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बिजलियां गिरा रही है बिजली से बचाने वाली मूर्ति

फैसल फरीद
२८ अक्टूबर २०१६

अभी तीन तलाक मुद्दे पर बहस थमी नहीं थी कि लखनऊ में शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने एक नयी बहस शुरू कर दी हैं.

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Indien Lucknow - Bara Imambara
तस्वीर: शमीम ए. आरजूतस्वीर: S. A Aarzoo

शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष सैयद वसीम रिजवी ने जिलाधिकारी लखनऊ को एक चिट्ठी भेजी है जिसमें उन्होंने छोटा इमामबाडा में लगी हुई दो मूर्तियों पर आपत्ति की है. रिजवी के मुताबिक ये मूर्तियां ब्रिटिश हुकूमत के दौरान ईस्ट इंडिया कंपनी ने लगाई थीं और ये मूर्तियां गैर इस्लामिक भी हैं और गुलामी की निशानी भी इसलिए इन मूर्तियों को हटाया जाना चाहिए. रिजवी ने यह भी कहा कि इमामबाड़ा मजहबी स्थान है और गैर इस्लामिक चीजें वहां नहीं रहनी चाहिए.

रिजवी ने इस बात पर अफसोस जताया कि पिछले 70 साल में किसी का ध्यान इस ओर क्यों नहीं गया. वह कहते हैं, "देखिये मुस्लिम धर्म में किसी भी तरह की मूर्ति लगाना या स्थापित करने की मनाही है. दुख की बात है कि अंग्रेजों ने शिया मुसलमानों के सबसे बड़े धार्मिक स्थल इमामबाड़ों में जिनका निर्माण नवाबीनों ने धार्मिक उद्देश्य के लिए किया था, उसी जगह पर दो बड़ी मूर्तियां लगा दीं." रिजवी ने कहा कि ईस्ट इंडिया कंपनी ने मुसलमानों के धार्मिक कानूनों को चुनौती दी और हमारे धार्मिक स्थल को अपमानित किया था इसलिए इन मूर्तियों का हटना जरूरी है.

छोटे इमामबाड़े में दो मूर्तियां लगी हैं. दोनों मूर्तियां गेट के सामने हैं और आपस में एक चेन से जुडी हुई हैं. ताम्बे की इन मूर्तियों पर अभी तक कोई ऐतराज सामने नहीं आया था.

तस्वीरों में देखिए, लखनऊ के इमामबाड़े को

छोटे इमामबाड़े का निर्माण वर्ष 1838 में अवध के तीसरे नवाब मोहम्मद अली शाह ने करवाया था. इसमें अजाखाना और नवाब के परिजनों के मकबरे भी बने हैं. इसमें एक सरोवर और मस्जिद भी है. एक मकबरा ताजमहल के रूप में है. मुहर्रम के महीने में यहां मजलिस मातम और अन्य आयोजन किये जाते हैं. हुस्नाबाद स्थित इस इमामबाड़े की देखरेख हुसैनाबाद एंड अलाइड ट्रस्ट करता है जिसका अध्यक्ष लखनऊ का जिलाधिकारी होता है. इमामबाड़ा पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित श्रेणी में भी आता है. ट्रस्ट का पंजीकरण वक्फ बोर्ड में है लेकिन इमामबाड़े के संचालन का मामला न्यायलय में लंबित हैं. इस बात को रिजवी भी मानते हैं. हालांकि वहां काफी समय से रह रहे लोगों का कहना है कि इन मूर्तियों को इस वजह से लगाया गया है कि अगर बिजली गिरे तो वह चेन के जरिए जमीन में चली जाये.

पहले भी लखनऊ के इमामबाड़ों को लेकर विरोध की आवाजें उठ चुकी हैं. पिछले साल शिया धर्म गुरू मौलाना कल्बे जव्वाद ने आन्दोलन किया था. उनकी मांग थी कि इमामबाड़ों में पवित्रता और धार्मिक मर्यादाओं का ध्यान रखा जाए. लोग सर ढक कर जाएं और छोटे कपड़ों में प्रवेश पर प्रतिबन्ध हो. जिला प्रशासन ने इस बारे में एक बोर्ड भी इमामबाड़ों में लगाया दिया है. इन इमामबाड़ों में विदेशी सैलानी बहुत संख्या में आते हैं और यह इमामबाड़े और इनका रूमी गेट लखनऊ की पहचान बन गया है. इससे पहले फिल्मों की शूटिंग पर भी ऐतराज हुआ है और अब निर्देशक भी कम आते हैं.

यह भी देखिए, लखनवी चिकन

पिछली मुलायम सरकार में भी इसी तरह विश्व प्रसिद्ध ताज महल को लेकर सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने आवाज उठाई थी. उस समय ताज महल को अपने अधीन करने की बात चली थी. वर्तमान में उत्तर प्रदेश में शिया और सुन्नी समुदाय के अलग अलग वक्फ बोर्ड हैं जिनमें चुने हुए अध्यक्ष होते हैं. प्रदेश में लगभग 1.25 लाख वक्फ प्रॉपर्टीज पंजीकृत है