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फेसबुक पोस्ट से बवाल, ममता और राज्यपाल भी आमने सामने

प्रभाकर मणि तिवारी
५ जुलाई २०१७

पश्चिम बंगाल में एक आपत्तिजनक फेसबुक पोस्ट की वजह से दो समुदायों के बीच बीते दो दिनों से जारी हिंसा अब ममता बनर्जी सरकार और राजभवन के बीच एक बड़े विवाद में बदल गयी है.

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Maoisten in Indien
तस्वीर: picture-alliance/dpa

मंगलवार को राज्यापल केशरी नाथ त्रिपाठी पर सार्वजनिक रूप से धमकाने का आरोप लगाने के बाद अब ममता की तृणमूल कांग्रेस ने राज्यपाल के रवैए की शिकायत करते हुए राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी और केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह को पत्र लिखा है. पार्टी राज्यपाल को बदलने के लिए दबाव बढ़ा रही है. दूसरी ओर, मंगलवार देर रात बीएसएफ के चार सौ जवानों के हिंसाग्रस्त इलाकों में पहुंचने के बाद हिंसा की कोई नयी घटना तो नहीं हुई है लेकिन इलाके में भारी तनाव है. इस बीच, केंद्र सरकार ने इस मामले में राज्य सरकार से एक रिपोर्ट मांगी है. प्रभावित इलाकों में इंटरनेट और वाई-फाई सेवाएं पहले ही बंद कर दी गई हैं.

मामला

रविवार को फेसबुक पर एक आपत्तिजनक पोस्ट की वजह से अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों ने बांग्लादेश से सटे जामुड़िया, बशीराहट और स्वरूप नगर इलाकों में हिंसा शुरू की थी. इसके बाद पुलिस ने शौविक सरकार नामक उस युवक को उसी रात गिरफ्तार कर लिया. लेकिन तब तक आसपास के इलाको में हिंसा फैल चुकी थी. कई जगह दुकानों, मकानों और पुलिस के वाहनों में आग लगा दी गई और सड़कें काट दी गयीं. उत्तेजित भीड़ ने थाने का घेराव कर वहां खड़ी गाड़ियों में भी आग लगा दी. सोमवार को भी लूटपाट का दौर जारी रहा. इसके बाद मंगलवार को दूसरे गुट के लोगों ने भी जवाबी हमले शुरू किये. इससे हालात बेकाबू होने लगे. इसी के बाद बीजेपी और विश्व हिंदू परिषद नेताओं के एक प्रतिनिधिमंडल ने राजभवन में राज्यपाल केशरी नाथ त्रिपाठी से इसकी शिकायत की.

शिकायत के बाद राज्यपाल ने मुख्यमंत्री को फोन कर इस मामले में जानकारी मांगी. उन्होंने ममता से सवाल किया कि आखिर हालात बेकाबू होने के बावजूद इलाके में अर्धसैनिक बल के जवानों को क्यों नहीं भेजा जा रहा है? दोनों के बीच लगभग आठ मिनट तक चली बातचीत के फौरन बाद ममता ने एक प्रेस कांफ्रेंस में राज्यपाल पर धमकी देने और अपमानित करने का आरोप लगाया. इसके साथ ही उन्होंने सांप्रदायिक हिंसा के लिए बीजेपी और आरएसएस से जुड़े संगठनों को जिम्मेदार ठहराया. ममता के समर्थन में उनकी पार्टी के नेता भी सक्रिय हो गये और राज्यपाल को हटाने की मांग उठा दी.

मामला बिगड़ते देख कर राजभवन की ओर से जारी एक बयान में ममता के आरोपों का खंडन किया गया. इसमें कहा गया कि राज्यपाल ने फोन पर कोई ऐसी बात नहीं कही जो धमकी या अपमान की परिभाषा में आती हो. ममता की प्रेस कांफ्रेंस के बाद केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने भी राज्यपाल से बातचीत की थी.

इस बीच, इस मुद्दे पर राजनीति तेज हो गयी है. सीपीएम के प्रदेश सचिव सूर्यकांत मिश्र ने कहा है कि इस मुद्दे पर सरकार को एक सर्वदलीय बैठक बुलानी चाहिए. वहीं, कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अधीर चौधरी कहते हैं, "मुख्यमंत्री को अगर राज्यपाल से कोई शिकायत थी उनको समुचित तरीके से अपना विरोध जताना चाहिए था, सार्वजनिक तौर पर नहीं."

बढ़ती घटनाएं

पश्चिम बंगाल में खासकर बीते साल से ही सांप्रदायिक हिंसा की घटनाएं बढ़ रही हैं. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इन घटनाओं के लिए भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ व उससे जुड़े संगठनों को जिम्मेदार ठहराती रही हैं. अब उत्तर 24-परगना जिले में हुई ताजा हिंसा के मामले में भी उन्होंने यही आरोप दोहराया है.

