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स्कॉटलैंड: आजादी की तेज होती मांग और ईयू में वापसी की इच्छा

स्वाति बक्शी
१४ जनवरी २०२१

ब्रिटेन में मौसम भले ही सर्द हो लेकिन ब्रेक्जिट के बाद स्कॉटलैंड की आजादी की मांग को लेकर माहौल गर्माने लगा है. स्कॉटलैंड में आजादी के लिए फिर से जनमत संग्रह की मांग उठ रही है.

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Referendum zur schottischen Unabhängigkeit | Flaggen
तस्वीर: Danny Lawson/PA Wire/picture alliance

एक तरफ ईयू से विदाई के बाद स्कॉटलैंड से समुद्री भोजन के निर्यात से जुड़ी दिक्कतों ने सिर उठाया है तो दूसरी ओर आजाद स्कॉटलैंड की समर्थक स्कॉटिश नैशनल पार्टी (एसएनपी) ने ब्रिटिश सरकार पर राजनैतिक दबाव बनाने की कोशिशें तेज कर दी हैं. ब्रेक्जिट के बाद पहले हफ्ते में स्कॉटलैंड से ईयू जाने वाले समुद्री खाद्यों से भरे ट्रकों को सीमाएं पार करने में हुई भारी दिक्कतों की वजह से कई निर्यातकों का व्यापार डूब जाने की आशंका जताई जा रही है.

ब्रिटिश संसद में एसएनपी के नेता इयन ब्लैकफर्ड ने रविवार को कहा कि ब्रेक्जिट की वजह से होने वाले जबरदस्त आर्थिक नुकसान और व्यापार से जुड़ी परेशानियों को देखते हुए स्कॉटलैंड ब्रिटेन से बड़े मुआवजे का हकदार है. ब्रेक्जिट को एक "गैरजरूरी आर्थिक बर्बरता” की संज्ञा देते हुए ब्लैकफर्ड ने कहा, "अब यह बिल्कुल साफ हो चुका है कि स्कॉटलैंड के हितों की रक्षा और यूरोप में उसकी जगह सुनिश्चित करने के लिए आजादी ही एकमात्र रास्ता है.”

स्कॉटलैंड की फर्स्ट मिनिस्टर निकोला स्टर्जन तो आजादी के मसले पर दोबारा जनमत संग्रह कराए जाने को लगातार हवा देती रही हैं. सवाल यह है कि क्या अब ब्रिटेन स्कॉटलैंड की आजादी के लिए तेज होती आवाजों को अनसुना करना जारी रख सकता है.

ब्रेक्जिट के बाद व्यापारिक दिक्कतें

ईयू के एकल बाजार और कस्टम यूनियन से बाहर निकलने के बाद पहले हफ्ते स्कॉटलैंड के समुद्री खाद्य उद्योग में अफरा-तफरी का माहौल रहा. बदली औपचारिक परिस्थितियों से व्यापारिक गतिविधियां खासी प्रभावित रहीं. खासकर मछली और दूसरे समुद्री खाद्य पदार्थों के निर्यातकों को कागजाती जरूरतों से उपजी उलझनें और आईटी से जुड़ी दिक्कतें झेलनी पड़ीं जिसके चलते ट्रक चालक घंटों तक फंसे रहे.

इससे ना सिर्फ सामान को यूरोपीय बाजारों में पहुंचाने में देरी हुई बल्कि कुछ कंपनियों ने सामान की डिलीवरी ही रद्द कर दी. निर्यातकों के लिए असमंजस और अनिश्चितता के इस माहौल का असर स्कॉटलैंड के घरेलू बाजार पर भी दिखाई दिया. खाद्य उद्योग से जुड़ी एक प्रतिनिधि संस्था स्कॉटलैंड फूड ऐंड ड्रिंक के सीईओ जेम्स विदर्स ने सोमवार को ट्वीट करके कहा कि ब्रेक्जिट के बाद पैदा हुई अड़चनों के चलते घरेलू बाजार में समुद्री खाद्य पदार्थों की कीमतें 80 फीसदी तक गिर गईं.

