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रात में इस्लामाबाद पर होता है सूअरों का राज

वीके/एमजे (डीपीए)३० अगस्त २०१६

सूअर को मुसलमानों में गंदा माना जाता है लेकिन इस्लामाबाद में सूअर और इंसान साथ-साथ रह रहे हैं. रात को तो शहर पर सूअरों का राज होता है.

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Pakistan Islamabad Wildschweine
तस्वीर: picture-alliance/dpa/S. Shezad

जैसे ही रात घिरती है, अंधेरे के साथ-साथ पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद की सड़कों पर विशाल काले जंगली जानवर नजर आने लगते हैं. ये जंगली सूअर हैं जो बगल की पहाड़ियों से नीचे उतर आते हैं और शहर में घूमते रहते हैं. कुछ लोग इन्हें कचरा साफ करने वाली फौज मानकर खुश भी हो लेते हैं तो बहुत से लोग इनसे परेशान भी होते हैं.

इस्लामाबाद एक साफ-सुथरा शहर है लेकिन रात के वक्त वहां सूअरों के झुंड के झुंड कचरे में मुंह मारते दिख जाते हैं. आलम यह है कि उनकी मौजूदगी अब आम जन-जीवन का हिस्सा बन चुकी है. मरगला हिल्स में रहने वाले ओसामा इलियास कहते हैं, "उनका होना तो जिंदगी का हिस्सा हो चुका है. कभी-कभी कभार उन्हें देखकर खीज तो होती है लेकिन उनसे डर नहीं लगता."

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इस्लामाबाद सिर्फ 50 साल पुराना शहर है. हिमालय की तलहटी में बसाए गए इस शहर में हरियाली और जंगलों की मौजूदगी एक अलग ही नजारा देती है. लेकिन ये जंगल सूअरों का पनाह बन गए हैं. स्थानीय नगर प्रशासन के प्रवक्ता सलीम मलिक बताते हैं, "यह इलाका दरअसल एक जंगल था. बहुत से जंगली जानवरों के लिए रहने की जगह था. इंसान के आने से सदियों पहले से जंगली सूअर यहां बसे हुए हैं." लेकिन समस्या यह है कि सूअरों की आबादी बहुत तेजी से बढ़ रही है. मलिक बताते हैं कि एक जोड़ा हर चार महीने में 12 बच्चे पैदा कर देता है. लेकिन तब भी शहर प्रशासन चिंतित नहीं है क्योंकि सूअरों की इस आबादी को वे सफाई कर्मचारी की मानिंद समझते हैं. शहर में वन्य जीवन के इंचार्ज महमूद आलम कहते हैं, "म्युनिसिपल सर्विस में इन्हें कुदरती सफाईकर्मी समझा जाता है. वे मरे हुए जानवर, बचा हुआ काना और दूसरा कचरा साफ कर देते हैं, जो सफाई कर्मचारियों का बोझ बन सकता था. वे शहर के इकोलॉजिकल सिस्टम को बनाए रखते हैं."

दिलचस्प बात यह है कि मुसलमान सूअर को नापाक जानवर मानते हैं लेकिन नगर प्रशासन को इस्लामाबाद में घूमते इन सूअरों की कभी कोई शिकायत नहीं मिली है. यहां तक कि किसी धार्मिक संस्था ने भी इनकी शिकायत नहीं की है. मरगला हिल्स इलाके में एक मदरसे में पढ़ाने वाले मौलाना कारी सईद कहते हैं कि सूअरों को बेवजह कत्ल करना हराम है. वह बताते हैं, "यह सच है कि सूअरों को नाजस यानी सबसे गंदा समझा जाता है लेकिन इसलाम उनके कत्ल के लिए भी नहीं कहता."

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फिलहाल इस्लामाबाद प्रशासन सूअरों की इस आबादी पर नियंत्रण के लिए कोई कार्रवाई नहीं कर रहा है क्योंकि सलीम मलिक के मुताबिक ये जीव इंसानों के लिए कभी किसी तरह की मुसीबत नहीं बने हैं. वह कहते हैं, "ऐसा कोई वाकया नहीं हुआ है जब सूअरों ने लोगों को कोई नुकसान पहुंचाया हो. दशकों में ऐसा कभी नहीं हुआ है कि इन सूअरों ने कोई इंसान मार दिया हो." हालांकि यह बात पूरी तरह सच नहीं है. मीडिया रिपोर्ट बताती हैं कि 2012 में एक सूअर राष्ट्रपति भवन में घुस गया था और उसने एक सुरक्षाकर्मी को घायल कर दिया था. हाल ही में हाईवे पर सूअरों की वजह से एक दुर्घटना हुई थी जिसमें एक महिला घायल हो गई थी. और ऐसा कहने वाले भी कम नहीं हैं कि इन सूअरों से उन्हें डर लगता है क्योंकि रात के वक्त ये बड़ी तादाद में शहर में घूमते हैं. एक छात्र आफताब रब्बानी कहते हैं कि उनकी गली में रात को सूअरों के झुंड नियमित रूप से घूमते हैं जिसमें तीन वयस्क हैं और आठ बच्चे. वह बताते हैं, "एक रात मेरा कुत्ता घर से बाहर चला गया और मुझे डर लगता रहा कि सूअर उसे कुछ कर ना दें. वे खतरनाक हैं."

2007 तक सूअरों की आबादी को नियंत्रण में रखने के लिए शहर प्रशासन इनके शिकार के लिए परमिट जारी किया करता था. लेकिन तालिबान के खिलाफ सेना का ऑपरेशन शुरू होने के बाद ये परमिट बंद हो गए क्योंकि बंदूकधारी को आतंकवादी भी समझा जा सकता है. लिहाजा अब बस सूअर हैं और रात के वक्त उनका राज है.