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अफ्रीका में जलवायु परिवर्तन से लड़ना सीख रही हैं महिलाएं

१५ जनवरी २०२०

अफ्रीका में आधी खेती महिलाएं करती हैं. वही 80 प्रतिशत बुनियादी फसलों का उत्पादन भी करती हैं. लेकिन जलवायु परिवर्तन के बारे में जानकारी ना होना अब उनके लिए भारी पड़ रहा है.

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Burundi Landwirtschaft
तस्वीर: picture alliance/africamediaonline

केन्या की मौसम विज्ञानी साउमू शाका बचपन में अपने माता-पिता के छोटे से खेत में मक्का और दाल उगाने में मदद करती थीं. तभी शाका ने सीखा कि कैसे मौसम खाद्य उत्पादकों को सहेजे रखने में मदद करता है. केन्या में मौसम विभाग में काम करने वाली 28 साल की शाका कहती हैं, "पिछले कुछ सालों में पैदावार में गिरावट आई है." एक दशक पहले जहां उनके माता-पिता नैरोबी के दक्षिण-पूर्व के ताइता तवेता काउंटी में छह हेक्टेयर खेत में 25 बोरे मक्के उगा करते थे, अब वह केवल पांच बोरे मक्के उगा पाते हैं.

बेहिसाब बारिश की वजह से फसल नष्ट हो रही हैं. पिछले कुछ सालों में जलवायु परिवर्तन का खेती पर बुरा असर पड़ा है. नैरोबी की एक संस्था अफ्रीकन वीमन इन एग्रीकल्चरल रिसर्च एंड डेवलेपमेंट (अवॉर्ड) में निदेशक वंजिरु कमाउ रुटेनबर्ग कहते हैं कि अफ्रीका में छोटे पैमाने पर खेती कर रहे किसानों की मदद के लिए ज्यादा वैज्ञानिक विशेषज्ञता की जरूरत है क्योंकि खेती में हो रहे नुकसान से महिलाएं सबसे ज्यादा प्रभावित हो रही हैं.

संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) के मुताबिक अफ्रीका में 50 प्रतिशत किसान महिला हैं, जो 80 प्रतिशत बुनियादी फसलों का उत्पादन करती हैं. ये महिलाएं फसल तैयार करने से लेकर, उसके भंडारण और प्रोसेसिंग भी खुद करती हैं. एफएओ के मुताबिक इसके बावजूद महिलाओं के पास संसाधनों, सूचना और निर्णय लेने की शक्ति का अधिकार सीमित है, जो उन्हें पुरुषों की तुलना में जलवायु परिवर्तन प्रभावों को समझने में कमजोर बनाता है.

अफ्रीका की शोधकर्ता कमाउ रुतनबर्ग कहती हैं, "इसका मतलब है कि अब महिलाओं को जलवायु परिवर्तन अनुसंधान में भागीदारी बनाना होगा." उनका मानना है कि महिलाओं का विज्ञान के क्षेत्र में आगे आना जरूरी है. अवॉर्ड ने "वन प्लेनेट फैलोशिप" शुरू की है. इसके जरिए 630 अफ्रीकी और यूरोपीय वैज्ञानिकों को प्रशिक्षित किया जाएगा. आगे चलकर ये वैज्ञानिक अफ्रीका के छोटे किसानों को जलवायु परिवर्तन के अनुकूल खेती करने में मदद करेंगे. इस कार्यक्रम को अफ्रीकी वैज्ञानिक मुख्य तौर पर चलाएंगे.

Burundi Landwirtschaft
तस्वीर: picture-alliance/Ton Koene

कमाउ रुटेनबर्ग कहती हैं कि पिछले साल सितंबर में तीन साल के विकास कार्यक्रम में केन्या, तंजानिया, नाइजीरिया, जाम्बिया, मलावी, बेनिन, आइवरी कोस्ट, सेनेगल, टोगो, माली, इथियोपिया और बुर्किना फासो से 45 लोगों को चुना गया. इनमें से आधी महिलाएं थीं. कार्यक्रम का उद्देश्य इस मिथक को दूर करना था कि अफ्रीकी महिलाएं वैज्ञानिक नेतृत्व नहीं कर सकतीं. अवॉर्ड ने मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन और यूरोपीय संघ जैसी संस्थाओं के साथ मिलकर दो करोड़ डॉलर इस अनुसंधान के लिए दिए हैं.

कार्यक्रम में आई शाका मौसम को निपटने के लिए घरेलू समाधान तलाश रही हैं. खास कर उन किसानों के लिए, जो गर्म जमीन पर पर्याप्त भोजन उगाने के लिए जूझ रहे हैं. उनके शोध का मुख्य लक्ष्य खाद्य सुरक्षा को बढ़ावा देने में मदद करने के लिए लागत प्रभावी तकनीक का इस्तेमाल करना है. वह चाहती हैं कि सोशल मीडिया के जरिए ऐसे समाधान को बढ़ावा दिया जाए. शाका के मुताबिक, "अफ्रीकी वैज्ञानिकों के पास अनुभव और व्यवहारिक समाधान, दोनों हैं."

कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक जलवायु समाधानों के व्यावहारिक उपायों में महिलाओं को शामिल करना वक्त की जरूरत है. सौर ऊर्जा का विस्तार और स्वच्छ ऊर्जा से खाना पकाने से स्वास्थ्य से जुड़ी परेशानियों को कम किया जा सकता है. इस कार्यक्रम में शामिल शोधकर्ता कैटरीन कहती हैं कि जंगलों का कम होना और जलवायु परिवर्तन संसाधनों को दुर्लभ बना रहे हैं जिसकी वजह से महिलाओं को ईंधन के लिए लकड़ी इकट्ठा करने के लिए लंबी दूरी तय करनी पड़ती है. इससे उनके समय, स्वास्थ्य और व्यक्तिगत सुरक्षा पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है. 

माली में सरकारी और निजी भागीदारी ने 16 लाख लोगों को स्टोव दिया है. पारंपरिक स्टोव की तुलना में इस स्टोव ने प्रदूषण को आधा कर दिया है. एक और शोधकर्ता ग्लेजल के मुताबिक महिला वैज्ञानिकों और महिला किसानों को आधुनिक उर्जा पहलों में शामिल करना इसलिए महत्वपूर्ण है ताकि उनकी चिंताओं का समाधान किया जा सके. ग्रामीण ऊर्जा पहलों में महिलाओं को तकनीक के बारे में जानकारी देना इसलिए जरूरी है ताकि उनकी जरूरतों के हिसाब से उचित उत्पाद उन्हें और उनके परिवार को मिल सके. 

एसबी/एके (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)

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