खाद्य उद्योग से जुड़े तीन संगठनों- स्कॉटलैंड फूड ऐंड ड्रिंक, सीफूड स्कॉटलैंड और स्कॉटिश सामन प्रड्यूसर्स ऑर्गनाइजेशन ने बीते शुक्रवार ही अपने संयुक्त बयान में कहा था कि ब्रिटेन को ब्रसेल्स के साथ मिलकर यूरोपियन यूनियन को होने वाले निर्यात के लिए नियम-कायदों को हल्का करने के लिए काम करना चाहिए.

उलझनों का यह माहौल सिर्फ स्कॉटलैंड तक सीमित हो ऐसा नही है. ब्रिटेन से उत्तरी आयरलैंड भेजे जाने वाले सामान की चेकिंग के तरीके और औपचारिक कागजों की बदली जरूरतों के मद्देनजर, प्रमुख रीटेलर मार्क्स ऐंड स्पेंसर ने उत्तरी आयरलैंड के अपने सभी स्टोर में सैकड़ों प्रकार का सामान ना भेजने का फैसला किया ताकि अड़चनों के चलते सामान खराब ना हो.

कुल मिलाकर पहला हफ्ता स्कॉटलैंड के लिए उलझनें और चिंताएं लेकर आया. जाहिर है एसएनपी इस मौके पर ब्रिटिश सरकार की आलोचना और स्कॉटलैंड की आजादी की बात दोहराने से नहीं चूंकी.

जनमत संग्रह की मांग और आजादी की आस

सितंबर 2014 में स्कॉटलैंड ने यूनाइटेड किंगडम से आजादी के मामले पर जनमत संग्रह करवाया गया था जिसके हक में 45 फीसदी लोगों ने वोट किया जबकि 55 फीसदी ने इसे नकार दिया था. लेकिन यूरोपियन यूनियन से बाहर आने के मामले पर यूनाइटेड किंगडम में हुए जनमत संग्रह ने इस मसले को नया मोड़ दे दिया. जून 2016 में ब्रेक्जिट के लिए हुए जनमत संग्रह में स्कॉटलैंड की जनता ने 32 फीसदी के मुकाबले 68 फीसदी वोटों के साथ ईयू में बने रहने के लिए वोट किया था लेकिन ब्रिटेन की विदाई तय होने के साथ ही स्कॉटलैंड की आजादी का मसला जोर पकड़ने लगा.

स्कॉटलैंड की फर्स्ट मिनिस्टर एसएनपी नेता निकोला स्टर्जन ने इसे स्कॉटलैंड की मर्जी के खिलाफ बताते हुए आजादी के लिए फिर से जनमत संग्रह की मांग उठाई. साल 2017 में लिस्बन संधि के अनुच्छेद 50 के तहत ईयू से बाहर निकलने की प्रक्रिया शुरू होने से ठीक पहले स्टर्जन ने स्कॉटलैंड में फिर से जनमत संग्रह की औपचारिक इजाजत मांगी जिसे तत्कालीन प्रधानमंत्री टेरीजा मे ने अस्वीकार कर दिया. तब से लेकर अब तक स्टर्जन कई मौकों पर यह मांग उठाती रही हैं जिसे बॉरिस जॉनसन भी यह कहकर दरकिनार करते रहे हैं कि ऐसा मौका पीढ़ियों में एक बार आता है और वह मौका 2014 में निकल चुका है.

हालांकि ब्रेक्जिट के बाद इस मांग को नया बल मिलता दिख रहा है और यह मसला ज्यादा अहम इसलिए भी है क्योंकि मई 2021 में स्कॉटलैंड के संसदीय चुनाव हैं. एडिनबरा में रहने वाले कॉलिन बर्नेट लघु कथाकार हैं और क्वीन मार्गरेट यूनिवर्सिटी में समाज-शास्त्र के छात्र रहे हैं. कॉलिन कहते हैं कि 2014 में उन्होने स्कॉटलैंड की आजादी के लिए वोट दिया था क्योंकि वो एक ऐसे देश में रहना चाहेंगे जिसकी अपनी राजनैतिक और सांस्कृतिक पहचान हो.

कॉलिन स्कॉटलैंड की आजादी को वहां की जनता से जोड़ते हुए कहते हैं कि "अगर आप ब्रिटेन और अमेरिका की तरफ देखें तो वहां का कामकाजी तबका दक्षिणपंथी पार्टियों के राजनैतिक अजेंडे का शिकार है जबकि स्कॉटलैंड में ऐसा नहीं है. यहां लोग इस बात को समझने लगे हैं कि अगर वे एक होकर काम करें तो स्कॉटलैंड के भविष्य निर्माण में भूमिका निभा सकते हैं." कॉलिन का कहना है कि आजाद स्कॉटलैंड में कामगार वर्ग की अहम भूमिका होगी जो ब्रिटेन में नहीं है. वहां सरकार पर अमीरों और रसूखदारों का प्रभाव है.

