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कश्मीर: बाकी भारत के मुसलमान क्या सोचते हैं?

मुरली कृष्णन
१२ अक्टूबर २०१६

जम्मू कश्मीर भारत का अकेला राज्य है जहां मुसलमान आबादी बहुमत में है. वहां चल रही अशांति देश दुनिया के मीडिया में छाई है. बहुत से मुसलमान बुद्धिजीवियों की राय में समस्या का हल व्यापक स्वायत्ता देकर ही हो सकता है.

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Eid al-Adha Islamisches Opferfest in Neu Delhi
तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Sharma

कश्मीर में भारत विरोधी प्रदर्शन और उनके दौरान 80 से ज्यादा लोगों की मौतों ने कश्मीर में स्वायत्तता के मुद्दे को फिर से बहस में ला दिया है. कश्मीर मुद्दे पर भारत और पाकिस्तान की तरफ से आ रहे बयानों के बीच डीडब्ल्यू ने भारत के अन्य हिस्सों में कई मुसलमान बुद्धिजीवियों और पत्रकारों से बात की और पूछा कि इस समस्या का हल वे क्या देखते हैं.

संघर्षों को कम करने की दिशा में काम करने वाले एक गैर सरकारी संगठन अमन ट्रस्ट के जमाल किदवई कहते हैं, "राज्य का एक और विभाजन हल नहीं है. 1947 में राज्य जो दो हिस्सों में बंटा था उसे फिर से एक करने के लिए एक अलग तरह की सोच की जरूरत है और सीमाओं को सहज बनाने और राज्य के लोगों को अधिक स्वायत्तता देने के बारे में विचार करना होगा." किदवई का कहना है कि भारत सरकार को इस मामले में बड़े दिल का परिचय देना चाहिए.

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वहीं अन्य लोगों का कहना है कि कश्मीर विवाद के निपटारे के लिए एक राजनीतिक रूप से मान्य एक हल तो तलाशना ही होगा. राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान आयोग के सदस्य जफर आगा कहते हैं, "न तो पाकिस्तान में कश्मीर के विलय से कोई स्थायी समाधान निकलेगा और न ही ताकत के बल पर भारत के वहां नियंत्रण से. मुझे लगता है कि वहां के नागरिकों को व्यापक स्वायत्तता देना ही आगे बढ़ने का रास्ता है."

वहीं वरिष्ठ पत्रकार फराज अहमद कहते हैं, "कश्मीरी कब तक बंदूकों के साए में जिंदगी गुजारेंगे? वे पिछले 25 साल से मौत और बर्बादी देख रहे हैं. मुझे लगता है कि वक्त आ गया है जब सरकार को एक उचित समाधान के बारे में सोचना चाहिए. व्यापक स्वायत्तता निश्चित तौर पर एक विकल्प हो सकता है."

भारत के पूर्व क्रिकेट कप्तान मोहम्मद अजहरूद्दीन का कहना है कि घाटी में हिंसा रुकनी चाहिए. उनकी राय है, "इस हिंसा की कोई तुक नहीं है और इतने सालों से कश्मीरी इस हिंसा को झेल रहे हैं. सरकार कहती है कि कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा है, लेकिन हमें उनको स्वायत्तता देने के बारे में सोचना होगा.”

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वहीं एक मुस्लिम अखबार मिली गजट में ब्लॉगर फिरदौस अहमद ने कश्मीर के मुसलमान को बाकी भारत के मुसलमानों से कई मायनों में अलग बताया है. वह कहते हैं, "क्षेत्रीय रूप से वे एकजुट हैं और अपने राज्य में बहुमत रखते हैं. भारत से उनका विरोध है और लगभग 25 साल से उसकी सैन्य सोच का शिकार रहे हैं.”

ऐसा कहा जाता है कि भारतीय कश्मीर में बहुत से लोग या तो आजादी चाहते हैं या फिर पाकिस्तान में विलय. लेकिन कई लोग भारत के साथ रहने के हक में हैं. वहां 1989 से भारत विरोधी उग्रवाद में 68 हजार लोग मारे जा चुके हैं. आजादी के बाद से कश्मीर भारत और पाकिस्तान के बीच एक अनसुलझा विवाद रहा है. आपसी अविश्वास उनके रिश्तों को कभी परवान नहीं चढ़ने देता. और इसकी एक बड़ी वजह कश्मीर है.