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सबसे विकसित राज्यों का हाल भी खस्ता

विश्वरत्न श्रीवास्तव१२ अगस्त २०१६

आजादी के बाद से ही महाराष्ट्र और गुजरात देश की अर्थव्यवस्था में ग्रोथ इंजन की भूमिका निभाते रहे हैं. इसके बावजूद यह दोनों राज्य खुद अब तक भूखमरी, कुपोषण और बेरोजगारी से आजाद नहीं हो पाए हैं.

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Indien Arbeitnehmer in einem Textildruckwerkstatt
तस्वीर: REuters/UNI

महाराष्ट्र और गुजरात आजादी के बाद से ही देश के प्रमुख औद्योगिक राज्य रहे हैं. समय के साथ हुई इनकी आर्थिक प्रगति ने देश की अर्थव्यवस्था को और मजबूती प्रदान की है. नब्बे के दशक में शुरू हुए आर्थिक उदारीकरण का लाभ उठाते हुए इन दोनों राज्यों ने अपनी जीडीपी को मजबूत बनाया और वर्तमान में जीडीपी के हिसाब से महाराष्ट्र देश का सबसे अग्रणी राज्य है. भले ही गुजरात की जीडीपी महाराष्ट्र जितनी बड़ी ना हो पर ग्रोथ रेट के मामले में यह महाराष्ट्र पर भारी है.

पाकिस्तान से बड़ी है महाराष्ट्र की अर्थव्यवस्था

महाराष्ट्र की जीडीपी का आकार पकिस्तान की जीडीपी से अधिक है. वर्ष 2015 में पाकिस्ता‍न की जीडीपी का आकार करीब 250 अरब डॉलर था, वहीं इस दौरान महाराष्ट्र की जीडीपी 295 अरब डॉलर के स्तर पर थी. ना केवल पाकिस्तान बल्कि मिस्र और दुनिया के 38 अन्य देशों की अर्थव्यवस्था से महाराष्ट्र की अर्थव्यवस्था बड़ी है. देश में चौथे स्थान पर मौजूद गुजरात की जीडीपी 150 अरब डॉलर के आसपास है, जो हंगरी और यूक्रेन के मुकाबले अधिक है. कर संग्रहण के मामले में भी महाराष्ट्र सबसे आगे है. कुल राजस्व प्राप्ति में 70 फीसदी हिस्सा कर का है. देश के कुल राजस्व का 40 फीसदी महाराष्ट्र से आता है जबकि औद्योगिक उत्पादन में महाराष्ट्र का योगदान 15 फीसदी है.

सबसे ऊंची मूर्ति बनाने की कवायद जारी है

निर्यात में अगुआ

महाराष्ट्र और गुजरात का 2014-15 में कुल निर्यात में हिस्सा 46 प्रतिशत रहा है. उद्योग संगठन एसोचैम के एक अध्ययन के अनुसार देश को निर्यात से हुई आमदनी में महाराष्ट्र की हिस्सेदारी 23 प्रतिशत से ज्यादा है. 2014-15 में निर्यात से हुई आय करीब 310 अरब डॉलर थी. इस अवधि में महाराष्ट्र का निर्यात 72.83 अरब डॉलर रहा और यह सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाला राज्य रहा. वहीं, इस दौरान गुजरात को वस्तुओं के निर्यात से 59.58 अरब डॉलर की आय हुई. यह दूसरे स्थान पर रहा. गुजरात और महाराष्ट्र से निर्यात में क्रमश: 8 प्रतिशत और 7.2 प्रतिशत की वृद्धि हुई है.

लेकिन इसके बावजूद प्रति व्यक्ति आय के मामले में महाराष्ट्र और गुजरात दोनों ही राज्य टॉप 5 में शामिल नहीं हैं. महाराष्ट्र में प्रति व्यक्ति आय 1.29 लाख रुपये है जबकि गुजरात की प्रति व्यक्ति आय 1.10 लाख रुपये है. जीडीपी के मामले में देश की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था महाराष्ट्र इनकम टैक्स भरने के मामले में भी पहले नंबर पर है. सरकार की ओर से जमा किए गए कुल टैक्स में से 39.9 फीसदी टैक्स महाराष्ट्र से इकट्ठा हुआ. गुजरात पिछले दो दशकों के दौरान इकोनॉमिक ग्रोथ के मामले में सबसे आगे रहा है. टैक्स कलेक्शन के मामले में गुजरात का नंबर पांचवां रहा. सरकार की ओर से जमा किए गए कुल टैक्स‍ में से 5.21 फीसदी टैक्स गुजरात से एकत्र हुआ.

महाराष्ट्र की पहचान, जानलेवा कपास

तस्वीर का दूसरा पहलू

महाराष्ट्र और गुजरात देश के पांच कर्जदार राज्यों में भी शामिल है. आरबीआई के मुताबिक, महाराष्ट्र पर 3.79 लाख करोड़ रुपये का कर्ज है. वहीँ गुजरात पर 2.29 लाख करोड़ रुपये का कर्ज है. प्रोफेसर अरुण कुमार कहते हैं, “हम अपनी आजादी का 70वां साल मनाने जा रहे हैं, लेकिन देश के अन्य राज्यों की तरह ही महाराष्ट्र और गुजरात भी कुपोषण, किसान आत्महत्या, बेरोजगारी जैसी समस्याओं से आजाद नहीं हो पाए हैं.” विकास के तमाम आकड़ों के बीच सरकार के ही आकड़ों के हिसाब से महाराष्ट्र में सवा दो करोड़ से ज़्यादा लोग गरीबी रेखा के नीचे का जीवन जी रहे हैं.

गरीबी से उपजे कुपोषण से हर साल करीब 45,000 बच्चे मर जाते हैं. वहीँ यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के मुताबिक गुजरात भी कुपोषण से जूझ रहा है. राज्य में करीबन 33.6 प्रतिशत बच्चे कम वजन और 41.6 प्रतिशत बच्चे खराब ग्रोथ की समस्या से जूझ रहे हैं. हालांकि महाराष्ट्र को नवजात शिशु की मृत्यु दर में कमी लाने में कामयाबी मिली है. 60 साल पहले की तुलना में अब यह मात्र एक चौथाई ही रह गई है. प्रति एक हजार पर नवजात शिशु की मृत्यु दर यहां 25 है, जबकि राष्ट्रीय दर 50 के आसपास है.

नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट के मुताबिक, इन दोनों राज्यों में लड़कियों के लिए बनाये गए कानून असफल हो रहे हैं. दोनों ही राज्य प्री-कंसेप्शन एंड प्री-नैटल डायगनोस्टिक टेक्नीक एक्ट के क्रियान्वयन में असफल रहे हैं. यह विधेयक गर्भधारण से पूर्व या बाद में लिंग निर्धारण, कन्या भ्रूणहत्या के लिए नैदानिक तकनीकों पर रोक को नियमित करता है. महिलाओं के स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे सामाजिक सूचकांकों पर भी गुजरात का प्रदर्शन खराब रहा है. गृहिणी संध्या पांडे कहती हैं कि महिला सुरक्षा के मुद्दे पर बहुत काम होना बाकी है. आजादी के इतने साल बाद भी महिलाएं असामाजिक तत्वों के ‘भय से आज़ाद नहीं' हो पाई हैं.

ब्लॉग: विश्वरत्न श्रीवास्तव

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