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कैसे बने व्लादिमीर पुतिन इतने ताकतवर?

१९ मार्च २०१८

व्लादिमीर पुतिन 2024 तक रूस के राष्ट्रपति रहेंगे. शायद उसके बाद भी वे सत्ता में बने रहने का कोई ना कोई पैंतरा निकाल लें. जानिए कभी सोवियत संघ के खुफिया एजेंट रहे पुतिन कैसे देश के सबसे ताकतवर इंसान बने.

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Russland Vladimir Putin in KGB-Uniform
तस्वीर: picture alliance/Globallookpress/Russian Archives

वकालत की पढ़ाई पूरी करने के बाद व्लादिमीर पुतिन ने सोवियत संघ की खुफिया पुलिस केजीबी के साथ काम करना शुरू किया. उस समय उनकी उम्र 23 साल थी. केजीबी ने उन्हें पूर्वी जर्मनी के शहर ड्रेसडन में भेजा जहां वे ट्रांसलेटर के रूप में काम करने लगे. पुतिन खुफिया एजेंट के रूप में क्या क्या करते रहे, इस पर अटकलें लगती रही हैं. लेकिन उनकी जीवनी लिखने वाली माशा गेसन की मानें, तो उनका काम महज प्रेस क्लिपिंग जमा करना था और इसमें कुछ भी बहुत महत्वपूर्ण नहीं था.

बर्लिन की दीवार गिरने के बाद पुतिन अपने शहर सेंट पीटर्सबर्ग लौट गए. यहां से उनका राजनीतिक सफर शुरू हुआ और उन्होंने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा. 1990 में सेंट पीटर्सबर्ग के नगर पार्षदों ने पाया कि पुतिन ने विदेशी सहायता के बदले स्टील बेचे जाने की अनुमति दी. स्टील तो बिका लेकिन उसके बदले में सहायता के रूप में जो खाद्य सामग्री आनी थी, वह कभी पहुंची ही नहीं. इस मामले में एक जांच समिति बिठाई गई, पुतिन को दोषी भी पाया गया लेकिन उनकी सिफारिश ऐसी थी कि वे अपने पद पर बने रहे. बताया जाता है कि मेयर अनाटोली सोबचाक से उनके अच्छे संबंध थे.

इसके बाद के सालों में पुतिन राजनीति में अपनी जगह बनाते चले गए. 1997 में राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन ने उन्हें अपना डिप्टी चीफ ऑफ स्टाफ घोषित किया. इसके एक साल बाद ही वे रूस की खुफिया एजेंसी एफएसबी के अध्यक्ष बने. 1999 में येल्तसिन ने उन्हें रूस के प्रधानमंत्री के रूप में नियुक्त किया. येल्तसिन के समर्थक और प्रतिस्पर्धी दोनों इस फैसले के खिलाफ थे लेकिन कोई भी पुतिन को प्रधानमंत्री बनने से रोक नहीं सका. फिर जब येल्तसिन ने अचानक ही राष्ट्रपति के पद से इस्तीफा दे दिया, तो पुतिन कार्यवाहक राष्ट्रपति बन गए. इस पद पर उन्होंने सबसे पहला काम यह किया कि येल्तसिन पर लगे भर्ष्टाचार के सभी आरोपों से उन्हें मुक्त कर दिया.

साल 2000 में पुतिन 53 प्रतिशत वोटों के साथ देश के राष्ट्रपति चुने गए. उनकी जीत में उनकी 'इमेज' ने एक बड़ी भूमिका निभाई. अपने बाकी के प्रतिद्वंद्वियों से अलग पुतिन कानून और व्यवस्था को मानने वाले उम्मीदवार के रूप में उभरे. देश भ्रष्टाचार से परेशान था. ऐसे में देशवासियों को पुतिन में एक उम्मीद की किरण दिखाई दी और वे इस उम्मीद पर खरे भी उतरे. उन्होंने देश को आर्थिक संकट से बाहर निकाला. देश ने आर्थिक रूप से जो अच्छे दिन देखे, उन्होंने पुतिन की लोकप्रियता को और भी बढ़ा दिया. 2004 में लोगों ने एक बार फिर उन्हें अपना नेता चुना.

लेकिन अमेरिका की तरह रूस में भी राष्ट्रपति तीसरी पारी नहीं खेल सकता. लिहाजा दिमित्री मेद्वेदेव देश के राष्ट्रपति बने और उन्होंने पुतिन को अपना प्रधानमंत्री चुना. माना जाता है कि मेद्वेदेव केवल कागजों पर ही राष्ट्रपति थे जबकि देश की कमान असल में पुतिन के ही हाथों में थी. मेद्वेदेव के दौर में घोषणा हुई कि अगले चुनाव से राष्ट्रपति का कार्यकाल चार की जगह छह सालों का होगा.

2012 में पुतिन फिर राष्ट्रपति पद पर लौटे. इस बार छह सालों के लिए और इस बार उन्होंने मेद्वेदेव को अपना प्रधानमंत्री नियुक्त किया. इस पर उनकी कड़ी आलोचना भी हुई. इस बीच देश की अर्थव्यवस्था फिर बिगड़ी, भ्रष्टाचार और मानवाधिकार के उल्लंघन के भी लगातार आरोप लगते रहे. लेकिन बावजूद इसके पुतिन एक बार फिर सत्ता में आ गए हैं. इस बार रिकॉर्ड 75 फीसदी वोटों के साथ. उनके सामने कोई भी कड़ा प्रतिद्वंद्वी नहीं खड़ा था. ऐसे में चुनाव से पहले ही उनकी जीत तय मानी जा रही थी.

पुतिन की जीवनी लिखने वाली माशा गेसन का कहना है कि वे माफिया के रूप में सरकार चला रहे हैं. पश्चिम में उन्हें "बॉन्ड का विलन" भी कहा जाता है. माशा का कहना है कि रूस में उन्हें इस छवि का फायदा मिला है और अब वे कम से कम 2024 तक इस छवि को बरकरार रख सकते हैं.

एलिजाबेथ शूमाखर/आईबी