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अंगूठा चूसने से बनती है सेहत

ईशा भाटिया (एएफपी)१३ जुलाई २०१६

बच्चों का अंगूठा चूसना या फिर नाखून चबाना मां बाप को कभी पसंद नहीं आता. उन्हें डर रहता है कि बच्चा बीमार हो जाएगा. लेकिन अमेरिका में हुई एक रिसर्च की मानें तो ऐसा करने वाले बच्चे ज्यादा सेहतमंद रहते हैं.

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तस्वीर: Colourbox/A. Babicius/I. Belcikova

हम यह नहीं कह रहे कि सेहत बनानी हो तो अंगूठा चूसने लगो या फिर नाखून चबाने लगो. लेकिन जिन बच्चों में इस तरह की आदतें होती हैं, उनका शरीर बीमारियों से लड़ने में ज्यादा सक्षम हो जाता है. नाखून की गंदगी शरीर में जाती है और इम्यून सिस्टम बैक्टीरिया इत्यादि से लड़ने लगता है. इस तरह बचपन से ही शरीर को कई तरह के रोगाणुओं से लड़ने की आदत पड़ जाती है. इन बच्चों को फायदा यह होता है कि शरीर कई तरह की एलर्जी से बच जाता है.

इंसानों में कई तरह की एलर्जियां देखी गयी हैं. किसी को पोलन यानी पराग से एलर्जी होती है, तो किसी को मसालों से. ऐसे लोगों के शरीर में जब सांस के साथ पराग के कण या फिर मसाले जाते हैं, तो वे छींकने लगते हैं. कुछ लोगों को एलर्जी का असर त्वचा पर देखने को मिलता है.

मिसाल के तौर पर मूंगफली खाने पर कुछ लोगों की त्वचा पर लाल चकत्ते पड़ जाते हैं. कई लोगों की त्वचा में पस पड़ जाती है. एलर्जी के और भी कई रूप हो सकते हैं. किसी खास तरह के परफ्यूम के कारण सांस लेने में दिक्कत आ सकती है.

आपको किस किस चीज से एलर्जी है, इसके लिए जरूरी नहीं कि आप अपनी आदतों पर ध्यान दें. डॉक्टर एक एलर्जी टेस्ट कर के आपको इस बारे में बता सकते हैं. इस टेस्ट के लिए दोनों बाहों पर निशान बनाए जाते हैं. हर निशान पर एलर्जी पैदा करने वाले तत्व की एक एक बूंद रखी जाती है और फिर वहां सुई चुभाई जाती है. इस तरह वह तत्व शरीर में चला जाता है लेकिन बेहद कम मात्रा में. कुछ देर इन तत्वों को असर करने दिया जाता है और फिर देखा जाता है कि त्वचा पर कहां कहां बदलाव हुआ और किस तरह का.

अमेरिका में हुई रिसर्च में भी यही तरीका अपनाया गया. 1,037 लोगों पर ये टेस्ट किए गए- पहली बार जब वे 13 साल के थे और दूसरी बार जब वे 32 के हुए. इसके अलावा पांच, सात, नौ और ग्यारह की उम्र में उनके अंगूठा चूसने और नाखून चबाने की आदतों को भी रिकॉर्ड किया गया. शोध में पाया गया कि जिन लोगों को बचपन में दोनों में से कोई भी आदत नहीं थी, उनमें से 49 फीसदी को किसी ना किसी चीज की एलर्जी जरूर थी. जिन्हें दोनों में से कोई एक आदत थी, उनमें से 38 फीसदी के साथ ऐसा था और जिन्हें दोनों ही आदतें थीं, उनमें से सिर्फ 31 फीसदी को ही एलर्जी थी. जब 13 साल की उम्र में उन पर टेस्ट किए गए तब भी यही नतीजे मिले और बाद में 32 साल पर भी.

हालांकि दमे जैसी बीमारियों पर इसका कोई असर नहीं देखा गया. शोध में कहा गया है, "हम यह नहीं कह रहे हैं कि बच्चों को ऐसी आदतों के लिए प्रेरित करना चाहिए" लेकिन इतना तो साफ है कि जो बच्चे थोड़ी बहुत गंदगी में खेल कूद कर बड़े होते हैं, उनका शरीर बीमारियों से बेहतर रूप से लड़ पाता है.