किन्नरों की जिंदगी में रंग भर रहा है यह प्रोजेक्ट
२१ मार्च २०२२भारत के महानगर मुंबई के एक विशाल पुल पर किन्नरों द्वारा बनाई गई कलाकृतियां नजरिया बदलने की कोशिश कर रही हैं. इस पुल के खंभों को भित्तिचित्रों से रंग दिया गया है. ये रंग उस पहलू को पेश करने की कोशिश कर रहे हैं जिन्हें समाज आज भी हेय दृष्टि से देखता है.
किन्नर, जिन्हें आम भाषा में हिजड़ा कहा जाता है, और जिन्हें तीसरे लिंग के रूप में कानूनी पहचान मिल चुकी है, आज भी समाज के हाशिये पर पड़ा है. ऐसे लोगों की तादाद आज भी बहुत बड़ी है जो मानते हैं कि इन लोगों को वरदान या श्राप देने की कुव्वत हासिल है. इस मान्यता ने उन्हें मान भी दिलाया है और लोग उनसे डरते भी हैं.
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अक्सर नौकरी ना मिलने के कारण बहुत से किन्नर भीख मांगने को विवश हैं. महानगरों के चौराहों, ट्रेनों या अन्य सार्वजनिक स्थानों पर इन्हें भीख मांगते देखा जा सकता है. कुछ पारिवारिक उत्सवों जैसे शादी या जन्मोत्सव आदि पर पहुंचते हैं और आशीर्वाद के बदले पैसा मांगते हैं. कुछ किन्नर यौनकर्मी भी बन जाते हैं.
ऐसे लोगों के प्रति समाज का नजरिया बदलने की पहल को अरवनी आर्ट प्रोजेक्ट नाम दिया गया है. इस प्रोजेक्ट के तहत बनाई गईं कलाकृतियां किन्नरों के बारे में फैली भ्रांतियों को चुनौती देने की कोशिश कर रही हैं. इस प्रोजेक्ट के तहत किन्नरों को उन्हीं सार्वजनिक चौराहों पर कलाकारों के रूप में दिखाया जाता है, जहां उन्हें लोग भीख मांगते देखने के आदि हैं.
अरवनी ने बदली जिंदगी
प्रोजेक्ट की ताजा जगह मुंबई के व्यवस्त चौराहे और पुल हैं. इन जगहों पर कलाकारों ने स्थानीय लोगों के पोर्ट्रेट बनाए हैं. इन स्थानीय लोगों में दो सफाईकर्मी, एक सब्जीवाला और एक पुलिसकर्मी हैं.
किन्नर कलाकार दीपा काचरे कहती हैं कि यह उन लोगों के अपनी प्रतिभा दिखाने का मौका है. वह बताती हैं, "हमें शादियों, बच्चों के जन्म आदि पर और दुकानों में जा जाकर भीख मांगनी पड़ती है. हममें से कुछ लोग यौनकर्म के जरिए भी पैसा कमाने को मजबूर हैं. हम सब जगह भीख मांगने जाते हैं लेकिन हमें भी मेहनत से पैसा कमाना पसंद है.”
अरवनी आर्ट प्रोजेक्ट को सरकारों के अलावा स्थानीय उद्योगों और समाजसेवी संस्थाओं का साथ भी मिला है, जिसके बूते कई जगहों पर यह योजना काम कर रही है. इस योजना ने दर्जनों कलाकारों को स्थान दिया है, जिनमें अधिकतर किन्नर हैं. भारत के कई शहरों में ये किन्नर कलाकार साथ आए हैं और अपनी प्रतिभा दिखा पाए हैं.
26 साल की कचारे बताती हैं, "लोग हमें कलाकारों के रूप में काम करते देख बहुत खुश होते हैं. अब वे जब हमें देखते हैं तो हमारे बारे में अच्छा सोचते हैं.”
इस प्रोजेक्ट का नाम हिंदू देवता भगवान अरवन के नाम पर रखा गया है. कथाओं के मुताबिक भगवान अरवन दक्षिण भारत में एक उत्सव के दौरान हर साल सैकड़ों किन्नरों से विवाह करते हैं. हिंदू पौराणिक कथाओं में अक्सर तीसरे लिंग का जिक्र मिल जाता है. महाभारत में शिखंडी एक अहम किरदार रहा. खुद भगवान कृष्ण और उनके सखा अर्जुन द्वारा किन्नर रूप धरने की कहानियां सुनाई जाती हैं.
मान्यता के लिए संघर्ष
लेकिन भारत में समलैंगिक यौन संबंधों को अपराध बनाए जाने से किन्नरों का जीवन काफी मुश्किल बना दिया था. 2018 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा इसे अपराध की श्रेणी से हटाए जाने से पहले तक किन्नरों को अपराधियां सा जीवन जीने पर मजबूर होना पड़ा. किन्नरों ने, जिनकी संख्या करोड़ों में मानी जाती है, इस मान्यता को हासिल करने के लिए खासा संघर्ष किया है.
अरवानी की सह-संस्थापक 29 साल की साधना प्रसाद किन्नर नहीं हैं लेकिन वह इस प्रोजेक्ट से बड़ी उम्मीदें रखती हैं. वह कहती हैं, "मेरे लिए उत्साह की बात यह है कि मैं उन्हें (किन्नर कलाकारों को) यह बता पा रही हूं कि वे कुछ भी करने में सक्षम हैं. और उनका लिंग क्या है, इस बारे में चर्चा बहुत बाद में होनी चाहिए. पहले चर्चा इस बात की होनी चाहिए कि वे क्या करते हैं और जिंदगी में क्या करना चाहते हैं.”
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समूह की एक अन्य किन्नर कलाकार 25 वर्ष की आयशा कोली आज भी सड़कों पर भीख मांगती हैं. वह कहती हैं कि चित्रकारी के दौरान रंगों के छीटों से रंगीन हो गया उनका कुर्ता एक अलग पहचान बन गया है. वह बताती हैं, "आजकल जब हम अपने पेंटिंग करने वाले कपड़े पहनकर जाते हैं तो वे उत्सुकता से पूछते हैं कि क्या हम पेंट करते हैं? और जब हम कहते हैं कि हां, हम कलाकार हैं और पेंट करते हैं तो हमें बहुत गर्व अनुभव होता है.”
वीके/एए (रॉयटर्स)