज्यादा देशों के 192 मानवाधिकार समूह शामिल हैं. और इसने प्रदूषण करने वाले निगमों और कॉरपोरेटों के खिलाफ समन्वित अदालती कार्रवाई का बीड़ा उठाया है.

चिली के एनजीओ- ऑब्जरवेटोरियो सियुडाडानो और दो अन्य संगठन, एईएस जेनेर (वर्तमान में एईएस एंडीज) कंपनी के स्वामित्व वाले कोयला आधारित ऊर्जा संयंत्रों से होने वाले जलवायु दुष्प्रभावों और जहरीली गैसों के रिसाव के मामलों के खिलाफ एक बचाव याचिका अदालत में दायर कर रहे हैं.

कोलम्बिया में एक मानवाधिकार संगठन साजार स्थानीय समुदायों के एक समूह के साथ मिलकर मानवाधिकार पर अंतर-अमेरिकी आयोग में शिकायत डाल रहा है. ये याचिका अरोयो ब्रूनो नदी का रुख मोड़े जाने के बारे में है. ये लातिन अमेरिका की सबसे बड़ी खुली कोयला खदान कार्बोनेस डेल केरेजोन की विस्तार योजना का हिस्सा है.

दम तोड़ती मानव सभ्यता की जन्मभूमि

एफआईडीएच के सदस्य संगठन, ऑब्जरवेटोरियो सियुडाडानो के निदेशक खोसे आइलविन का कहना है, "आज का दिन बहुत सारी कंपनियां याद रखेंगी. वे कंपनियां जो मानवाधिकारों का हनन करती हैं, धरती को गंदा करती हैं और जलवायु परिवर्तन को भड़का रही है- उन्हें अब जरा अदालतों के चक्कर काटने पड़ेंगे.”

ये मामले जमीनी समुदायों से उभर कर आए हैं जो पर्यावरण से जुड़े प्रशासनिक अधिकारियों की उत्सर्जनों को ठीक से काबू न कर पाने की नाकामी की वजह से अदालतों से अपने लिए राहत की मांग कर रहे हैं.

एफआईडीएच लिटिगेशन एक्शन ग्रुप के समन्वयक वकील क्लेमेंस बेकटार्टे कहते हैं, "बहुराष्ट्रीय कंपनियों का जलवायु परिवर्तन में बड़ी भूमिका है लेकिन इस भूमिका का कोई संबंध पहुंचाए गए नुकसान की जिम्मेदारी लेने से नहीं है.”

पर्यावरण मुकदमों में जलवायु पर फोकस

पानी और हवा की गुणवत्ता पर खराब असर डालने वाली, पर्यावरणीय लिहाज से नुकसानदायक फॉसिल ईधन परियोजनाओं पर रोक लगाने की मांग के साथ संरक्षणवादी लंबे समय से अदालतों का रास्ता लेते रहे हैं. इसी हफ्ते यूरोपियन कोर्ट ऑफ जस्टिस ने पोलैंड की सरकार पर चेक बार्डर के पास टुरोव की लिग्नाइट की खदान को बंद करने से इंकार करने के दंडस्वरूप पांच लाख यूरो का जुर्माना लगाया था.

लेकिन जलवायु मुकदमों की ताजा लहर अलग है. जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण पर लंदन स्थित ग्रांथम रिसर्च इन्स्टीट्यूट में नीति विश्लेषक और समन्वयक कैथरीन हिगाम बताती हैं कि ये आंदोलनकारी जैव विविधता कानून या वायु गुणवत्ता कानून पर निर्भर नहीं हैं बल्कि वे "जलवायु परिवर्तन को ही मामले की धुरी बना रहे हैं.”

कैथरीन हिगाम ‘जलवायु परिवर्तन मुकदमों में वैश्विक रुझान' नाम से 2012 की एक रिपोर्ट की सह-लेखिका भी हैं. इस रिपोर्ट में पाया गया कि 2015 से जलवायु परिवर्तन से जुडे मामलों की तादाद दोगुना हुई है. 1986 और 2014 के बीच करीब 800 मामले दर्ज हुए थे, तबसे छह साल के दौरान 1000 से ज्यादा मामले आ चुके हैं.

