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ट्रंप ने सऊदी अरब और पाकिस्तान को क्यों छोड़ा?

३१ जनवरी २०१७

कुछ देशों के लोगों की अमेरिका में एंट्री बैन करने वाले राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के अध्यादेश की चारों तरफ आलोचना हो रही है लेकिन अमेरिका में रहने वाले रिसर्चर आरिफ जमाल इसे एक अधूरा कदम मानते हैं.

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Deutschland Anti-Trump-Demo in Berlin
तस्वीर: picture alliance/dpa/G. Fischer

अमेरिकी राष्ट्रपति ने आतंकवादी खतरों और बाहर से आने वालों की लोगों की जांच पड़ताल की व्यवस्था और पुख्ता बनाने के नाम पर सीरिया, ईरान, सूडान, सोमालिया, यमन, लीबिया और इराक के लोगों के अमेरिका में आने पर 90 दिन की अस्थायी रोक लगा दी है. राष्ट्रपति ट्रंप का कहना है कि वह अमेरिका को विदेशी आतंकवादी हमलों से बचाना चाहते हैं.

लेकिन हाल के सालों में अमेरिकी सरजमीन पर जितने भी हमले हुए, उनका संबंध अल कायदा, तालिबान और आईएस से रहा है और इन गुटों के तार कहीं न कहीं सुन्नी बहुल देश सऊदी अरब, पाकिस्तान और कतर से जुड़े रहे हैं. लेकिन इन देशों के नाम ट्रंप की लिस्ट में नहीं हैं.

सऊदी शाह सलमान के साथ टेलीफोन वार्ता में भी ट्रंप ने सऊदी अरब को समर्थन देते रहने की बात कही है. लेकिन इतना साफ है कि अमेरिका कट्टरपंथी इस्लाम के खिलाफ तब तक जंग नहीं जीत सकता जब तक सऊदी अरब और पाकिस्तान उसके सहयोगी रहेंगे.

आतंकवाद से सबसे ज्यादा कौन डरा हुआ है, देखिए

हालांकि अभी इस बारे में अटकलें लगाना जल्दबाजी होगी कि ट्रंप की रणनीति क्या है. अमेरिका मीडिया का कहना है कि ट्रंप ने कारोबारी हितों को ध्यान में रखते हुए कुछ देशों को यात्रा बैन वाली सूची से बाहर रखा है. सऊदी अरब के साथ कारोबारी हित हो सकते हैं, लेकिन पाकिस्तान और अफगानिस्तान में तो उन्होंने कोई निवेश नहीं किया है.

हो सकता है कि अफगानिस्तान को उन्होंने इसलिए इस सूची में नहीं रखा क्योंकि इससे वहां तैनात अमेरिकी सैनिकों को परेशानियां हो सकती हैं. लेकिन पाकिस्तान का मामला अलग है. ऐसा लगता है कि ट्रंप प्रशासन अभी यह तय करने में जुटा है कि पाकिस्तान को लेकर क्या नीति अपनाए. आने वाले दिनों में ट्रंप पाकिस्तान को लेकर सख्त रुख अपना सकते हैं. लेकिन सऊदी अरब के बारे में यह बात नहीं कही जा सकती.

इसके अलावा ट्रंप ईरान के बारे में अपनाई गई ओबामा की नीति पर भी फिर से विचार कर रहे हैं. ऐसी भी खबरें हैं कि राष्ट्रपति ट्रंप इस्लामिक स्टेट के खिलाफ एकुजट नीति तैयार करने के लिए रूसी मदद लेने की कोशिश कर रहे हैं. हालांकि रूस के बहुत नजदीक जाना भी ट्रंप के लिए मुश्किल होगा क्योंकि अमेरिका में ऐसे कदम का बहुत विरोध होगा. लेकिन यह भी सही है कि रूस की मदद के बिना इस्लामी कट्टरपंथ को हराना मुश्किल है.

देखिए कौन आतंकवाद का कितना शिकार बना 

ट्रंप को न तो पाकिस्तान और न ही सऊदी अरब एक सहयोगी के तौर पर देख रहा है. असल में किसी भी मुस्लिम बहुल देश का उनके प्रति दोस्ताना रवैया नहीं है. यही वजह है कि दुनिया के मुसलमान ट्रंप विरोधी प्रदर्शनों में शामिल हो रहे हैं. लेकिन यही लोग इस्लामी कट्टरपंथी या अपनी सरकारों के खिलाफ कभी सड़कों पर नहीं उतरते.

आरिफ जमाल अमेरिका में रहते हैं और वरिष्ठ पत्रकार हैं. वह कॉल फॉर ट्रांजिशनल जिहाद: लश्कर ए तैयबा, 1985-2014' समेत कई किताबें लिख चुके हैं.