कॉलिन उस शिक्षित युवा वर्ग के नजरिए की एक बानगी पेश करते हैं जिसका मानना है कि ब्रिटेन ने उनके देश की इच्छाओं की अनदेखी करते हुए ईयू का साथ छोड़ दिया. हालांकि जानकारों की राय यही है कि स्कॉटलैंड और यूरोपीय यूनियन का रिश्ता गहरा है और आजादी की बहस को यूरोपियन यूनियन में वापसी के मुद्दे से अलग करके नहीं देखा जा सकता. दोनों आपस में जुड़े हुए हैं. साथ ही यह बात सिर्फ दोबारा जनमत संग्रह करवाए जाने और ब्रिटिश सरकार की रजामंदी की नहीं है. इसमें अहम बात स्कॉटलैंड और ब्रिटेन के बीच एक साझेदारी व दोनों तरफ के हितों और संबंधों की रक्षा की है.

यूरोपीय यूनियन में वापसी का इरादा

ब्रेक्जिट जनमत संग्रह में स्कॉटलैंड की जनता के ईयू में बने रहने के लिए दिए गए वोट के बाद इस बात में कोई शक नहीं कि स्कॉटलैंड ईयू से रिश्ते तोड़ने के हक में ना था और ना ही है. इसी कारण आजाद स्कॉटलैंड के यूरोपियन यूनियन में वापस लौटने की इच्छा और अपनी भूमिका नए सिरे से परिभाषित करने का इरादा आजादी की इस पूरी बहस का अटूट हिस्सा है.

एडिनबरा स्थित थिंक टैंक यूरो मर्चेंट्स के संस्थापक व राजनीतिक विश्लेषक ऐंथनी सैलेमोन कहते हैं, "जहां पिछले सालों में ब्रिटेन का सारा ध्यान ईयू से संबंध तोड़ने के सवाल पर लगा रहा, वहीं स्कॉटलैंड आज भी यूरोप के साथ खड़ा है. आजाद स्कॉटलैंड की वैश्विक भूमिका और उसकी पहचान में यूरोप के साथ संबंधों की अहम भूमिका होगी. हालांकि स्कॉटलैंड एक छोटा देश है लेकिन ईयू का हिस्सा बनकर उसके लिए मुमकिन होगा कि उसकी भी आवाज सुनी जाए और वह अपनी भूमिका सफलतापूर्वक निभा सके.”  

ब्रेक्जिट को अंजाम तक पहुंचाने के लिए पिछले चार साल में जिस तरह की उठा-पटक हुई और दरारें उभर कर सामने आईं, उसके बाद स्कॉटलैंड और ब्रिटेन के बीच सांस्कृतिक-वैचारिक अंतर की बात और ज्यादा महत्वपूर्ण बनकर सामने आई है. सैलेमोन का कहना है, "स्कॉटलैंड बहुपक्षीय अंतरराष्ट्रीय संबंधों में दिलचस्पी रखता है और वैश्विक तंत्र के जरिए काम करना चाहता है लेकिन ब्रेक्जिट के दौरान ब्रिटेन ने दिखा दिया कि उसका नजरिया स्कॉटलैंड से अलग है. ये स्कॉटिश लोगों के लिए अहमियत रखता है. यूरोपियन यूनियन में वापसी की इच्छा यह भी जताती है कि स्कॉटलैंड सहयोग में यकीन रखता है और उसका 47 बरस का यूरोपीय इतिहास भी है.”

इन दलीलों से स्कॉटलैंड की यूरोपियन यूनियन में वापसी का इरादा और आधार मजबूत नजर आता है. हालांकि यह रास्ता भी आसान नहीं होगा क्योंकि इसके कई राजनीतिक पड़ाव होंगे जिनकी कोई योजना या खाका फिलहाल मौजूद नहीं है. साथ ही यह डर तो बरकरार ही है कि स्कॉटलैंड की आजादी का रास्ता साफ होने से यूनाइटेड किंगडम का अस्तित्व कमजोर होगा. 

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