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आरसीईपी समझौता जो भारतीय बाजार को चीनी सामानों से भर सकता है

ऋषभ कुमार शर्मा
१२ अक्टूबर २०१९

आरसीईपी मुक्त व्यापार समझौते को लेकर नरेंद्र मोदी और शी जिनपिंग के बीच भी बात हुई है. मोदी सरकार के हर कदम का साथ देने वाला आरएसएस भी इस समझौते के खिलाफ है.

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तस्वीर: Getty Images/AFP/D. Chowdhury

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच 11 और 12 अक्टूबर हुई मुलाकात में भारत और चीन के बीच व्यापारिक संबंधों को बढ़ाने पर जोर देने की बात हुई. जब ये दोनों नेता मिल रहे थे उसी दौरान दक्षिण एशियाई देश थाइलैंड की राजधानी बैंकॉक में इन दोनों देशों के साथ 16 देशों के वाणिज्य मंत्रियों की मुलाकात हो रही थी. भारत के वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल इस बैठक में भाग लेने गए हैं. इन 16 देशों में ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्यांमार, फिलीपींस, सिंगापुर, थाइलैंड, वियतनाम, ऑस्ट्रेलिया, चीन, दक्षिण कोरिया, जापान, न्यूजीलैंड और भारत शामिल हैं. इन देशों के बीच आरसीईपी यानी क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौते पर बातचीत हो रही है.

आरसीईपी है क्या?

आरसीईपी 16 देशों के बीच होने वाला मुक् व्यापार समझौता है जिससे इन देशों के बीच होने वाले व्यापार को आसान बनाया जा सकेगा. इन देशों के बीच पारस्परिक व्यापार में टैक्स में कटौती के अलावा कई तरीके की आर्थिक छूट दी जाएगी. इन 16 देशों में 10 आसियान समूह के और छह देश वो हैं जिनके साथ आसियान देशों का मुक्त व्यापार समझौता है. मुक्त व्यापार समझौते का मतलब दो या दो से ज्यादा देशों के बीच ऐसा समझौता है जिसमें आयात और निर्यात की सुगमता को बढ़ाया गया हो. ऐसे समझौते के सदस्य देश टैक्सों को घटाते हैं और व्यापार के लिए अनुकूल माहौल तैयार करते हैं.

Thailand Bangkok | ASEAN Gipfeltreffen | Mike Pompeo und Wang Yi
तस्वीर: picturealliance/AP Photo/J. Ernst

आरसीईपी समझौते के मुताबिक इन 16 देशों के बीच में एक इंटिग्रेटेड मार्केट बनाया जाएगा, जो इन देशों में आपसी व्यापार को आसान करेगा. इससे इन देशों में एक दूसरे के उत्पाद और सेवाएं आसानी से उपलब्ध हो सकेंगे. इस समझौते में उत्पाद और सेवाओं, निवेश, आर्थिक और तकनीकी सहयोग, विवादों के निपटारे, ई कॉमर्स, बौद्धिक संपदा और छोटे-बड़े उद्योग शामिल होंगे.

समझौते से भारत का क्या होगा फायदा?

इन 16 देशों में दुनिया की लगभग 45 प्रतिशत जनसंख्या रहती है. दुनिया के निर्यात का एक चौथाई इन देशों से होता है. दुनिया की जीडीपी का 30 प्रतिशत हिस्सा इन देशों से ही आता है. इन आंकड़ों के चलते यह दुनिया का सबसे बड़ा व्यापारिक समझौता होगा. इस समझौते में 25 हिस्से होंगे. इनमें से 21 हिस्सों पर सहमति बन गई है. अब निवेश, ई कॉमर्स, उत्पादों के बनने की जगह और व्यावसायिक उपचारों पर सहमति होनी है.

आरसीईपी में शामिल क्षेत्रों में काम कर रही भारत की कंपनियों को एक बड़ा बाजार मिल सकेगा. इस समझौते के होने के बाद घरेलू बाजार में मौजूद बड़ी कंपनियों और सेवा प्रदाताओं को भी निर्यात के लिए एक बड़ा बाजार मिल सकेगा. साथ ही भारत में इन देशों से आने वाले उत्पादों पर टैक्स कम होगा और ग्राहकों को कम कीमत पर ये सामान उपलब्ध हो सकेंगे.

आरसीईपी पर भारत की चिताएं क्या हैं?