मुख्यमंत्री ने कहा कि बीते कुछ समय से राज्य में कुछ संगठन दंगा फैलाने का प्रयास कर रहे हैं. उनके मुताबिक ये लोग पहले फेसबुक पर कोई पोस्ट डालते हैं और फिर दूसरे गुट को भड़का कर हिंसा शुरू कराते हैं. ममता ने कहा कि रविवार को बादुड़िया इलाके में फेसबुक लिखने वाले छात्र की गिरफ्तारी के बाद थोड़ी-बहुत हिंसा जरूर हुई थी. लेकिन अगले दिन उस पर काबू पा लिया गया था. उनका दावा है कि दूसरे गुट को उकसा कर कुछ संगठनों ने जब जवाबी हमले शुरू किये तो हालात बेकाबू हो गये.

बीते एक साल के दौरान राज्य के मालदा, मुर्शिदाबाद, हुगली, पूर्व मेदिनीपुर, उत्तर 24-परगना, हावड़ा और बर्दवान जिलों में सांप्रदायिक हिंसा की कम से कम 15 घटनाएं हो चुकी हैं. कोलकाता से सटा उत्तर 24-परगना देश में आबादी के लिहाज से सबसे ज्यादा घनत्व वाला जिला है. यहां कुल आबादी में 26 फीसदी मुस्लिम हैं. यह जिला बांग्लादेश की सीमा से लगा है.

लंबा है विवादों का इतिहास

बंगाल में राजभवन और राज्य सरकारों के बीच विवाद नया नहीं है. सत्तारूढ़ राजनीतिक दलों की ओर से पहले भी राज्यपालों की गतिविधियों की आलोचना होती रही है. लेकिन यह पहला मौका है जब किसी मुख्यमंत्री ने सार्वजनिक रूप से राज्यपाल पर सीधा हमला बोला है. बंगाल के संसदीय इतिहास में ऐसी दूसरी कोई मिसाल नहीं मिलती.

यहां राजभवन और राज्य सरकारों के बीच विवाद का इतिहास 50 साल पुराना है. वर्ष 1967 में तत्कालीन राज्यपाल धर्मवीर ने राज्य की तत्कालीन यूनाइटेड फ्रंट सरकार को तीन दिनों में बहुमत साबित करने का निर्देश देते हुए एक पत्र भेजा था. इसके जवाब में मुख्यमंत्री अजय मुखर्जी ने कहा कि विधानसभा के अधिवेशन की तारीख तय है, जो होना है वह उसी दौरान होगा. इससे राज्यपाल इतने नाराज हुए कि उन्होंने मंत्रिमंडल को भंग करने की सिफारिश करते हुए केंद्र को पत्र भेज दिया. इससे विभिन्न राजनीतिक दलों के बीच आपसी विवाद चरम पर पहुंच गया था.

उसके बाद लेफ्ट फ्रंट के शासनकाल के दौरान भी राजभवन से विवाद हुआ था. राज्यपाल बीडी पांडे के कामकाज की वजह से सीपीएम के पूर्व प्रदेश सचिव प्रमोद दासगुप्ता ने तो उनका नाम ही बंगाल दमन पांडे रख दिया था. लेफ्ट ने तब राज्यपाल की भूमिका के खिलाफ कोलकाता में एक रैली भी निकाली थी. उनके बाद राजभवन में आने वाले अनंत प्रसाद शर्मा और टीवी राजेश्वर के साथ भी लेफ्टफ्रंट सरकार का छत्तीस का ही आंकड़ा रहा. लेकिन यह दोनों राज्यपाल एक साल से ज्यादा राजभवन में नहीं टिक सके.

बसु के बाद मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने वाले बुद्धदेव भट्टाचार्य और राज्यपाल गोपाल कृष्ण गांधी के बीच काफी तनातनी हुई थी. राज्यपाल ने राज्य में बिजली का संकट गंभीर होने पर महीनों तक रोजाना शाम को दो घंटे तक राजभवन की बत्तियां गुल रखने का फैसला कर सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया था.

राज्यपाल के इस फैसले पर पूर्व मुख्यमंत्री ज्योति बसु ने कहा था कि ऐसा नहीं करना ही बेहतर होता. क्या राजभवन में बिजली गुल रखने से बिजली का संकट खत्म हो जाएगा ? इसी तरह नंदीग्राम में हुई पुलिस फायरिंग के बाद गोपाल कृष्ण ने इसकी निंदा करते हुए अपने बयान में जिन कटु शब्दों का इस्तेमाल किया था उनसे भी सरकार और राजभवन के बीच दूरियां बढ़ीं. तब सार्वजनिक तौर पर राजभवन के बयान जारी करने के अधिकार पर भी बहस शुरू हुई थी.

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि राज्यपाल और सरकार के बीच मौजूदा विवाद लोकतंत्र के हित में नहीं है. इन दोनों को हर बात को प्रतिष्ठा की लड़ाई बनाने की बजाय निष्पक्षता से अपनी भूमिका का पालन करना चाहिए.