जलवायु विज्ञान के एकीकरण में जलवायु मुकदमों की नयी नजीर बनाने की जुस्तजु भी रेखांकित होती है. हिगाम के मुताबिक, जलवायु परिवर्तन और मानवाधिकारों के बीच एक संपर्क अच्छी तरह स्थापित हो चुका है.

मानवाधिकारों के आधार पर लड़ाई

 

मानवाधिकारों पर जलवायु संकट का नकारात्मक प्रभाव साबित होने से हाई प्रोफाइल पर्यावरणीय मुकदमों की  संख्या में बढ़ोत्तरी हुई है.

2019 के एक ऐतिहासिक मामले में नीदरलैंड्स के सुप्रीम कोर्ट ने मानवाधिकारों पर यूरोपीय संधि का हवाला देते हुए पर्यावरण समूह, उरगेन्डा फाउंडेशन और 900 नागरिकों के पक्ष में फैसला सुनाया था. अदालत ने 2020 के अंत तक सरकार को ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कम से कम 25 प्रतिशत तक की कमी लाने का आदेश दिया था. 

इस बीच, शुक्रवार को जलवायु हड़ताल के तहत वैश्विक मार्च का हिस्सा बनने वाले युवाओं ने अपने मानवाधिकारों के आधार पर जलवायु मुकदमों की प्रक्रिया सफलतापूर्वक शुरू कर दी है.

ऑस्ट्रेलिया में एक हाईकोर्ट ने देश के पर्यावरण मंत्रालय से कहा है कि उन बच्चों की देखभाल उसकी ड्यूटी है जो एक कोयला खदान के विस्तार को मिली मंजूरी के चलते विनाशकारी नुकसान की आशंका की जद में आ गए हैं. इसी तरह जर्मनी में अप्रैल में युवा आंदोलनकारियों ने संवैधानिक अदालत में अपना पक्ष रखते हुए दलील दी कि संघीय जलवायु कानून उनके मानवाधिकारों की हिफाजत नहीं कर पा रहा है लिहाजा वो असंवैधानिक है. अदालत ने सरकार से 2030 के उत्सर्जन कटौती के लक्ष्यों को और बढ़ाने का निर्देश दिया.

इसी महीने, किशोरों और युवाओं ने ‘फ्राइडेज फॉर फ्यूचर' एक्टिविस्ट समूह के साथ मिलकर अदालत में फिर से अर्जी लगाने का फैसला किया है. जर्मनी के पांच प्रांतों में जलवायु बचाव कानून नहीं है. इन प्रांतों की जलवायु नीति के खिलाफ ही अदालत का दरवाजा खटखटाया जा रहा है.

बेकटार्टे ने जोर देकर कहा कि इसीलिए चिली और कोलम्बिया में दायर ताजा मुकदमे, व्यक्तियों और समुदायों के अनुभवों से निकले हैं और इस लड़ाई की उनकी रणनीति की धुरी में स्वस्थ पर्यावरण का उनका अधिकार शामिल है.

वह कहती हैं, "जलवायु परिवर्तन पर कॉरपोरेट से जवाबदेही मांगने की लड़ाई में हमें मानवाधिकार वाला चश्मा भी रखना होगा. बात सिर्फ धरती पर पड़ रहे असर की नहीं है, समुदाय भी प्रभावित हुए हैं.”

बेकटार्टे का कहना है कि हैशटैग #सीयूइनकोर्ट अभियान, एशिया, अफ्रीका और यूरोप में दायर किए जाने वाले मुकदमों के केंद्र में प्रभावित समुदायों की जगह बनाए रखेगा.

