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आईपीसीसी क्या है और पूरी दुनिया के लिए इतनी अहम क्यों है?

अजीत निरंजन | स्टुअर्ट ब्राउन
३० जुलाई २०२१

इंटरगवर्नमेंटल पैनल फॉर क्लाइमेट चेंज से जुड़े वैज्ञानिक अगस्त में जलवायु को लेकर किए गए अपने मूल्यांकन की प्रारंभिक रिपोर्ट जारी करने वाले हैं. आइए जानें कि आईपीसीसी है क्या और क्यों इस पर पूरे विश्व की नजरें लगी हैं.

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USA Greenpeace Protest in New York
ग्लोबल वॉर्मिंग की ओर ध्यान दिलाने के लिए 'ग्रीनपीस' ने न्यूयॉर्क में लगाई थीं अमेरिका के डॉनल्ड ट्रंप और ब्राजील के बोलसोनारो की बर्फ के मूर्तियां. तस्वीर: Tayfun Coskun/AA/picture-alliance

आईपीसीसी जलवायु संकट के मुद्दे पर काम कर रही है. यह एक ऐसा मुद्दा है जो पूरी धरती के लिए चिंता का कारण बनता जा रहा है. आईपीसीसी की रिपोर्ट सरकार, कारोबारी नेताओं और यहां तक कि युवा प्रदर्शनकारियों को भी प्रभावित करती है. फिर भी, ऐसे कई लोग होंगे जिन्होंने आज तक इंटरगवर्नमेंटल पैनल फॉर क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) के बारे में शायद नहीं सुना होगा.

आईपीसीसी - संयुक्त राष्ट्र की एक इकाई है जो जलवायु विज्ञान और जलवायु परिवर्तन का मूल्यांकन करती है. इससे जुड़े वैज्ञानिक तेजी से हो रहे जलवायु परिवर्तन के मौजूदा प्रभाव और इसकी वजह से भविष्य में आने वाले खतरों की समीक्षा करते हैं. साथ ही, इससे होने वाले नुकसान को कम करने और दुनिया के तापमान को स्थिर रखने के विकल्पों के बारे में बताते हैं.

विश्व मौसम विज्ञान संगठन और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम ने 1988 में आईपीसीसी को स्थापित किया था. यह संगठन जलवायु के बारे में मूल्यांकन करके कुछ सालों के अंतराल पर रिपोर्ट जारी करता है. इसे आसान भाषा में जारी किया जाता है, ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग इसे पढ़ सकें.

आईपीसीसी दुनिया भर से सैकड़ों वैज्ञानिकों को चुनती है, ताकि वे साथी वैज्ञानिकों, सरकार, और उद्योग जगत से जुड़ी रिपोर्टों की समीक्षा करने के बाद मूल्यांकन रिपोर्ट जारी कर सकें. इस दौरान जलवायु परिवर्तन की स्थिति को जानने और उसके प्रभावों को बेहतर तरीके से समझने के लिए हजारों रिपोर्टों और शोध से जुड़े लेखों का अध्ययन किया जाता है.

हाल के वर्षों में संगठन की ओर से विशेष रिपोर्टों की एक सीरीज प्रकाशित की गई थी. इसमें 1.5 डिग्री सेल्सियस ग्लोबल वार्मिंग वाले ग्रह पर रहने और जलवायु परिवर्तन की वजह से जमीन, महासागरों, और बर्फीली जगहों पर पड़ने वाले प्रभावों के बारे में जानकारी दी गई थी.

भविष्यवाणी नहीं, अनुमान

आईपीसीसी के जलवायु वैज्ञानिक इस बात पर जोर देते हैं कि वे सरकारों को यह नहीं बताते कि करना क्या है, बल्कि वे संभावित नीतिगत विकल्पों का आकलन करते हैं. वे कहते हैं कि उनका निष्कर्ष भविष्यवाणी नहीं है, बल्कि वार्मिंग की वजह से होने वाली अलग-अलग घटनाओं के आधार लगाया गया अनुमान है.

मूल्यांकन रिपोर्ट जारी करने से पहले, आईपीसीसी सरकार और नीति निर्माताओं के लिए खास जानकारी प्रकाशित करते हैं. यह जानकारी विशेषज्ञों द्वारा तैयार की जाती है और संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देश इनकी पूरी तरह समीक्षा करते हैं. साथ ही, सर्वसम्मति से मंजूरी देते हैं. इस रिपोर्ट से नीति निर्माताओं को भविष्य की योजना बनाने में मदद मिलती है.

जलवायु परिवर्तन की स्थिति पर आईपीसीसी की तरफ से कुछ सालों के अंतराल पर प्रकाशित की जाने वाली मूल्यांकन रिपोर्ट इन समीक्षाओं के बिना प्रकाशित नहीं की जा सकती. पिछली रिपोर्ट 2014 में प्रकाशित की गई थी जो इस संगठन की पांचवी रिपोर्ट थी. इस रिपोर्ट के आधार पर ही जलवायु परिवर्तन पर 2015 के पेरिस समझौते में यह तय किया गया कि इस सदी के अंत तक ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस पर बनाए रखना है.

अगली मूल्यांकन रिपोर्ट

जुलाई 2021 के अंत में, लगभग 200 देशों ने जलवायु परिवर्तन पर आईपीसीसी की छठी मूल्यांकन रिपोर्ट के पहले भाग की समीक्षा शुरू की है. अगस्त में प्रकाशित होने के बाद, संभवत: नवंबर में ग्लासगो में होने वाले संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (COP26) में इससे जुड़े फैसलों की घोषणा की जाएगी. मूल्यांकन से जुड़ी पूरी रिपोर्ट 2022 में जारी होगी.

कई वैज्ञानिक और विशेषज्ञ आईपीसीसी की आलोचना भी करते हैं. उदाहरण के लिए, आईपीसीसी पर यह आरोप लगाया गया कि संगठन जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल करने वाली ऐसी कंपनियों पर कार्रवाई करने में असफल रहा, जो उत्सर्जन में कमी करने के प्रयासों में बाधक बनें.

हालांकि, वैज्ञानिक समुदाय और मीडिया में, आईपीसीसी की रिपोर्टों को जलवायु परिवर्तन से जुड़े विस्तृत और विश्वसनीय आकलन के तौर पर देखा जाता है. 2007 में, आईपीसीसी को नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.