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अमेरिका में बहस: सऊदी अरब वाले काले हैं या गोरे

१ नवम्बर २०१६

अमेरिका में हर दस साल पर जनगणना होती है. लोगों को रंग के आधार पर गिना जाता है. श्वेत और अश्वेत. लेकिन इस बार सऊदी अरब से आए लोगों को लेकर बड़ी उलझन पैदा हो गई है.

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Flüchtlinge Grenzgebiet Türkei Syrien
तस्वीर: picture-alliance/dpa/V. Gurgah

अधिकारी समझ नहीं पा रहे हैं कि उन्हें श्वेतों में रखा जाए, अश्वेतों में या फिर अन्य कहा जाए. 45 साल में पहली बार ऐसा हो रहा है कि अन्य श्रेणियां बनाने पर बात हो रही है. इनमें मध्य पूर्व, अफ्रीका और एशिया से आकर अमेरिका में बसे लोगों को अलग जगह मिल सकती है.

सेंसस ब्यूरो की विश्लेषक रेचल मार्क्स कहती हैं कि यह रिसर्च नस्ल और मूल देश के आधार पर अमेरिका में रहने वाले लोगों के बारे में बेहतर जानकारी उपलब्ध करा सकेगी. नई श्रेणी क्या हो, इस बारे में बात अंतिम दौर में है. 'मिडल ईस्ट- नॉर्थ अफ्रीकन' अगली कैटिगरी हो सकती है. लेकिन इस कैटिगरी में जो लोग शामिल होंगे, उन्हें थोड़ी आपत्ति है. इस कैटिगरी में शामिल होने वाले ज्यादातर लोग मुसलमान होंगे और उन्हें लगता है कि इस तरह अगर उनकी अलग से पहचान हो जाएगी तो उन्हें मुश्किल हो सकती है. यूएस काउंसिल ऑफ मुस्लिम ऑर्गनाइजेशंस के महासचिव औसामा जमाल कहते हैं, "हमें लगता है कि डॉनल्ड ट्रंप के युग में इस तरह का ठप्पा खतरनाक हो सकता है. अगर कोई है जो मुसलमानों पर प्रतिबंध लगाना चाहता है या उन पर अलग से निगरानी रखना चाहता है, तो उसे क्या इस तरह का औजार देना सही होगा?"

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इस बहस का नतीजा यह हुआ है कि ईरानी, लेबनानी, सऊदी और अन्य विदेशी मूल के लोगों के सामने अपनी नस्ली श्रेणी चुनने का सवाल आ खड़ा हुआ है. जमाल पूछते हैं, "क्या हम श्वेत हैं? काले तो हम बिल्कुल नहीं हैं, भले ही हममें से कुछ अफ्रीकी हों. क्या यह त्वचा के रंग का सवाल है? सवाल हमारे मूल देश का है या कुछ और? हर कोई इसी उलझन में है."

कुछ देशों में नस्ली आधार पर जनगणना को ठीक नहीं माना जाता है लेकिन अमेरिका में रंग और मूल देश के आधार पर भी गिनती की जाती है. इससे अधिकारियों को काम की काफी जानकारी मिल जाती है. जैसे उन्हें पता चलता है कि काले लोगों में बेरोजगारी की क्या दर है या फिर विदेश से आए कितने लोग पढ़े लिखे हैं. धर्म की भी जानकारी शामिल हो जाती है. जनगणना में सीधे सीधे पूछा जाता है, आप किस नस्ल के हैं. लेकिन 11 सितंबर 2001 के आतंकी हमले के बाद इस तरह की आशंकाएं जाहिर की गई हैं कि यह जानकारी मुसलमानों के खिलाफ इस्तेमाल हो सकती है. 2004 में इस बारे में एक बड़ा विवाद खड़ा हो गया था जब 2000 के जनगणना के आंकड़ों से यह बात सार्वजनिक हो गई कि अमेरिका में कौन कौन सऊदी अरब के मूल से है. चूंकि 11 सितंबर के कई हमलावर सऊदी मूल के थे तो लोग डर गए थे. स्टैन्फर्ड के कला संकाय में पढ़ाने वाले मैथ्यू स्निप कहते हैं, "अरब मूल के मुसलमान समुदाय में इस बात पर काफी नाराजगी देखी गई थी. उन्हें लग रहा था कि आंतरिक सुरक्षा विभाग इस जानकारी का इ्स्तेमाल उन पर निगरानी के लिए कर सकता है."

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इस बात को लेकर डर इसलिए भी वाजिब था क्योंकि अमेरिकी इतिहास में ऐसा पहले भी हो चुका है. दूसरे विश्व युद्ध में जापान ने पर्ल हार्बर पर ऐसा खतरनाक हमला किया था कि पूरा अमेरिका हिल गया था. उसके बाद अमेरिका में रह रहे जापानियों को खासा विरोध झेलना पड़ा था. और जनगणना ब्यूरो ने जापानियों की पहचान में मदद की थी.

वीके/एके (एएफपी)