जलवायु कार्रवाई से बचने के हथकंडे

जलवायु मुकदमे दोधारी तलवार बने हुए हैं. फॉसिल ईंधन कंपनियां भी जलवायु एक्शन को रोकने के लिए कोर्ट जाती हैं. कोयला छोड़ने के लिए मुआवजे की मांग की जाती है. एक जर्मन कंपनी ने यही किया था. बड़ी ऊर्जा कंपनी आरडब्लूई ने फरवरी में करीब डेढ़ अरब यूरो का एक मुकदमा नीदरलैंड्स पर ठोक दिया था. 

लेकिन ऐसे जलवायु विरोधी मुकदमे उस लहर की बराबरी नहीं कर सकते जो इधर पर्यावरण कार्यकर्ताओ ने अपने जलवायु मुकदमों के जरिए पैदा की है. यूरोपियन कोर्ट ऑफ जस्टिस ने पिछले महीने फैसला किया कि एनर्जी चार्टर संधि (ईसीटी) के जरिए यूरोपीय यूनियन की ऊर्जा कंपनियां अपनी सरकारों पर मुकदमा नहीं कर सकती हैं. इसी संधि की बिना पर आरडब्लूई ने नीदरलैंड्स सरकार पर मुकदमा किया था.

हालांकि फैसले का असर अभी अदालतों के ध्यानार्थ आएगा, फिर भी ये मुकदमों पर अभियोग चलाना ज्यादा मुश्किल है- यह कहना है ‘फ्रेंडस ऑफ द अर्थ' के आर्थिक न्याय समन्वयक पॉल डि क्लार्क का.

वह कहते हैं, "ऐसा लगता है कि यूरोपीय अदालत का हाल का फैसला देशों को, ईसीटी पर आधारित आईएसडीएस मामलों को आगे मंजूर न करने के बारे में और असला ही मुहैया कराएगा.” निवेशक-सरकार विवाद निस्तारण मध्यस्थता पंचाटों का संदर्भ देते हुए उन्होंने ये बात कही. इसके जरिए यूरोप में 345 अरब यूरो वाले फॉसिल ईंधन के बुनियादी ढांचे को बचाया जा सकता है. 

लेकिन यूरोपियन यूनियन के बाहर मध्यस्थता समझौतों पर बिग ऑयल कंपनी फिर भी अभियोग चलाएगी. डि क्लार्क कहते हैं, "समस्या ये है कि यूरोपीय यूनियन के बाहर स्थित मध्यस्थता पैनल इन तमाम बातों की अनदेखी करते हैं और अपने अपने फरमान सुनाते रहते हैं.”

अभियोजन पक्ष की सफलताएं

जलवायु परिवर्तन अभियोग पर द ग्रांथम शोध संस्थान की रिपोर्ट बताती है कि कंपनियों और सरकारों के खिलाफ लाए गए 58 फीसदी अदालती मामलों में, अमेरिका को छोड़कर, फैसले जलवायु परिवर्तन पर कार्रवाई के हक में आए हैं. सिर्फ 32 प्रतिशत के नतीजे पक्ष में नहीं थे.

कैथरीन हिगाम को ये सफलता जारी रहने की उम्मीद है. "जैसे जैसे जलवायु परिवर्तन की आपात जरूरत के इर्दगिर्द वैज्ञानिक और राजनीतिक सहमति बनती जाएगी, मेरे ख्याल से अदालती कार्यवाहियों में जलवायु से जुड़े अनुकूल नतीजों को लेकर एक व्यापक रुझान भी बढ़ेगा.” 

उन्होंने यह भी कहा कि जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों के साक्ष्य, जंगल की आग और बाढ़ जैसी अतिशयताओं के रूप में बढ़ते हुए दिख रहे हैं. और इससे उन पर्यावरण एक्टिविस्टों की दलीलें और भी मजबूत होती जाएंगी जो अपने मुकदमों के जरिए वैश्विक तापमान में विनाशकारी बढ़ोत्तरी को रोकना चाहते हैं.

आर्कटिक की बर्फ लगातार पिघल रही है

 

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