भारत के सामने सबसे बड़ी परेशानी है भारत का व्यापार घाटा. जब किसी देश का आयात उस देश के निर्यात से ज्यादा हो तो इस स्थिति को व्यापार घाटा कहा जाता है. इन 16 देशों के साथ होने वाले व्यापार में भारत 11 देशों के साथ व्यापार घाटे की स्थिति में है. मतलब भारत इन देशों से जितना सामान खरीदता है उससे कहीं कम उन्हें बेचता है. इनमें सबसे बड़ा व्यापार घाटा चीन के साथ है. 2014-15 में नरेंद्र मोदी की सरकार के सत्ता में आने पर भारत का चीन के साथ व्यापार घाटा 2600 अरब रुपये था जो 2018-19 में बढ़कर 3700 अरब रुपये हो गया है. भारत के लिए बड़ी चिंता आर्थिक मंदी भी है. केयर के मुताबिक भारत की निर्यात विकास दर 2019 के पहले आठ महीनों में 11.8 प्रतिशत से घटकर 1.4 प्रतिशत पर आ गई है. अगर ये गिरावट जारी रही तो भारत का व्यापार घाटा और बढ़ेगा क्योंकि भारत दूसरे देशों को निर्यात करने से ज्यादा खुद आयात करेगा.

Thailand Bangkok | ASEAN Gipfel der Außenminister
तस्वीर: picture-alliance/Zuma Press/C. Subprasom

दूसरी चिंता ये है कि जिस तरह भारत की कंपनियों को एक बड़ा बाजार मिलेगा वैसे ही दूसरे देशों की कंपनियों को भी भारत जैसा बड़ा बाजार मिलेगा. ऐसे में चीन समेत सभी दूसरे देश सस्ती कीमतों पर अपना सामान भारतीय बाजार में बेचना शुरू करेंगे. इससे भारतीय बाजार के उत्पादकों को परेशानी होगी. इसका उदाहरण बांग्लादेश से दिया जा सकता है. भारत और बांग्लादेश के बीच मुक्त व्यापार का समझौता है. इसके चलते बांग्लादेश में बनने वाला कपड़ा सस्ती दरों पर भारत में उपलब्ध होता है. इसके चलते भारतीय कपड़ा उद्योग को बहुत नुकसान हुआ है. खेती के बाद दूसरे नंबर पर रोजगार प्रदान करने वाले कपड़ा उद्योग में करीब 10 लाख लोगों का रोजगार खत्म हो गया. आरसीईपी से इस तरह का असर सबसे ज्यादा डेयरी और स्टील उद्योग पर पड़ने के आसार हैं. विदेशों से सस्ते डेयरी उत्पाद और स्टील आने से भारतीय बाजार को नुकसान होगा.

विरोध में आरएसएस

ऐसे में इन उद्योगों से जुड़े लोग आरसीईपी का विरोध भी कर रहे हैं. बड़ी कंपनियों को आरसीईपी से इतना नुकसान नहीं होगा लेकिन छोटी कंपनियों को बहुत घाटा उठाना पड़ेगा. भारत के विदेश सचिव विजय गोखले ने बताया, "दोनों देशों के बीच आरसीईपी को लेकर बात हुई है. लेकिन भारत ने अपनी चिंताएं चीन के सामने रखी हैं. भारत ने इन चिंताओं का निराकरण होने के बाद इस समझौते से जुड़ने की बात कही है." दरअसल अमेरिका के साथ चल रहे व्यापारिक युद्ध से चीन को बहुत घाटा हो रहा है. ऐसे में इस घाटे को कम करने के लिए चीन की नजर भारत सहित दूसरे बाजारों पर है. चीन जल्दी से जल्दी इस घाटे की भरपाई के लिए आरसीईपी समझौते पर सहमति बनाना चाहता है. लेकिन भारतीय कंपनियों को डर है कि चीनी उत्पाद छोटी भारतीय कंपनियों को खत्म कर देंगे.

आरसीईपी समझौते पर छोटे-बड़े कई उद्योग सरकार का विरोध कर रहे हैं. मोदी सरकार के हर कदम का साथ देने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कुछ संगठनों ने इस समझौते का विरोध किया है. स्वदेशी जागरण मंच और भारतीय मजदूर संघ ने भारत के इस समझौते में शामिल होने का विरोध कर 12 अक्टूबर से 10 दिन का विरोध प्रदर्शन करने का आह्वान किया है. इन संगठनों का कहना है कि इस समझौते से भारत का बाजार चीनी सामान से 'भर जाएगा'.

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