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इन उम्मीदों के साथ भारत जाएंगे ब्रिटिश पीएम बोरिस जॉनसन

विवेक कुमार
१८ अप्रैल २०२२

ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन इस हफ्ते भारत के दौरे पर जा रहे हैं. यूक्रेन संकट को लेकर अलग रुख पर अड़े रहे भारत के बारे में हाल ही में ब्रिटेन के कई नेताओं के तल्ख बयान आए थे.

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ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन
ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसनतस्वीर: Matt Dunham/AP Photo/picture alliance

ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन इस गुरुवार को भारत दौरे पर पहुंचेंगे. घरेलू मोर्चे पर कई समस्याओं से घिरे जॉनसन को भारत में कुछ राहत की उम्मीद होगी, क्योंकि स्वदेश में वह इस्तीफे जैसी मांगों के अलावा भारतीय मूल के अपने वित्त मंत्री ऋषि सूनक की पत्नी के रूस से संबंधों के कारण भी परेशानियां झेल रहे हैं.

जॉनसन के कार्यालय द्वारा जारी की गईं सूचनाओं के मुताबिक प्रधानमंत्री अपनी भारत यात्रा के दौरान दोनों देशों के संबंधों को और मजबूत करने के लिए कई मुद्दों पर बातचीत करेंगे. यात्रा के दौरान जॉनसन की भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी मुलाकात होगी, जिसमें दोनों देशों के बीच ‘रणनीतिक रक्षा, राजनयिक संबंधों और आर्थिक साझेदारी' पर चर्चा होगी.

मुक्त व्यापार समझौते पर बातचीत

ब्रिटिश प्रधानमंत्री कार्यालय ने कहा कि जॉनसन दोनों देशों के बीच मुक्त व्यापार समझौते को लेकर भी जोर लगाएंगे. ब्रेक्जिट के बाद ब्रिटेन को इस समझौते से खासी उम्मीद है. ब्रिटेन को उम्मीद है कि यह समझौता 2035 तक उसके सालाना व्यापार को बढ़ाकर 36.5 अरब डॉलर तक ले जा सकता है.

क्या भारत लोकतंत्र के लिए परिपक्व नहीं है?

एक बयान में बोरिस जॉनसन ने कहा कि एक प्रमुख आर्थिक शक्ति के रूप में भारत ब्रिटेन का एक अहम रणनीतिक साझीदार है. उन्होंने कहा, "आज जबकि हम एकाधिकारवादी देशों से अपनी शांति और उन्नति को चुनौती का सामना कर रहे हैं, तो यह महत्वपूर्ण है कि लोकतंत्र और मित्र साथ रहें.”

पिछले साल मई में दोनों देशों ने भारत द्वारा ब्रिटेन में 53 करोड़ पाउंड यानी करीब 53 अरब रुपयों के निवेश का एलान किया था. जॉनसन की इस यात्रा पर साइंस, तकनीक और स्वास्थ्य क्षेत्रों में और कई समझौतों का एलान हो सकता है.

यूक्रेन का साया

यह आशंका भी है कि जॉनसन के दौरे पर रूस को लेकर भारत के रुख के कारण पश्चिमी देशों की खिन्नता का असर छाया रह सकता है. ब्रिटेन और अमेरिका समेत पश्चिमी देश चाहते हैं कि भारत रूस के खिलाफ कड़ा रुख अपनाए और उससे व्यापारिक संबंध कम करे. लेकिन भारत कह चुका है कि रूस से व्यापार जारी रखेगा.

भारत ने यूक्रेन पर हमले को लेकर अपने पुराने मित्र देश रूस की आलोचना नहीं की है. रूस के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र में लाए गए तीनों प्रस्तावों पर मतदान के दौरान भी उसने गैरहाजिर रहने का फैसला किया, जिसे रूस का साथ देने के रूप में देखा गया. अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा था कि क्वॉड देशों में एक भारत ही है जो रूस के खिलाफ कदम उठाने को लेकर संदिग्ध है. हालांकि, भारत सरकार ने दोनों पक्षों से फौरन हिंसा रोकने और बातचीत से विवाद सुलझाने की अपील की है.

पिछले दिनों भारत दौरे पर गईं ब्रिटिश विदेश मंत्री लिज ट्रस के के सामने ही भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने रूस पर पश्चिमी नीतियों की आलोचना की थी. ट्रस की मौजूदगी में भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि रूस पर प्रतिबंधों की बात करना "एक अभियान जैसा” लगता है, जबकि यूरोप रूस से युद्ध के पहले की तुलना में ज्यादा तेल खरीद रहा है.

ब्रिटिश विदेश मंत्री ने बार-बार रूस की आक्रामकता की बात की, लेकिन जयशंकर ने अपने संबोधन में रूस का नाम नहीं लिया. दोनों नेता ‘इंडिया-यूके स्ट्रैटिजिक फ्यूचर्स फोरम' में बोल रहे थे, जिसे ‘इंडियन काउंसिल ऑफ वर्ल्ड अफेयर्स एंड पॉलिसी एक्सचेंज' ने आयोजित किया था. इस सम्मेलन के बाद दोनों नेताओं के बीच द्विपक्षीय बैठक भी हुई.

उससे पहले ब्रिटेन की व्यापार मंत्री ऐन-मरी ट्रेवेलयान ने कहा था कि रूस पर भारत के रुख को लेकर उनका देश बहुत निराश है. भारत के साथ व्यापार वार्ताओं के दूसरे दौर के समापन से पहले ट्रेवेलयान ने यह बात कही. जब ब्रिटिश मंत्री ट्रेवेलयान से पूछा गया कि रूस को लेकर भारत के रूख का मुक्त व्यापार समझौते से संबंधित बातचीत पर असर पड़ेगा या नहीं, तो उन्होंने उम्मीद जताई कि भारत अपना रूख बदल लेगा. ट्रेवेलयान ने कहा, "हम बहुत निराश हैं लेकिन हम अपने भारतीय साझीदारों के साथ काम करना जारी रखेंगे और उम्मीद करेंगे कि उनके विचार बदलें.”

रिपोर्टः विवेक कुमार (रॉयटर्स)

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