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पाकिस्तान में लोग चीनी वैक्सीन लगवाने को तैयार नहीं

वजाहत मलिक (इस्लामाबाद से)
२० जनवरी २०२१

पाकिस्तान भी कोरोना महामारी की दूसरी लहर से जूझ रहा है. सरकार ने हालात से निपटने के लिए चीनी टीके के इस्तेमाल को मंजूरी दे दी है. लेकिन उससे पहले वहां पर्याप्त वोलंटियर नहीं मिल रहे हैं ताकि टीके का ट्रायल पूरा हो सके.

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पाकिस्तान में चीनी टीके का ट्रायल
पाकिस्तान में सरकार ने चीनी टीके के इमरजेंसी इस्तेमाल को मंजूरी दी हैतस्वीर: Aamir Qureshi/AFP/Getty Images

बीते साल मार्च से पाकिस्तान में अब तक कोरोना के पांच लाख से ज्यादा मामले सामने आए हैं जबकि इससे मरने वालों का आंकड़ा दस हजार को पार कर गया है. दूसरी लहर में संक्रमण कहीं तेजी से फैल रहा है और सरकार के सामने हालात से निपटने की चुनौती है. महामारी की रोकथाम के लिए सरकार की उम्मीदें चीनी कंपनी कैनसिनोबायोन के बनाए टीके पर टिकी है. कंपनी ने पाकिस्तान में अपने टीके का पहला डबल ब्लाइंड क्लीनिकल ट्रायल शुरू किया है.

टीके का ट्रायल तीसरे चरण में दाखिल हो गया है. पाकिस्तान के तीन बड़े शहरों में यह ट्रायल हो रहा है. लेकिन बहुत से पाकिस्तानियों को चीनी टीके पर संदेह है, इसलिए लोग टीके के ट्रायल में हिस्सा लेने से कतरा रहे हैं. एक नागरिक मोहम्मद निसार कहते हैं, "हमें यह जानना है कि ये टीके कहां से आ रहे हैं. अल्लाह ने कुरान में साफ कहा है कि यहूदी और ईसाई हमारे दुश्मन हैं. मुझे नहीं लगता है कि हमारे दुश्मन हमारा कोई भला करेंगे."

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डर और गलतफहमियां

टीके के ट्रायल से जुड़े लोग इस बात को मानते हैं कि दकियानूसी ख्यालात और अज्ञानता उनके काम में रोड़ा बन रहे हैं. ट्रायल प्रोजेक्ट के चीफ काउंसलर और रिसर्चर कॉर्डिनेटर मोहसिन अली कहते हैं, "एक समस्या यह है कि कट्टरपंथी लोग कई अंधविश्वासों और मिथकों में यकीन रखते हैं. वह जानना चाहते हैं कि वैक्सीन हराम है या हलाल. और शायद यही वजह है कि पोलियो टीकाकरण में भी हमें इतनी मुश्किलें आ रही हैं. अब भी ऐसे लोग हैं जो अपने बच्चों को पोलियो की दवा नहीं पिलाना चाहते हैं. कई दशकों से हम पोलियो को खत्म करने की कोशिश कर रहे हैं."

अब सिर्फ पाकिस्तान और अफगानिस्तान ही दुनिया के ऐसे दो देश हैं जहां अब तक पोलियो को खत्म नहीं किया जा सका है. कई कट्टरपंथियों को संदेह है कि पोलियो की दवा पश्चिमी देशों की साजिश है जिसे पीने वाले बच्चों की प्रजनना क्षमता भविष्य में कमजोर हो सकती है. पाकिस्तान में पोलियो टीकाकरण से जुड़े लोगों पर कई बार चरमपंथियों ने हमले किए हैं. ऐसे में, कोरोना वायरस के टीकों को लेकर बहुत से लोगों में हिचकिचाहट साफ दिखती है क्योंकि यह वायरस सिर्फ एक साल पहले ही सामने आया है.

वैक्सीन के ट्रायल में लोगों की भागीदारी को बढ़ाने के लिए प्रचार की मुहिम भी छेड़ी गई है. ट्रायल प्रोजेक्ट के राष्ट्रीय संयोजक हसन अब्बास कहते हैं, "इस तरह के काम को लेकर अकसर लोगों में गलतफहमियां रहती हैं. असल में अगर आप किसी काम को पहली बार करते हैं, तो आपका सामना ऐसे लोगों से होना स्वाभाविक है जिनमें डर होगा या फिर उन्हें नहीं पता कि उनके साथ क्या होने जा रहा है. इसलिए काउंसलिंग बहुत जरूरी है."

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धार्मिक बहस बेमानी

ट्रायल में हिस्सा लेने वाले वॉलंटियर सलीम आरिफ कहते हैं कि इस समय महामारी से निपटना बहुत जरूरी है और इसे लेकर धार्मिक बहस में उलझना ठीक नहीं है. उनका कहना है, "क्या हुआ अगर वैक्सीन चीन से आ रही है? यहां बात हराम और हलाल की नहीं है. पोलियो के संकट को देखिए. पोलियो का टीका भी पाकिस्तान में नहीं बना था. वह भी दूसरे देशों से ही पाकिस्तान में आया. हमें इस बात का शुक्रगुजार होना चाहिए कि हमारे इलाज के लिए यह सब हो रहा है. इलाज के लिए तो मुसलमानों को सूअर का गोश्त खाने की भी अनुमति है."

ट्रायल में वे सभी स्वस्थ वयस्क हिस्सा ले सकते हैं, जो कोविड-19 से संक्रमित ना हुए हों. अधिकारियों को उम्मीद है कि वैक्सीन को लेकर गलतफहमियां दूर होंगी और ज्यादा वॉलंटियर ट्रायल में हिस्सा लेने के लिए आगे आएंगे. अधिकारियों को उम्मीद है कि जल्द ही ट्रायल पूरा होगा और इस साल की पहली तिमाही के आखिर तक लोगों को टीका लगाने का काम शुरू हो जाएगा.

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