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भारतीय बाघों के लिए बुरा रहा है यह साल

क्रिस्टीने लेनन
१७ अक्टूबर २०१६

बाघों को बचाने की तमाम कोशिशों के बावजूद 2016 उनके लिए बेहद खराब साबित हो रहा है. वन्यजीव संरक्षण सोसायटी के आंकड़ों के मुताबिक, अब तक 100 बाघों की मौत हो चुकी है.

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Tiger in den Sundarbans
तस्वीर: Getty Images/AFP/D. Chowdhury

दुनिया में इस समय सबसे ज्यादा बाघ भारत में हैं. पिछले कुछ सालों में भारत में बाघों की संख्या में वृद्धि भी हुई है लेकिन इसके बावजूद तस्करों और सिकुड़ते जंगलों की वजह से बाघों के सामने अपना अस्तित्व बचाने की चुनौती बनी हुई है. राष्ट्रीय पशु और जंगल का राजा कहलाने वाले ये बाघ, इस साल जीवन संघर्ष की लड़ाई में बाजी हारते हुए नजर आ रहे हैं. पिछले 10 महीने में ही 36 बाघों को तस्करों ने अपना शिकार बनाया.

2016 के चिंताजनक आंकड़े

केरल के त्रिशूर के चिड़ियाघर में इसी गुरुवार एक बाघिन की मौत हो गई, इसके साथ ही इस साल देश में मरने वाले बाघों की संख्या 100 तक पंहुच गई है जबकि 2015 में पूरे 12 महीनों में 91 बाघ मारे गए थे. वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन सोसायटी के अनुसार इस साल अब तक देश के विभिन्न राज्यों में 100 बाघ मारे जा चुके हैं. यानी इस साल अब तक हर महीने औसतन 10 बाघों की मौत हुई है. वन एवं पर्यावरण मंत्री अनिल माधव दवे ने कुछ दिनों पहले राज्यसभा में जानकारी देते हुए कहा, "राज्यों ने अभी तक 73 बाघों की मौत की जानकारी दी है. इनमें 21 की तस्करों द्वारा मारे जाने की पुष्टि हुई है. सात मामलों में स्वाभाविक मौत हुई है. शेष 45 मामलों की जांच की जा रही है."

कभी बाघों की संख्या के मामले में देश में पहले स्थान पर रहने वाले मध्यप्रदेश का रिकॉर्ड निराशाजनक है. यहां इस साल अब तक 20 बाघों की मौत हो चुकी हैं. राज्य के वन मंत्री गौरीशंकर शेजवार ने पिछले दिनों विधानसभा में जानकारी दी कि पिछले डेढ़ साल में 34 बाघों की मौत हुई है. बाघों की मौत को लेकर नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी यानी एनटीसीए मध्यप्रदेश सहित 4 राज्यों से रिपोर्ट मांगी है.

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पिछले दशक में हुआ है सुधार

पिछले 100 सालों में बाघों की कुल संख्या में लगभग 96 प्रतिशत की कमी आ चुकी है. एक अनुमान से अनुसार सौ साल पहले दुनिया में एक लाख से ज्यादा बाघ थे जो ताजा गणना में 3890 रह गए हैं. वैसे 2010 के मुकाबले अभी बाघों की संख्या में 22 प्रतिशत की वृद्धि हुई. तब दुनिया में केवल 3200 बाघ रह गए थे. भारत में भी पिछले दशक बाघों की संख्या में वृद्धि दर्ज की गई है. 2008 की गणना में देश में केवल 1,411 बाघ बचे थे जो 2010 में बढ़ कर 1706 हो गए. 2014 में कुछ और बढ़ कर बाघों की संख्या 2226 हो चुकी है. हालांकि वन्यजीवन विशेषज्ञ बाघों की संख्या को लेकर आश्वस्त नहीं हैं. लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लगभग 30 प्रतिशत की वृद्धि के लिए केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा किये जा रहे प्रयासों को सराहा है. इस साल अप्रैल में नई दिल्ली में हुई वैश्विक बाघ सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था, "संवेदना और सह अस्तित्व के लिए प्रोत्साहित करने वाली हमारी सांस्कृतिक विरासत ने प्रोजेक्ट टाइगर की सफलता में एक अहम भूमिका निभायी है." प्रोजेक्‍ट टाइगर की शुरुआत 1973 में की गई थी.

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बाधक हैं तस्कर

बाघ संरक्षण अभियान को सबसे ज़्यादा नुकसान बाघों की तस्करी करने वाले पहुंचा रहे हैं. वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड और ट्रैफिक की रिपोर्ट के अनुसार भारत में बाघों की तस्करी अभी भी जारी है. इसके अनुसार पिछले 15 सालों में एशिया में कम से कम 1755 मरे और तस्करी के लिए जा रहे बाघ बरामद हुए हैं. इन 1755 में से 540 भारत में बरामद हुए जो कुल संख्या का लगभग 30 फीसदी है. डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के अनुसार दक्षिण भारत में बाघों की तस्करी के मामले सबसे ज्यादा दिखे जबकि मध्य प्रदेश में बाघों के शव की बरामदगी में वृद्धि हुई है. यानी बाघ संरक्षण अभियान को सबसे ज़्यादा खतरा तस्करों से ही है. जानकार मानते हैं कि अगर तस्करी के लिए बाघों की हत्या न हो रही होती तो भारत में बाघों की संख्या कहीं अधिक होती.

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लोगों को जोड़ने की जरूरत

बाघों के अस्तित्व के लिए सबसे बड़ा संकट सिकुड़ते जंगल नहीं बल्कि शिकारी तस्कर हैं. इस साल जिन 100 बाघों की मौत हुई है उनमे से 36 बाघों का जीवन शिकारियों ने खत्म किया है. यानी तमाम दावों और प्रयासों के बावजूद सरकार बाघों को अवैध शिकार होने से नहीं बचा पाई. वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड की इस ताजा रिपोर्ट के अनुसार उन बाघों का शिकार अधिक हो रहा है जिन्हें टाइगर फार्म्स में पाला जाता है. तस्करों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई अधिक कारगर नहीं हो पाई है. बाघ के शिकार के अपराध में दोष साबित होने की दर बहुत कम है जबकि ऐसे मामलों में गुप्तचर सूचनाओं की संख्या ना के बराबर होती है. इसमें सुधार के लिए नागरिकों का सहयोग जरूरी है.

विशेषज्ञों के अनुसार इस समस्या से निपटने के लिए लोगों में जागरूकता पैदा करनी होगी. तस्करी के खिलाफ जंगल के आस पास रहने वाले लोग कारगर हो सकते हैं. खासतौर पर टाइगर पार्क के आस पास रहने वाले लोगों को संरक्षण योजना में शामिल करके तस्करों पर लगाम कसी जा सकती है.